क्यों छत्रपति शिवाजी महाराज के नाम के साथ गूंजता है ‘जय भवानी’ का उद्घोष? जानिए ऐतिहासिक कारण

‘जय भवानी, जय शिवाजी’ केवल नारा नहीं, मराठा शौर्य और आस्था का प्रतीक है। जानिए कैसे देवी भवानी की कृपा और शिवाजी महाराज की वीरता से यह उद्घोष जन्मा और क्यों आज भी महाराष्ट्र की संस्कृति में यह गूंजता है।

Jyotsana Singh
Published on: 23 Oct 2025 5:02 PM IST
Jai Bhavani Jai Shivaji
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Jai Bhavani Jai Shivaji (Image Credit-Social Media)

Chhatrapati Shivaji Maharaj: इतिहास के पन्नों पर दर्ज युद्धों में क्षत्रियों और मुगलों के बीच संघर्ष के दौरान 'जय भवानी' के नारों की गूंज का उद्घोष सैनिकों में जोश भरने का काम करता था। लेकिन क्या आपको पता हैं कि उस उद्घोष की उत्पत्ति कैसे हुई?असल में इस उद्घोष का सीधा नाता छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़ा है। भारत के इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम केवल एक योद्धा या राजा के रूप में नहीं, बल्कि एक ऐसे राष्ट्रनायक के रूप में लिया जाता है जिन्होंने धर्म, स्वाभिमान और स्वतंत्रता की मशाल जलाकर पूरे देश को प्रेरित किया। जब भी उनका नाम लिया जाता है, लोग एक सुर में गर्जना करते हैं, 'जय भवानी, जय शिवाजी!' महाराष्ट्र में आज भी यह नारा केवल एक उद्घोष नहीं, बल्कि एक भावना, एक संस्कार और इतिहास का एक अमिट हिस्सा है जो मराठा साम्राज्य की आत्मा को दर्शाता है। आखिर इस नारे के पीछे क्या है कहानी? आइए जानते हैं विस्तार से -

शिवनेरी से शुरू हुआ शौर्य का अध्याय


19 फरवरी 1630 (कुछ इतिहासकार 1627 बताते हैं) को पुणे के पास स्थित शिवनेरी दुर्ग पर जन्मे शिवाजी भोंसले, मराठा साम्राज्य के संस्थापक बने। उनके पिता शाहजी भोंसले एक पराक्रमी सेनानायक थे और माता जीजाबाई धर्मनिष्ठा, साहस और आदर्शों की प्रतीक। जीजाबाई ने बचपन से ही शिवाजी को रामायण-महाभारत की वीर कथाएं सुनाकर उनमें धर्म, न्याय और मातृभूमि की सेवा का भाव भरा। इसी मातृ संस्कार ने आगे चलकर उन्हें 'हिंदवी स्वराज' का निर्माता बनाया।

भवानी माता के उपासक थे शिवाजी महाराज

शिवाजी महाराज की भक्ति केवल शब्दों में नहीं थी, बल्कि उनके जीवन का केंद्र बिंदु थी। महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के तुलजापुर में स्थित मां तुलजा भवानी उनके कुलदेवी स्वरूप में प्रतिष्ठित हैं। कहा जाता है कि शिवाजी महाराज हर युद्ध से पहले तुलजा भवानी की पूजा करते थे। वे मानते थे कि देवी ही उन्हें शक्ति और विजय का आशीर्वाद देती हैं।

‘भवानी की तलवार’ थी आस्था और पराक्रम का प्रतीक

किंवदंती है कि एक बार शिवाजी महाराज ने तुलजा भवानी माता की कठोर साधना की, जिससे प्रसन्न होकर देवी ने स्वयं उन्हें एक दिव्य तलवार प्रदान की। इस तलवार को 'भवानी तलवार' कहा गया, जो बाद में उनके साहस और विजय का प्रतीक बन गई। इसी तलवार के बल पर उन्होंने मुगलों, निजामों और आदिलशाही की शक्तियों को परास्त किया और मराठा साम्राज्य की नींव रखी। कहा जाता है कि यह तलवार अब लंदन के एक संग्रहालय में संरक्षित है। लेकिन भारतीय जनमानस में यह तलवार आज भी शिवाजी की आत्मा के समान अमर है।

कैसे बना नारा ' जय भवानी, जय शिवाजी'


जब भी शिवाजी महाराज युद्धभूमि में उतरते थे, उनके सैनिकों के मुख से एक ही नारा गूंजता था, 'हर हर महादेव' और 'जय भवानी की जय'। देवी भवानी की जय के साथ यह नारा उनके साहस, आस्था और धर्म की रक्षा की प्रतिज्ञा का प्रतीक था। बाद के वर्षों में जब लोग शिवाजी महाराज की विजयगाथा गाने लगे, तो इस उद्घोष के साथ 'जय शिवाजी' जोड़ा गया।

इस तरह 'जय भवानी, जय शिवाजी' केवल एक युद्धघोष नहीं रहा, बल्कि वह मराठा साम्राज्य की पहचान बन गया। जहां एक ओर माता की कृपा है, वहीं दूसरी ओर उनके वीर पुत्र के सहस के साथ यह नारा आस्था (भवानी) और नेतृत्व (शिवाजी) के मिलन का प्रतीक बन चुका है।

मराठा संस्कृति में क्यों है इस नारे का गौरवपूर्ण स्थान?

आज भी महाराष्ट्र में जब भी शिवाजी महाराज की जयंती या पुण्यतिथि मनाई जाती है, तो पूरा वातावरण 'जय भवानी, जय शिवाजी' के उद्घोष से गूंज उठता है।

पालकी शोभायात्राओं में, जुलूसों में, मंदिरों में और विद्यालयों के आयोजनों में लोग श्रद्धा से यह नारा लगाते हैं। महिलाएं 'आज की माता कैसी हो, जीजामाता जैसी हो' कहकर जीजाबाई के संस्कारों को याद करती हैं, और युवा 'आज का पुत्र कैसा हो, वीर शिवाजी जैसा हो' कहकर अपने भीतर साहस और देशभक्ति की भावना जगाते हैं।

शिवाजी महाराज ने केवल तलवार से नहीं, बल्कि नीति और सदाचार से भी राज किया। उन्होंने अपने शासन में धार्मिक सहिष्णुता, प्रशासनिक न्याय और जनता की सुरक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया। वे किसी भी धर्म के प्रति पक्षपात नहीं करते थे इसीलिए मुस्लिम सैनिकों और दरबारियों को भी समान सम्मान देते थे।

उनके लिए 'जय भवानी' केवल धार्मिक नारा नहीं था, बल्कि यह उस धर्म की जय थी जो न्याय, मर्यादा और आत्मसम्मान सिखाता है।

डिस्क्लेमर:

इस लेख में दी गई ऐतिहासिक जानकारियां विभिन्न ऐतिहासिक ग्रंथों, लोककथाओं और उपलब्ध स्रोतों पर आधारित हैं। देवी भवानी द्वारा छत्रपति शिवाजी महाराज को तलवार प्रदान किए जाने जैसी घटनाएं पौराणिक और लोकमान्य परंपराओं से जुड़ी हैं, जिनका उल्लेख श्रद्धा और सांस्कृतिक दृष्टि से किया गया है। इसका उद्देश्य किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाना नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास और परंपरा के प्रति सम्मान व्यक्त करना है।

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Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

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