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Interesting Science Facts: अब मंगल पर भी साँस लेना होगा मुमकिन

Interesting Science Facts: MOXIE एक छोटा-सा यंत्र है, लेकिन इसके पीछे छिपी सोच और विज्ञान बहुत विशाल है।

Shivani Jawanjal
Published on: 8 July 2025 7:19 PM IST
Interesting Science Facts Mangal Grah
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Interesting Science Facts Mangal Grah

Interesting Science Facts: मानव सभ्यता सदियों से सितारों को छूने का सपना देखती आई है और अब यह सपना विज्ञान के पंख लगाकर हकीकत की ओर बढ़ रहा है। अंतरिक्ष अन्वेषण की इस यात्रा में मंगल ग्रह को भविष्य का संभावित घर माना जा रहा है लेकिन वहां जीवन स्थापित करने की राह में सबसे बड़ी बाधा है ऑक्सीजन की कमी। इस मुश्किल को हल करने के लिए नासा ने एक क्रांतिकारी उपकरण विकसित किया है MOXIE (Mars Oxygen In-Situ Resource Utilization Experiment)। यह छोटा-सा यंत्र एक बड़ी उम्मीद लेकर आया है क्योंकि यह मंगल की विषैली वायुमंडलीय परिस्थितियों में भी ऑक्सीजन उत्पन्न करने में सफल रहा है। MOXIE न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टि से एक अद्भुत उपलब्धि है बल्कि यह मंगल पर मानव जीवन की संभावनाओं को साकार करने की दिशा में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर भी है।

आइये जानते है की आखिर MOXIE है क्या और यह कैसे काम करता है?

MOXIE क्या है?


MOXIE जिसका पूरा नाम Mars Oxygen In-Situ Resource Utilization Experiment है नासा के 2020 के Perseverance Rover मिशन का एक अभिनव और महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। इसे विशेष रूप से मंगल ग्रह के वातावरण से ऑक्सीजन निकालने के उद्देश्य से तैयार किया गया है, जहां की हवा लगभग 96% कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) से बनी होती है। MOXIE एक छोटा-सा लेकिन शक्तिशाली उपकरण है जिसे आप एक मिनी 'ऑक्सीजन कारखाने' के रूप में समझ सकते हैं। यह मंगल की वायुमंडलीय CO₂ को खींचकर उसे शुद्ध ऑक्सीजन (O₂) में बदल देता है। इस प्रयोग का मुख्य उद्देश्य यह परखना है कि भविष्य में जब इंसान मंगल पर जाएंगे तो क्या वे वहां की स्थानीय हवा से ही सांस लेने लायक ऑक्सीजन तैयार कर सकेंगे। सीधे शब्दों में कहें तो MOXIE मंगल ग्रह पर 'स्थानीय संसाधनों' का उपयोग कर ऑक्सीजन उत्पादन की दिशा में एक क्रांतिकारी प्रयोग है जो भविष्य के मानव मिशनों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकता है।

MOXIE की आवश्यकता क्यों है?


MOXIE का महत्व केवल तकनीकी प्रयोग तक सीमित नहीं है बल्कि यह भविष्य में मंगल पर मानव जीवन की आधारशिला रखने की दिशा में उठाया गया निर्णायक कदम है। सबसे पहले जब हम मंगल पर मानव बस्ती की कल्पना करते हैं तो वहाँ ऑक्सीजन की आवश्यकता सबसे बड़ी प्राथमिकता बन जाती है। पृथ्वी से ऑक्सीजन लेकर जाना न केवल अत्यधिक महंगा है बल्कि सीमित मात्रा में ही संभव है। ऐसे में मंगल की स्थानीय वायुमंडलीय हवा से ऑक्सीजन बनाना एक आवश्यक समाधान बन जाता है। दूसरा अगर रॉकेट को मंगल से पृथ्वी पर वापस लाना है। तो उसे ईंधन की आवश्यकता होगी, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन (LOX) और मीथेन (CH₄) जैसे तत्व होते हैं। यदि मंगल पर ही ऑक्सीजन तैयार की जा सके तो मिशन की लागत और रॉकेट का भार दोनों में भारी कमी आ सकती है। तीसरा और सबसे अहम पहलू है In-Situ Resource Utilization (ISRU) यानी स्थानीय संसाधनों का उपयोग। MOXIE इसी सिद्धांत पर काम करता है, जो मंगल के वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड से सीधे ऑक्सीजन निकालने की प्रक्रिया को संभव बनाता है। यह आत्मनिर्भरता की ओर एक बड़ा कदम है जो भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों को व्यवहारिक और टिकाऊ बना सकता है।

MOXIE का उद्देश्य

MOXIE न केवल मंगल पर ऑक्सीजन बनाने का पहला प्रयोग था बल्कि यह तकनीकी रूप से बेहद सटीक और वैज्ञानिक दृष्टि से दूरदर्शी योजना थी। इसका उद्देश्य था प्रति घंटे लगभग 6 से 10 ग्राम शुद्ध ऑक्सीजन तैयार करना है । जो मात्रा भले ही कम लगे लेकिन यह एक छोटे कुत्ते के सांस लेने के लिए पर्याप्त होती है और भविष्य में बड़े पैमाने पर ऑक्सीजन उत्पादन की संभावना का संकेत देती है। इस प्रक्रिया में गुणवत्ता को भी प्राथमिकता दी गई। MOXIE द्वारा तैयार की गई ऑक्सीजन की शुद्धता कम-से-कम 98% होनी चाहिए थी ताकि यह न केवल मानव के लिए सांस लेने योग्य हो, बल्कि रॉकेट ईंधन के रूप में भी इस्तेमाल की जा सके। इसके परीक्षण मंगल ग्रह के विभिन्न समयों, मौसमों और वातावरण की स्थितियों में किए गए जिससे यह परखा गया कि यह तकनीक हर परिस्थिति में स्थिर और विश्वसनीय रूप से काम करती है या नहीं। MOXIE का अंतिम और दीर्घकालिक उद्देश्य यही था कि आने वाले मानव मिशनों के लिए मंगल पर ही सांस लेने योग्य हवा और लिक्विड ऑक्सीजन जैसे जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए जा सकें। जिससे पृथ्वी पर निर्भरता घटे और मिशनों की लागत तथा जटिलता कम हो।

MOXIE कैसे काम करता है?


मंगल के वातावरण में लगभग 96% कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) होती है। MOXIE इसी CO₂ से ऑक्सीजन निकालता है।

MOXIE की कार्यप्रणाली एक अत्याधुनिक इलेक्ट्रोकेमिकल प्रक्रिया पर आधारित है जिसे Solid Oxide Electrolysis कहा जाता है। यह उपकरण सबसे पहले मंगल के वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) को पंप करके उसे संपीड़ित (compress) और शुद्ध (purify) करता है। इसके बाद इस शुद्ध CO₂ को लगभग 800 डिग्री सेल्सियस के उच्च तापमान पर गर्म किया जाता है जिससे इलेक्ट्रोलाइटिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके। इस प्रणाली में एक सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलाइट का प्रयोग होता है। जो दो इलेक्ट्रोड्स कैथोड और एनोड के बीच कार्य करता है। जब इन इलेक्ट्रोड्स के बीच विद्युत धारा प्रवाहित होती है तो CO₂ अणु टूटते हैं और रासायनिक प्रतिक्रिया होती है: CO₂ → CO + ½ O₂,

अर्थात एक CO₂ अणु से एक कार्बन मोनोऑक्साइड और आधा ऑक्सीजन अणु बनता है। ऑक्सीजन आयन इलेक्ट्रोलाइट से होकर गुजरते हैं और अंततः शुद्ध ऑक्सीजन गैस के रूप में बाहर निकलते हैं। यह उत्पन्न ऑक्सीजन 98% या उससे अधिक शुद्धता वाली होती है जिसकी मात्रा और गुणवत्ता को संवेदनशील उपकरणों से मापा और रिकॉर्ड किया जाता है। चूंकि यह प्रक्रिया अभी परीक्षण चरण में थी इसलिए बनाई गई ऑक्सीजन को संग्रहीत करने के बजाय मंगल के वातावरण में ही छोड़ दिया गया। यह संपूर्ण प्रक्रिया यह साबित करती है कि मंगल पर स्थानीय संसाधनों का उपयोग कर विश्वसनीय रूप से ऑक्सीजन तैयार की जा सकती है।

MOXIE की तकनीकी विशेषताएं

MOXIE (Mars Oxygen In-Situ Resource Utilization Experiment) एक अत्याधुनिक उपकरण है, जिसे मंगल ग्रह के वातावरण से ऑक्सीजन निकालने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इसका आकार लगभग एक टोस्टर, माइक्रोवेव ओवन या कार बैटरी के बराबर है जिसकी माप लगभग 25×25×30 सेंटीमीटर और वजन लगभग 17 किलोग्राम है। MOXIE की संरचना में कुल 10 इलेक्ट्रोलाइटिक सेल्स होते हैं जिन्हें दो स्टैक्स में विभाजित किया गया है। इसके मुख्य घटकों में इलेक्ट्रोलाइट के रूप में स्कैंडिया-स्टेबलाइज्ड ज़िरकोनिया (ScSZ), कैथोड के लिए विशेष सर्मेट और एनोड के लिए पेरोव्स्काइट सामग्री का उपयोग किया गया है। मंगल के वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को खींचकर MOXIE तक पहुंचाने के लिए इसमें स्क्रोल कंप्रेसर आधारित गैस डिलीवरी सिस्टम लगाया गया है। संचालन के दौरान इसका आंतरिक रिएक्टर लगभग 800°C के उच्च तापमान पर काम करता है जबकि बाहरी ढांचा -65°C तक के ठंडे मंगल वातावरण में भी कार्य करने में सक्षम है। MOXIE की उत्पादन क्षमता लगभग 10 ग्राम ऑक्सीजन प्रति घंटे है जो कि एक औसत पेड़ द्वारा उत्पादित ऑक्सीजन के बराबर मानी जा सकती है। यह उपकरण 99.6% से अधिक शुद्धता वाली ऑक्सीजन बनाने में सक्षम है और भविष्य के मानव मंगल अभियानों के लिए सांस लेने योग्य हवा तथा रॉकेट ईंधन के रूप में ऑक्सीजन उत्पादन की संभावनाओं का सफलतापूर्वक परीक्षण करता है।

MOXIE की उपलब्धियाँ

20 अप्रैल 2021 को MOXIE ने मंगल ग्रह के वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड से पहली बार सफलतापूर्वक ऑक्सीजन बनाई। यह प्रक्रिया सॉलिड ऑक्साइड इलेक्ट्रोलिसिस तकनीक के माध्यम से संभव हुई और इसी के साथ यह इतिहास बन गया । क्योंकि यह पहली बार था जब किसी अन्य ग्रह पर प्राकृतिक संसाधनों से मानव उपयोग के लिए ऑक्सीजन उत्पन्न की गई। 2021 से 2023 तक के अंतराल में MOXIE ने कुल 16 बार विभिन्न परिस्थितियों दिन और रात, ठंडी जलवायु और यहां तक कि धूल भरी आंधियों में सफलतापूर्वक ऑक्सीजन तैयार की। इन परीक्षणों के दौरान MOXIE ने कुल 122 ग्राम शुद्ध ऑक्सीजन बनाई है जो एक छोटे कुत्ते के लगभग 10 घंटे की सांस लेने के लिए पर्याप्त है। एक परीक्षण में MOXIE ने 12 ग्राम प्रति घंटा की दर से ऑक्सीजन उत्पन्न की जो किसी व्यक्ति के लगभग 10 मिनट की सांसों के लिए पर्याप्त है। यह आंकड़ा नासा के मूल लक्ष्य से लगभग दोगुना था। खास बात यह रही कि उत्पन्न ऑक्सीजन की शुद्धता 98% से अधिक रही, जो इसे सांस लेने योग्य और रॉकेट ईंधन दोनों के लिए उपयुक्त बनाती है। MOXIE की यह उपलब्धि मंगल पर भविष्य में मानव मिशनों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम साबित हुई है।

MOXIE का वैज्ञानिक और तकनीकी महत्व

MOXIE की तकनीक केवल एक प्रयोग नहीं, बल्कि भविष्य के मंगल मिशनों की नींव है। जब इंसान मंगल पर जाएंगे तो वहां सांस लेने योग्य ऑक्सीजन की आवश्यकता सबसे बुनियादी जरूरत होगी, जिसे पृथ्वी से ले जाना महंगा और अव्यवहारिक होगा। MOXIE जैसी तकनीकों से वहीं की हवा से ऑक्सीजन तैयार की जा सकती है जिससे न केवल जीवन संभव होगा बल्कि मिशनों की स्थिरता भी सुनिश्चित होगी। इसके अलावा मंगल से पृथ्वी की वापसी के लिए रॉकेट को भारी मात्रा में लिक्विड ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी। यदि यह ऑक्सीजन मंगल पर ही बन जाए तो मिशन की लागत, भार और जटिलता में भारी कमी आ सकती है। और जब हम भविष्य में मंगल पर स्थायी बस्तियाँ बसाने की बात करते हैं तो वहाँ के स्थानीय संसाधनों का उपयोग (In-Situ Resource Utilization - ISRU) अनिवार्य हो जाता है। MOXIE इस दिशा में पहला और मजबूत कदम है जो मंगल पर आत्मनिर्भर मानव उपनिवेश की कल्पना को साकार करने के बेहद करीब पहुंचा रहा है।

MOXIE के भविष्य के उपयोग और विस्तार


MOXIE फिलहाल एक प्रोटोटाइप डेमोंस्ट्रेशन उपकरण है जिसे नासा के Perseverance रोवर पर मंगल पर भेजा गया ताकि इसकी व्यवहारिकता का परीक्षण किया जा सके। हालांकि यह आकार में छोटा है लेकिन इसके पीछे की तकनीक ने एक बड़ी संभावना को जन्म दिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि भविष्य में मानव मिशन मंगल पर भेजे जाते हैं तो MOXIE जैसी तकनीक को 100 गुना बड़े पैमाने पर विकसित करना होगा। ताकि न केवल इंसानों के सांस लेने के लिए बल्कि रॉकेट ईंधन के रूप में उपयोग के लिए भी पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध कराई जा सके। यह स्थानीय ऑक्सीजन उत्पादन दीर्घकालिक मानव उपस्थिति के लिए अनिवार्य होगा जिससे मंगल पर लंबे समय तक रहना संभव हो सकेगा। यही नहीं In-Situ Resource Utilization (ISRU) की यह अवधारणा- जिसमें स्थानीय संसाधनों से ज़रूरी चीजें तैयार की जाती हैं, चंद्रमा और अन्य ग्रहों पर भी लागू की जा सकती है। MOXIE की सफलता ने पहली बार यह सिद्ध कर दिखाया है कि किसी अन्य ग्रह के वायुमंडल से सांस लेने योग्य ऑक्सीजन तैयार करना संभव है। यह न केवल तकनीकी दृष्टि से क्रांतिकारी उपलब्धि है बल्कि अंतरिक्ष अन्वेषण के भविष्य को एक नई दिशा देने वाला मील का पत्थर भी है।

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