Indian Diet: पापी पेट का सवाल है!

Indian Diet Analysis Reports: पेट पूजा हो रही है मगर फल बीमारियों के रूप में मिल रहा है। सब कुछ सामने ही है, अस्पतालों में, क्लीनिकों में, घरों में, सब जगह।

Yogesh Mishra
Published on: 6 Oct 2025 5:22 PM IST
Indian Diet Analysis Reports Papi Pet Worship and Health Awareness
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Indian Diet Analysis Reports Papi Pet Worship and Health Awareness

Indian Diet Analysis Reports: पेट भी गजब चीज है। पापी भी है और पूज्यनीय भी। तभी तो पापी पेट का सवाल बना रहता है। रोजाना कई कई बार पेट पूजा की जाती है। यहां तक कि भूखे भजन भी नहीं हो पाता।सच्ची बात है। पेट जो न करवाये। पेट की महत्ता अपार है। ईश्वर को भी खुश करने का जरिया भी पेट ही है। रोज़े से लेकर उपवास तक सभी इसीलिए ताकि खाली पेट की विषम तपस्या का संदेश ऊपर कहीं पहुंचाया जा सके।

कुल मिला कर मसला यह है कि पेट भरा रहना चाहिए। तभी पापी पेट का सवाल हल होता है और पेट ‘देव’ की अर्चना पूर्ण होती है। हमारा शरीर रूपी इंजन भी पेट में पड़े ईंधन से चलता है, सो दाना पानी डालते रहना चाहिए। हम सब कर भी यही रहे हैं। घर में भी और बाहर सजे ठेलों से लेकर रेस्टोरेंटों तक में भी।

हम तो दुनिया की प्राचीनतम जानकारियों वाले देश हैं। हमारा भोजन तो सर्वश्रेष्ठ है। एक से बढ़ कर एक व्यंजन। हमारी बराबरी कोई क्या करे। तभी तो भले ही हम किसी मुल्क में चले जाएं, ढूंढते अपने देश का ही खाना हैं। अब तो गैर मुल्की भी हिंदुस्तानी थाली के मुरीद हो चुके हैं। पेट पुजारियों के मामले में हमारी टक्कर में कोई खड़ा तक नहीं हो सकता। हम जम कर पूजा में जुटे हैं। घर से सड़क तक।


लेकिन एक बड़ी सी दिक्कत है। पेट की बड़ी बड़ी पूजाएँ करने का फल उल्टा ही मिल रहा है। मानो, भोजन रूपी ईंधन से पेट देवता नाराज ही हुए चले जा रहे हैं। शरीर का न सिर्फ़ माइलेज बैठा जा रहा है बल्कि इंजन समेत पूरी बॉडी का बैंड बज रहा है।

पेट पूजा हो रही है मगर फल बीमारियों के रूप में मिल रहा है। सब कुछ सामने ही है, अस्पतालों में, क्लीनिकों में, घरों में, सब जगह। पेट के रोग तो शायद हर एक में घर में है। एक मोटे अनुमान के मुताबिक़ देश में अठारह फ़ीसदी आबादी पेट के रोग से ग्रसित हैं। डायबिटीज की बाढ़ है। भारत में करीब 7 से 9 करोड़ मधुमेह रोगी हैं और यह संख्या तेजी से बढ़ रही है। बढ़ोतरी का यह आँकड़ा हर दशक में लगभग 50 से 70 फ़ीसदी तक बैठता है। गरीबी में आटा गीला की तरह कुपोषण में मोटापा छाया चला जा रहा है। हर 100 लोगों में से लगभग 17 से 36 लोग ऐसे हैं जिनके शरीर में पेट के आसपास मोटापा है।


वजह पेट पूजा में नहीं बल्कि पेट पूजन सामग्री में है। ये बात किसी और ने नहीं, बल्कि भारत में मेडिकल रिसर्च की सबसे बड़ी हुकूमत यानी इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कही है। इसने साफ कहा है कि हम हिंदुस्तानी पेट पूजा में 62 फीसदी चढ़ावा कार्बोहाइड्रेट का चढ़ा रहे हैं। और यही हमारा बैंड बजाए हुए है। ये कार्बोहाइड्रेट आ रहा है मूल रूप से रोटी, चावल, शक्कर के जरिये। इसमें तड़का लगा हुआ है सदाबहार आलू का। पूरब से दक्षिण कहीं चले जाएं बस यही बेसिक खाना।

स्टडी कहती है कि हमारे खानपान में जहां कार्बोहाइड्रेट की भरमार है वहीं प्रोटीन की मात्रा सिर्फ 12 फीसदी है। प्रोटीन हम ले भी रहे तो ज्यादातर दाल से और दाल कौन कितना खाता है ये भी सब जानते हैं। यहां तक कि दाल रोटी का मुहावरा भी अब सुनने को नहीं मिलता।

प्रोटीन की बात करें तो दाल, सोयाबीन से कहीं बड़े सोर्स दूध, पनीर जैसे डेयरी प्रोडक्ट और अंडा-मांस सरीखे नॉन वेज हैं, जिनका इनटेक बेहद कम है। यही जान लीजिए कि हम डेयरी से औसतन 2 फीसदी और एनिमल प्रोटीन से सिर्फ 1 फीसदी प्रोटीन लोग ले रहे हैं।पेट पूजा में मौजूद यही असंतुलन बीमारियों का सबसे बड़ा कारण बन रहा है। हमारी डाइट का बड़ा हिस्सा सफेद चावल और गेहूं के आटे से आता है और जितना ज्यादा कार्बोहाइड्रेट, उतनी ज्यादा डायबिटीज़ की आशंका। कार्बोहाइड्रेट से आने वाली 5 फीसदी अतिरिक्त ऊर्जा टाइप टू डायबिटीज का खतरा 14 फीसदी बढ़ा देती है। रोटी, चावल के अलावे चीनी भी एक बड़ी मुसीबत है क्योंकि कार्बोहाइड्रेट का एक बड़ा सोर्स खुद चीनी है।


बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। कार्बोहाइड्रेट से इतर एक और आइटम है जिसका नाम है फैट। वही घी, मक्खन, तेल वाला फैट। उसका भी जम कर सेवन होता है। फैट है भी जरूरी । लेकिन सवाल यह है कि किस किसिम का फैट हम ले रहे हैं। जो फैट हम ले रहे हैं वो सेहत में इजाफे की बजाए कोलेस्ट्रोल और हृदय रोग को बढ़ा रहा है। लेना तो चाहिए मेवे, बीज और मछली से निकला मोनोअनसैचुरेटेड और ओमेगा-3 फैट लेकिन कितने ही लोग इसे रेगुलर लेते हैं।

अब जान लीजिए कि थाली में मौजूद हाई कार्बोहाइड्रेट और खराब फैट क्या क्या गुल खिला रहा है। लेकिन हम करें तो करें भी क्या। कहना आसान है कि खूब दाल, पनीर, मेवा, दूध, दही, बढ़िया वाला तेल, मुर्गा, मीट वगैरह खाओ लेकिन कहाँ से खाएं। मोटा अनाज तक रेगुलर खाने की बजट ही इजाजत नहीं देता।

सार्वजनिक जागरूकता की क्या कहें, मुफ्त के राशन में भी वही गेंहूँ, चावल। मिड डे मील से लेकर भंडारों, लंगर तक में वही हाल। ठेलों पर वही मैदे की बहार। जिस पर हाथ रखिये वहीं चावल या मैदा निकलता है। तेल की तो बात ही करना बेकार है। क्योंकि हर चीज लगता है पाम आयल से ही बन रही है। लगता है सब के सब कार्बोहाइड्रेट और गन्दा फैट ठूंसने में जी जान से लगे हैं। मिलावट की तो हम अभी बात ही नहीं कर रहे हैं।

खैर, जिस तरह हम एक बेहद बीमार मुल्क में तब्दील हो गए हैं उसमें ऐसी स्टडी की बातें गम्भीर हैं। लेकिन करें क्या? डाइट की आदतें बदलना भी आसान नहीं। इसी में लम्बा रास्ता तय करना होगा। जेब की पहुंच में उपलब्धता हो जाना तो बड़ा चैलेंज है। फिर भी, कोशिश तो करनी ही होगी। या तो अच्छे खाने पर खर्च कर लें या डॉक्टर-जांच-इलाज पर फूंक दें। तय हमी को करना है। यहां जागरूक खुद होना होगा। अपने और अपने बच्चों का सोचना होगा। पापी पेट का सवाल हल करते रहिए लेकिन पेट पूजा का तरीका बदल ही डालिये।इस पूजा की सामग्रियों पर गौर कीजिये ।

(लेखक पत्रकार हैं।)

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