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Kathal Ka Itihas: आकार की तरह ही बड़े हैं कटहल के फायदे, यह है पेड़ पर उगने वाला दुनिया का सबसे विशाल फल

Kathal Ke Bare Mein Jankari: कटहल न केवल अपने विशाल आकार के लिए प्रसिद्ध है बल्कि यह स्वास्थ्य, स्वाद और समृद्धि का प्रतीक भी है।

Shivani Jawanjal
Published on: 15 July 2025 12:20 PM IST (Updated on: 15 July 2025 12:20 PM IST)
Kathal Ke Bare Mein Jankari
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Kathal Ke Bare Mein Jankari: कटहल या जैकफ्रूट (Jackfruit) न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व में अपने आकार और पोषण गुणों के कारण प्रसिद्ध है। यह फल इतना बड़ा होता है कि इसका नाम 'विश्व का सबसे बड़ा पेड़ पर लगने वाला फल' रखा गया है। एक कटहल का वजन 10 से 50 किलो तक हो सकता है और कुछ कटहल 80 किलो तक भी पाए गए हैं। इसका गूदा न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि यह स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी होता है।

इस लेख में हम जानेंगे कि कटहल क्या है, यह कहाँ पाया जाता है, इसके पोषण तत्व, उपयोग, आर्थिक महत्व, खेती की विधियाँ, और इसके भविष्य की संभावनाएँ क्या हैं।

कटहल का परिचय और उत्पत्ति


कटहल जिसे वैज्ञानिक रूप से Artocarpus heterophyllus कहा जाता है, दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया का एक पारंपरिक एवं देशज फल है जिसकी जड़ें भारत, बांग्लादेश, श्रीलंका और आसपास के क्षेत्रों से जुड़ी हुई हैं। यह विशाल फलदार पेड़ लगभग 30 से 70 फीट ऊँचाई तक बढ़ सकता है और इसकी पत्तियाँ मोटी, हरी और चमकदार होती हैं जो आमतौर पर अंडाकार या आयताकार आकार की होती हैं। कटहल के पेड़ों पर इसके फल सीधे तने या मोटी शाखाओं से लटकते नजर आते हैं जिनका आकार और वजन आश्चर्यजनक रूप से बड़ा होता है। कभी-कभी एक फल 2 से लेकर 36 किलोग्राम तक का हो सकता है। प्राचीन भारतीय ग्रंथों और पुरातात्विक साक्ष्यों में भी इसका उल्लेख मिलता है जो इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। विशेष रूप से केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों में यह एक लोकप्रिय और महत्वपूर्ण फल है। वहीं महाराष्ट्र, बिहार और असम जैसे राज्यों में भी इसकी खेती व्यापक रूप से की जाती है।

विश्व का सबसे बड़ा फल क्यों है?

कटहल को दुनिया के सबसे बड़े पेड़ पर लगने वाले फलों में गिना जाता है और यह दावा काफी हद तक सही भी है। इसका आकार आमतौर पर 1 से 3 फीट लंबा और लगभग 1 फुट चौड़ा होता है, जो इसे सबसे विशाल फलों में से एक बनाता है। सामान्यत: इसका वजन 10 से 25 किलो तक होता है हालांकि कुछ बड़े फलों का वजन 30 से 40 किलो तक भी पाया गया है। दुनिया में अब तक दर्ज सबसे भारी कटहल लगभग 55 किलो का रहा है । एक सामान्य कटहल में करीब 100 से 200 बीज होते हैं । इसके फल को पकने में जलवायु और किस्म के अनुसार लगभग 3 से 8 महीने का समय लगता है । इन सभी गुणों के कारण कटहल अपने विशालकाय स्वरूप और पोषणमूल्य के कारण विशिष्ट फल के रूप में जाना जाता है।

कटहल की किस्में


कटहल की दो प्रमुख किस्में सामान्यतः उनके स्वाद और बनावट के आधार पर पहचानी जाती हैं।

कच्चा और कुरकुरा कटहल (Firm jackfruit) - पहली किस्म को कच्चा और कुरकुरा कटहल (Firm Jackfruit) कहा जाता है जो पकने के बाद भी अपनी कठोरता बनाए रखता है। यह किस्म सब्जी, करी, चिप्स और विभिन्न व्यंजनों में उपयोग की जाती है।

नरम और मीठा कटहल (Soft jackfruit) - दूसरी किस्म होती है नरम और मीठा कटहल (Soft Jackfruit) जो पूरी तरह पकने पर नरम, रसदार और सुगंधित हो जाता है और फल के रूप में सीधे खाने के लिए आदर्श माना जाता है। भारत में कटहल की कई स्थानीय और प्रादेशिक किस्में पाई जाती हैं जिनमें खजवा, सिंगापुरी, रूद्धाक्षी, स्वर्ण मनोहर और स्वर्ण पूर्ति प्रमुख हैं। ये किस्में स्वाद, आकार, पकने की अवधि और रोगों के प्रति प्रतिरोधक क्षमता के आधार पर एक-दूसरे से भिन्न होती हैं। इसके अलावा वैज्ञानिक अनुसंधान और बागवानी तकनीकों की मदद से कई हाइब्रिड किस्में भी विकसित की गई हैं, जो बेहतर उत्पादन, स्वाद और गुणवत्ता के साथ-साथ किसानों को अधिक लाभ देने में सक्षम हैं। इन नई किस्मों ने कटहल की खेती को एक व्यावसायिक अवसर में बदल दिया है।

पोषण गुण और स्वास्थ्य लाभ


कटहल केवल अपने विशाल आकार के लिए ही नहीं बल्कि अपने उत्कृष्ट पोषण मूल्य के लिए भी जाना जाता है। यह एक ऊर्जा से भरपूर फल है जिसमें प्रति 100 ग्राम लगभग 95 किलो कैलोरी ऊर्जा पाई जाती है, जो शरीर को ताजगी और शक्ति प्रदान करने में सहायक है। इसमें लगभग 23 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है जो दिनभर की आवश्यक ऊर्जा का अच्छा स्रोत है। इसके अतिरिक्त इसमें लगभग 2.5 ग्राम फाइबर होता है, जो पाचन क्रिया को सुचारु बनाए रखने में मदद करता है। कटहल में विटामिन C की मात्रा लगभग 13.7 मिलीग्राम होती है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने और त्वचा को स्वस्थ रखने में सहायक होती है। साथ ही इसमें लगभग 448 मिलीग्राम पोटैशियम पाया जाता है, जो हृदय को मजबूत बनाने और रक्तचाप को नियंत्रित रखने में उपयोगी है। 29 मिलीग्राम मैग्नीशियम भी इसमें मौजूद होता है जो मांसपेशियों और तंत्रिका तंत्र के सही संचालन के लिए आवश्यक होता है। इस प्रकार कटहल एक ऐसा फल है जो स्वाद के साथ-साथ संपूर्ण पोषण भी प्रदान करता है।

कटहल के विविध उपयोग

कटहल बहुपयोगी फल है, जिसका उपयोग इसके हर भाग में होता है:

फल के रूप में - पका हुआ कटहल स्वाद में आम और केले के मिश्रण जैसा मीठा और सुगंधित होता है जिसे सीधे फल की तरह खाया जाता है। इसीलिए कटहल का मीठा स्वाद इसे लोकप्रिय फल बनाता है।

सब्जी के रूप में - कच्चे कटहल को भारतीय व्यंजनों में 'शाकाहारी मांस' कहा जाता है क्योंकि इसका स्वाद और बनावट मांस जैसी होती है। यह विशेषता इसे शाकाहारी व्यंजनों में मांस के विकल्प के रूप में उपयोगी बनाती है।

बीज - कटहल के बीजों को उबालकर या भूनकर खाया जाता है और इनमें प्रोटीन की अच्छी मात्रा होती है। बीजों का उपयोग पोषण के लिए महत्वपूर्ण है।

कटहल चिप्स और स्नैक्स - दक्षिण भारत में कटहल चिप्स एक लोकप्रिय नाश्ता है जो कुरकुरा और स्वादिष्ट होता है।

जैकफ्रूट पाउडर और आटा - कटहल से बने पाउडर और आटे का उपयोग ग्लूटन-फ्री भोजन में किया जा रहा है, जो ग्लूटेन से एलर्जी वाले लोगों के लिए लाभकारी है। यह आधुनिक खाद्य उद्योग में कटहल के उपयोग का एक उभरता क्षेत्र है।

नकली मीट - पश्चिमी देशों में शाकाहारी और वेगन लोगों के लिए कटहल का उपयोग 'वेगन मीट' के रूप में बढ़ रहा है। इसकी बनावट और स्वाद मांस के समान होने के कारण यह मांस के विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो रहा है।

आर्थिक महत्व और रोजगार

आज कटहल केवल घरेलू रसोई तक सीमित नहीं रहा बल्कि यह एक व्यावसायिक और आर्थिक रूप से लाभकारी फसल के रूप में उभर चुका है। इसके प्रसंस्करण से जुड़ी अनेक उद्योगिक गतिविधियाँ जैसे जैकफ्रूट पल्प, जैम, अचार, चिप्स, केक आदि तेजी से लोकप्रिय हो रही हैं। भारत में खासतौर पर केरल, तमिलनाडु, असम और बिहार जैसे राज्यों में कटहल की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है, जहाँ से इसका निर्यात अमेरिका, कनाडा, यूरोप और खाड़ी देशों तक किया जा रहा है। यह निर्यात न केवल देश की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुँचा रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत को एक नई पहचान भी दिला रहा है। कटहल की खेती से लेकर उसके प्रसंस्करण, पैकेजिंग और विपणन तक की पूरी श्रृंखला में हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो रही है। इस प्रकार कटहल अब एक बहुआयामी फसल बन चुकी है, जो किसानों की आय बढ़ाने के साथ-साथ खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में नए अवसर भी उत्पन्न कर रही है।

एक नज़र कटहल की खेती पर


जलवायु - कटहल की खेती के लिए उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। यह पेड़ गर्म और आर्द्र वातावरण में अच्छा फल देता है, इसलिए भारत के दक्षिणी और पूर्वोत्तर भाग इसके लिए आदर्श हैं।

मिट्टी - कटहल के लिए गहरी, दोमट (loamy) और जैविक तत्वों से समृद्ध मिट्टी सर्वोत्तम मानी जाती है। यह मिट्टी नमी को बनाए रखने में मदद करती है और पौधे के विकास के लिए आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करती है।

सिंचाई - कटहल के पेड़ को बहुत अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन गर्मियों में नियमित सिंचाई आवश्यक होती है ताकि पेड़ स्वस्थ और फलदायी बना रहे।

फसल अवधि - कटहल के पेड़ को फल देने में आमतौर पर 3 से 5 वर्ष का समय लगता है। एक स्वस्थ पेड़ एक बार में 100 से अधिक फल भी दे सकता है, जो कि कटहल की उच्च उत्पादकता को दर्शाता है।

भविष्य की संभावनाएं

वर्तमान में जब दुनिया भर में लोग प्लांट-बेस्ड डाइट (Plant-Based Diet) की ओर तेजी से बढ़ रहे हैं और कटहल (जैकफ्रूट) की मांग और लोकप्रियता में उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। कटहल अब केवल ग्रामीण या देहाती फल नहीं रहा बल्कि यह शहरी बाजारों और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी तेजी से स्वीकार किया जा रहा है। खासकर पश्चिमी देशों में इसे 'वेगन मीट' के रूप में खूब पसंद किया जा रहा है।

भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारें भी कटहल आधारित स्टार्टअप्स, फूड प्रोसेसिंग यूनिट्स और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चला रही हैं। उदाहरण के लिए केरल, कर्नाटक, असम और झारखंड जैसे राज्यों में कटहल को 'राज्य फल' घोषित किया गया है और इसके प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन और निर्यात को प्रोत्साहित किया जा रहा है। केंद्र सरकार की ' मिशन जैकफ्रूट' जैसी पहलें भी किसानों और उद्यमियों को कटहल उत्पादन एवं विपणन के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

संभावित चुनौतियाँ

हालाँकि कटहल एक पौष्टिक और आर्थिक दृष्टि से लाभकारी फल है, फिर भी इसके व्यावसायिक विस्तार में कई चुनौतियाँ सामने आती हैं। सबसे बड़ी समस्या इसका भंडारण है क्योंकि कटहल जल्दी खराब होने वाला फल है। यदि इसे समय रहते संरक्षित न किया जाए तो यह सड़ने लगता है और किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके लिए विशेष भंडारण तकनीकों जैसे फ्रीजिंग या तत्काल प्रसंस्करण की आवश्यकता होती है। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों और छोटे कस्बों में प्रसंस्करण तकनीकों की कमी भी एक प्रमुख बाधा है। आधुनिक मशीनों और इकाइयों की अनुपलब्धता के कारण किसान कटहल से जुड़े उत्पादों का बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं कर पाते जिससे वे संभावित मुनाफे से वंचित रह जाते हैं। साथ ही बाजार में जागरूकता की कमी के कारण भी कटहल और उसके व्यंजनों के लाभों की जानकारी आम लोगों तक नहीं पहुँच पाती। इस कारण न तो उपभोक्ता पूरी तरह लाभ उठा पाते हैं और न ही किसान और उद्यमी। इन समस्याओं को दूर किए बिना कटहल का पूर्ण व्यावसायिक उपयोग संभव नहीं हो पाएगा।

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