भारतीय इतिहास के गद्दार: जिन्होंने भारत की जड़े उखाड़ने की कोशिश की, पर हुए बेनकाब, आइए जानते हैं, आइए जानते हैं, ऐसे गद्दारों के बारे में

Indian Traitor Kings History: भारत के इतिहास में कई ऐसे शासक हुए हैं जिनकी गद्दारी ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत में प्रवेश करने और शासन स्थापित करने में मदद की।

Akshita Pidiha
Published on: 19 May 2025 4:26 PM IST
Indian Traitor Kings History
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Indian Traitor Kings History (Image Credit-Social Media)

Traitor Kings of Indian History: भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे शासक हुए हैं, जिनकी गद्दारी ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत में प्रवेश करने और शासन स्थापित करने में सहायता की। इन शासकों की स्वार्थपरता और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने देश को दीर्घकालीन गुलामी की ओर धकेला। भारतीय इतिहास में कुछ ऐसे शासक हुए हैं जिन पर यह आरोप लगा कि उन्होंने अपने स्वार्थ, सत्ता की लालसा, या व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण विदेशी आक्रमणकारियों या बाहरी शक्तियों का साथ दिया, जिससे भारत की एकता और स्वतंत्रता को क्षति पहुँची। इन शासकों को आम तौर पर “गद्दार” कहा जाता है। नीचे विस्तार से ऐसे प्रमुख शासकों की सूची दी गई है, जिन पर गद्दारी के आरोप लगे:

राजा जयचंद (कन्नौज के गहड़वाल वंश)


राजा जयचंद का नाम भारतीय इतिहास में गद्दारी के प्रतीक के रूप में लिया जाता है। वह कन्नौज के गहड़वाल वंश के शासक थे। जयचंद और दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान के बीच राजनीतिक और व्यक्तिगत मतभेद थे। पृथ्वीराज चौहान ने जयचंद की पुत्री संयोगिता से प्रेम विवाह किया, जिससे जयचंद आक्रोशित हो गए। ऐसा माना जाता है कि बदले की भावना से प्रेरित होकर जयचंद ने मोहम्मद गोरी को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया और उसका समर्थन किया। इस सहयोग के परिणामस्वरूप, 1192 ईस्वी में तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की पराजय हुई, जिससे भारत में इस्लामी शासन की नींव पड़ी।

मीर जाफर (बंगाल के नवाब का सेनापति)


मीर जाफर बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला के सेनापति थे। उन्होंने 1757 में प्लासी के युद्ध के दौरान अंग्रेजों के साथ मिलकर अपने ही नवाब के खिलाफ साजिश रची। मीर जाफर ने युद्ध के दौरान अपनी सेना को निष्क्रिय रखा, जिससे सिराजुद्दौला की पराजय हुई। इसके बदले में अंग्रेजों ने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाया, लेकिन वास्तविक सत्ता अपने हाथों में रखी।18वीं सदी में सिराजुद्दौला के सेनापति मीर जाफर ने 1757 के प्लासी युद्ध में अंग्रेजों से गुप्त समझौता किया। मीर जाफर की इस गद्दारी ने भारत में ब्रिटिश शासन की शुरुआत की।उन्होंने युद्ध के दौरान अपनी सेना निष्क्रिय रखी जिससे सिराज की हार हुई।भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी की सत्ता की शुरुआत हुई।

राजा मानसिंह (अंबर के राजा)


राजा मानसिंह अंबर के राजा और अकबर के दरबार के प्रमुख सेनापति थे। जब महाराणा प्रताप ने मुगलों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम छेड़ा, तो मानसिंह ने अकबर का साथ दिया। 1576 में हल्दीघाटी के युद्ध में मानसिंह ने मुगलों की ओर से महाराणा प्रताप के खिलाफ युद्ध किया। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना को भारी नुकसान हुआ, हालांकि वह युद्धभूमि से सुरक्षित निकलने में सफल रहे। मानसिंह की यह गद्दारी राजपूत एकता के लिए एक बड़ा आघात थी।

मीर कासिम (बंगाल)


मीर जाफर के बाद शुरू में अंग्रेजों ने मीर कासिम को नवाब बनाया।बाद में जब मीर कासिम ने अंग्रेजों की नीतियों का विरोध किया, तो अंग्रेजों ने मीर जाफर को फिर से लाकर सत्ता दिलाई।हालांकि मीर कासिम ने अंत में संघर्ष किया, लेकिन सत्ता के लिए अंग्रेजों से समझौता भी किया था।

नवाब शुजाउद्दौला (अवध)


18वीं सदी में 1764 के बक्सर युद्ध में अंग्रेजों के साथ जटिल गठजोड़ बनाए, जिससे बंगाल में ईस्ट इंडिया कंपनी का प्रभाव और बढ़ा।कुछ इतिहासकारों के अनुसार, उन्होंने युद्ध में वास्तविक समर्पण नहीं दिखाया।

पटियाला, नाभा, कापूरथला जैसे रजवाड़ों के राजा (1857)


1857 का स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों ने इन रजवाड़ों को विशेषाधिकार और संरक्षण का वादा किया था।उन्होंने झांसी की रानी, बहादुरशाह ज़फर, नाना साहब और अन्य क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजों की मदद की।विद्रोह असफल रहा और भारत पर अंग्रेजों का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हुआ।

सिंधिया वंश (ग्वालियर)


1857 में ग्वालियर के शासक जयाजीराव सिंधिया ने 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेजों का समर्थन किया, जबकि उनके राज्य में तात्या टोपे और रानी लक्ष्मीबाई जैसे क्रांतिकारी लड़ रहे थे।रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु के बाद ग्वालियर अंग्रेजों के अधीन गया।

हैदराबाद के निजाम


भारत की आजादी के समय (1947-48), भारत की स्वतंत्रता के बाद निजाम ने हैदराबाद को भारत में विलय करने से मना कर दिया और पाकिस्तान से गुप्त संबंध बनाए।उन्होंने रजाकार सेना के माध्यम से भारत के खिलाफ विद्रोह का प्रयास किया।भारतीय सेना ने "ऑपरेशन पोलो" चलाकर हैदराबाद को भारत में मिला लिया।

कश्मीर के महाराजा हरि सिंह (1947)


हरि सिंह ने भारत या पाकिस्तान किसी में विलय नहीं किया और स्वतंत्र राज्य बने रहने की कोशिश की।पाकिस्तानी कबीलाइयों के हमले के बाद उन्होंने भारत से सहायता मांगी और विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए।कुछ इतिहासकारों के अनुसार, प्रारंभिक निर्णय में विलंब ने कश्मीर विवाद को जन्म दिया।

महाराजा नरेंद्र सिंह (पटियाला के शासक)


1857 के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पटियाला के महाराजा नरेंद्र सिंह ने अंग्रेजों का समर्थन किया। जब सिखों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया, तो नरेंद्र सिंह ने विद्रोह को दबाने में अंग्रेजों की सहायता की। उन्होंने अंग्रेजों को सैन्य और रसद सहायता प्रदान की, जिससे विद्रोह को कुचलने में मदद मिली। उनकी इस गद्दारी ने स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर किया और अंग्रेजों की पकड़ को मजबूत किया।

राजा आम्भी (तक्षशिला के शासक)

राजा आम्भी, जिन्हें आम्भीराज भी कहा जाता है, तक्षशिला के शासक थे। जब सिकंदर महान ने भारत पर आक्रमण किया, तो आम्भी ने अपने प्रतिद्वंद्वी राजा पोरस से ईर्ष्या के चलते सिकंदर का साथ दिया। उन्होंने सिकंदर को भारत में प्रवेश करने में सहायता की और पोरस के खिलाफ युद्ध में उसका समर्थन किया। हालांकि, पोरस ने सिकंदर के खिलाफ वीरता से युद्ध किया, लेकिन आम्भी की गद्दारी ने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत में पैर जमाने का अवसर प्रदान किया।

इन उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि व्यक्तिगत स्वार्थ और आपसी वैमनस्य ने भारतीय इतिहास में कई बार देश की स्वतंत्रता और अखंडता को खतरे में डाला। इन गद्दारों की कृत्यों से भारत को दीर्घकालीन गुलामी और विदेशी शासन का सामना करना पड़ा। इतिहास से हमें यह सीख मिलती है कि राष्ट्रीय एकता और समर्पण ही देश की सुरक्षा और समृद्धि के लिए आवश्यक हैं।इन शासकों की कथित गद्दारी या गलत निर्णयों के कारण भारत को अनेक बार आक्रमणों, गुलामी, सत्ता हस्तांतरण और संघर्षों का सामना करना पड़ा। कुछ मामलों में गद्दारी स्पष्ट थी, तो कुछ में राजनीतिक परिस्थितियाँ और विवशताएँ भी थीं। लेकिन इतिहास में इन शासकों को अक्सर नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है, क्योंकि इनके फैसलों से देश को दीर्घकालिक हानि हुई।

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