Maratha Samrajya Ka Itihas: नागपुर में मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले रघुजी भोसले कौन थे? जानिए उनका गौरवशाली इतिहास

Maratha Samrajya Ke Bare Mein Jankari: आज भी रघुजी भोसले को नागपुर के निर्माता के रूप में याद किया जाता है।

Shivani Jawanjal
Published on: 30 July 2025 1:28 PM IST
Maratha Samrajya Ka Itihas
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Maratha Samrajya Ka Itihas

Maratha Samrajya Ke Bare Mein Jankari: भारतीय इतिहास में मराठा साम्राज्य का योगदान अद्वितीय रहा है। यह साम्राज्य न केवल औरंगज़ेब जैसे मुग़ल सम्राट के सामने अडिग रहा बल्कि भारत के विभिन्न हिस्सों में अपनी शाखाएँ भी स्थापित कीं। इन्हीं शाखाओं में से एक थी नागपुर की भोसले शाखा, जिसके संस्थापक रघुजी राजे भोसले थे। रघुजी भोसले न केवल एक पराक्रमी योद्धा थे बल्कि एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी नेता भी थे। इस लेख में हम रघुजी भोसले के जीवन, युद्ध, प्रशासनिक कार्यों और उनके द्वारा स्थापित नागपुर साम्राज्य के इतिहास को विस्तार से समझेंगे।

मराठा साम्राज्य की पृष्ठभूमि

मराठा साम्राज्य की स्थापना 17वीं शताब्दी में महान योद्धा छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी, जिन्होंने 1674 के आसपास मराठा शक्ति की मजबूत नींव रखी। उनके बाद उत्तराधिकारियों ने इस साम्राज्य को संभाला लेकिन 18वीं सदी में पेशवाओं का प्रभाव तेज़ी से बढ़ा और वे शासन के प्रमुख केंद्र बन गए। इसी काल में रघुजी भोसले जैसे वीर मराठा सरदारों का उदय हुआ। जिन्हें पेशवाओं ने पूर्वी भारत की ओर मराठा प्रभाव फैलाने का जिम्मा सौंपा। रघुजी भोसले नागपुर(Nagpur) के भोसले वंश से थे और उन्होंने बिहार, झारखंड और बंगाल के क्षेत्रों में मराठा शक्ति का विस्तार कर साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।

रघुजी राजे भोसले का प्रारंभिक जीवन


रघुजी भोसले का जन्म 18वीं शताब्दी की शुरुआत में माना जाता है और वे मराठा साम्राज्य के प्रतिष्ठित भोसले वंश से संबंध रखते थे। जो छत्रपति शिवाजी महाराज के परिवार का ही एक अंग था। भोसले वंश, विशेषकर सतारा शाखा के मराठा दरबार में एक प्रभावशाली स्थान रखता था। रघुजी भोसले अपने समय के अत्यंत प्रतिभाशाली सेनापति और प्रशासक थे। ऐतिहासिक विवरणों से स्पष्ट होता है कि वे न केवल युद्ध कौशल में दक्ष थे बल्कि रणनीति और शासन व्यवस्था में भी निपुण थे। पेशवा बाजीराव प्रथम ने रघुजी भोसले की इन योग्यताओं को पहचानते हुए उन्हें पूर्वी भारत में मराठा शक्ति फैलाने का कार्य सौंपा। उन्होंने नागपुर को अपनी सत्ता का केंद्र बनाया और विदर्भ, गोंडवाना, बंगाल तथा आसपास के क्षेत्रों में मराठा प्रभाव को सुदृढ़ किया।

नागपुर की ओर प्रस्थान और गोंडवाना विजय


18वीं शताब्दी के प्रारंभिक मध्य काल में रघुजी भोसले ने गोंडवाना क्षेत्र की ओर कूच किया। जो वर्तमान में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है । उस समय यह क्षेत्र विभिन्न गोंड राजाओं के अधीन था, जहां सत्ता संघर्ष और उत्तराधिकार को लेकर गहरी खींचातानी चल रही थी। रघुजी भोसले ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए पहले तो गोंड राजाओं जैसे रघुजी शाह और चंद्र शाह के बीच चल रहे विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभाई। लेकिन बाद में उन्होंने अपनी सैन्य शक्ति के बल पर इस क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित कर लिया। इस सफलता के बाद उन्होंने 1739 के आसपास नागपुर को अपनी राजधानी घोषित किया। जिससे नागपुर मराठा साम्राज्य का एक प्रमुख प्रशासनिक और सैन्य केंद्र बन गया। जिसके बाद नागपुर की यह स्थिति भोसले वंश के शासन में और भी सुदृढ़ होती चली गई।

पूर्वी भारत में मराठा प्रभुत्व

रघुजी भोसले ने अपने शासनकाल में मराठा साम्राज्य का क्षेत्रीय विस्तार अत्यंत प्रभावशाली रूप से किया। 1741 में उन्होंने उड़ीसा पर आक्रमण किया और एक दशक तक चले संघर्ष के बाद 1751 में नवाब अलीवर्दी खान के साथ संधि कर उड़ीसा को मराठा साम्राज्य में मिला लिया। इस विजय के पश्चात न केवल प्रशासनिक रूप से मराठा शासन स्थापित हुआ, बल्कि उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण के अंतर्गत पुरी के प्रसिद्ध श्री जगन्नाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी करवाया।

इसके साथ ही रघुजी भोसले ने बंगाल में कई सैन्य अभियानों का नेतृत्व किया और अलीवर्दी खान के विरुद्ध अनेक युद्ध लड़े। उनकी सेनाएं बंगाल की राजधानी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) के समीप तक पहुँच गई थीं, जिससे ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी सतर्क हो उठी। उन्होंने बंगाल से ‘चौथ’ (कर) वसूलना प्रारंभ किया, जो मराठा साम्राज्य की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गया।

रघुजी भोसले के अधीन मराठा प्रभाव नर्मदा नदी से लेकर गंगा और महानदी तक फैल गया था। उनके शासन में विदर्भ, गोंडवाना, उड़ीसा, बंगाल, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे विस्तृत क्षेत्र शामिल हो गए थे। जिससे मराठा साम्राज्य उत्तर और पूर्व भारत में भी एक प्रभावशाली शक्ति के रूप में स्थापित हो गया।

प्रशासनिक कौशल और लोकहित के कार्य

रघुजी भोसले न केवल एक पराक्रमी योद्धा थे बल्कि एक दूरदर्शी और कुशल प्रशासक भी माने जाते हैं। उन्होंने नागपुर को न केवल मराठा साम्राज्य का राजनीतिक केंद्र बनाया बल्कि इसे प्रशासनिक, आर्थिक और सांस्कृतिक रूप से भी समृद्ध किया। उनके शासनकाल में न्याय व्यवस्था को सुव्यवस्थित किया गया, कर-संग्रहण की प्रभावशाली प्रणाली विकसित हुई और जल प्रबंधन के लिए तालाबों एवं नालों का निर्माण कराया गया। जिससे कृषि और जनजीवन में सुधार हुआ। व्यापार को प्रोत्साहित करने के लिए बाज़ार व्यवस्था और व्यापारिक मार्गों को भी संगठित किया गया।

रघुजी भोसले ने नागपुर में कई किलों, मंदिरों और सार्वजनिक संरचनाओं का निर्माण कराया तथा पुराने ढांचों का जीर्णोद्धार भी करवाया। तालाबों और सड़कों के निर्माण ने शहर की आधारभूत संरचना को मजबूत किया, जिससे नागपुर एक विकसित और संगठित नगर के रूप में उभरा।

इसके साथ ही उन्होंने सामाजिक समरसता को भी महत्व दिया। गोंड और अन्य जनजातीय समुदायों को प्रशासन में भागीदारी दी गई। जिससे स्थानीय लोगों में शासन के प्रति विश्वास और सहयोग की भावना विकसित हुई। इन प्रयासों ने रघुजी भोसले को एक न्यायप्रिय, समावेशी और प्रभावशाली प्रशासक के रूप में इतिहास में स्थापित किया।

ब्रिटिशों से टकराव की शुरुआत

घुजी भोसले का शासनकाल जो 18वीं शताब्दी के मध्य (लगभग 1728 से 1755) तक फैला रहा, मराठा साम्राज्य के विस्तार, स्थायित्व और प्रशासनिक सुदृढ़ता का एक स्वर्णिम अध्याय माना जाता है। विशेष रूप से पूर्वी भारत जैसे ओड़िशा, बंगाल और छत्तीसगढ़ में उन्होंने मराठा प्रभाव को सफलतापूर्वक स्थापित किया और नागपुर को एक सशक्त, संगठित तथा लगभग स्वतंत्र मराठा राज्य के रूप में विकसित किया। उनके शासन में नागपुर न केवल राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बना बल्कि यह पूर्वी भारत में मराठा शक्ति का केन्द्र भी बन गया।

इसी दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भी बंगाल में अपना प्रभाव बढ़ा रही थी और नवाब अलीवर्दी खान तथा मराठों के बीच लगातार संघर्ष चल रहा था। रघुजी भोसले ने ब्रिटिश हस्तक्षेप का कड़ा विरोध किया और बंगाल एवं ओड़िशा में ‘चौथ’ (कर) वसूली के लिए अनेक सैन्य अभियानों का संचालन किया। जिससे अंग्रेजों की चिंता बढ़ गई। उन्होंने स्थानीय नवाबों और अप्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश सेनाओं से भी टक्कर ली जिससे यह क्षेत्र बार-बार संघर्ष का केंद्र बना रहा।

मृत्यु और उत्तराधिकार

रघुजी भोसले प्रथम का निधन 14 फरवरी 1755 को हुआ, जिसके साथ ही मराठा साम्राज्य के एक अत्यंत प्रभावशाली युग का अंत हुआ। वे नागपुर में भोसले वंश के संस्थापक और मराठा साम्राज्य के पूर्वी विस्तार के प्रमुख सूत्रधार थे। उनके नेतृत्व में नागपुर एक शक्तिशाली और संगठित मराठा राज्य के रूप में उभरा था। उनके निधन के बाद उनके पुत्र जानोजी (जन्मोजी) भोसले ने गद्दी संभाली और बाद में रघुजी द्वितीय ने शासन किया। यद्यपि इन उत्तराधिकारियों को मराठा दरबार में प्रमुख शासकों के रूप में जाना गया। परंतु वे रघुजी प्रथम जैसी सैन्य दक्षता और प्रशासनिक सूझबूझ नहीं दिखा सके। कालांतर में मराठा सत्ता कमजोर पड़ी और 1817 में सीताबुलड़ी की प्रसिद्ध लड़ाई में नागपुर की भोसले सेना अंग्रेजों से पराजित हो गई।

फिर भी उनके काल में नागपुर का प्रशासनिक ढांचा अपेक्षाकृत मजबूत बना रहा और राज्य में स्थायित्व कायम रहा। लेकिन जैसे-जैसे 19वीं सदी का आगमन हुआ, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ाया और अंततः 1853 में नागपुर रियासत को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया। इस प्रकार एक शक्तिशाली मराठा शक्ति का अंत हुआ और नागपुर ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया।

नागपुर में भोसले वंश का महत्व

रघुजी भोसले प्रथम द्वारा स्थापित नागपुर भोसले राजवंश ने 18वीं शताब्दी में मराठा साम्राज्य के पूर्वी विस्तार को एक नई दिशा दी। उनके नेतृत्व में नागपुर न केवल एक सैन्य और राजनीतिक शक्ति केंद्र बना बल्कि सांस्कृतिक, आर्थिक और प्रशासनिक दृष्टि से भी यह क्षेत्र प्रमुखता प्राप्त करने लगा। रघुजी भोसले के शासन में नगर की संरचना, व्यापार व्यवस्था, जल प्रबंधन, धार्मिक स्थलों और किलों के निर्माण व संरक्षण ने नागपुर को एक समृद्ध और संगठित नगर के रूप में स्थापित किया।

नागपुर की इस केंद्रीय भूमिका को दर्शाने वाले कई ऐतिहासिक स्थल आज भी विद्यमान हैं।

देवगढ़ किला - देवगढ़ किला जो नागपुर के समीप स्थित है, उस समय क्षेत्रीय सुरक्षा और सामरिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण था और भोसले शासनकाल में इसका संवर्धन किया गया।

भोसला पैलेस - भोसला पैलेस जो नागपुर में भोसले परिवार का राजकीय निवास रहा है, आज भी पारिवारिक इतिहास और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का केंद्र बना हुआ है।

शाही तालाब और मंदिर - इसके अतिरिक्त भोसले शासकों द्वारा बनवाए गए कई शाही तालाब और मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक हैं। बल्कि वे तत्कालीन जनकल्याण और शहरी विकास के प्रतीक भी हैं। ये स्थल आज भी रघुजी भोसले के समृद्ध और दूरदर्शी शासन की गवाही देते हैं।

इतिहास में रघुजी राजे भोसले की भूमिका

भारतीय इतिहास में रघुजी भोसले को एक दूरदर्शी योद्धा और कुशल प्रशासक के रूप में जाना जाता है। वे छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत को पूर्व भारत तक पहुँचाने वाले सबसे प्रमुख सेनापति थे। उन्होंने एक ऐसे राज्य की स्थापना की जो न केवल सैन्य शक्ति से संपन्न था बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी उन्नत था।

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