×

चम्पानेर की रानी रुद्राबाई और उनकी गुप्त सेना: एक अनसुनी वीरता की कहानी

Queen Rudrabai of Champaner: क्या आप जानते हैं कि क्या थी चम्पानेर की रानी रुद्राबाई की कहानी और कैसे उन्होंने अपनी रणनीति, बुद्धिमत्ता और एक गुप्त सेना का निर्माण किया।

Akshita Pidiha
Published on: 30 Jun 2025 7:28 PM IST
Queen Rudrabai of Champaner
X

Queen Rudrabai of Champaner (Image Credit-Social Media)

Queen Rudrabai of Champaner: 15वीं शताब्दी का भारत एक ऐसा दौर था, जब छोटी-छोटी रियासतें अपनी आजादी के लिए बड़े साम्राज्यों से जूझ रही थीं। गुजरात में उस समय सुल्तानों का राज था, लेकिन कई छोटे राजपूत और स्थानीय शासक अपनी स्वतंत्रता बचाने की कोशिश में लगे थे। इन्हीं में से एक थी चम्पानेर की रियासत, जो आज के गुजरात के पंचमहल जिले में बसी है। इस रियासत की रानी रुद्राबाई ने 1484 में मुगल शासक महमूद बेगड़ा के खिलाफ अपनी गुप्त सेना के साथ मिलकर ऐसा प्रतिरोध किया, जिसने इतिहास में अपनी जगह बनाई। लेकिन यह कहानी समय के साथ दब गई, क्योंकि चम्पानेर बाद में महमूद बेगड़ा के कब्जे में आ गया। रानी रुद्राबाई की यह गाथा न सिर्फ उनकी वीरता की है, बल्कि उनकी रणनीति, बुद्धिमत्ता और एक गुप्त सेना के निर्माण की भी है, जिसने पहाड़ों और जंगलों को अपना हथियार बनाया। आइए, इस अनसुनी कहानी को खोलते हैं।

चम्पानेर, जो आज यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है, 15वीं शताब्दी में एक छोटी लेकिन समृद्ध रियासत थी। यह पावागढ़ पहाड़ी के नीचे बसा था, जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण था। चम्पानेर व्यापार का केंद्र था, जहाँ मालवा, खानदेश और गुजरात के व्यापारी माल का लेन-देन करते थे। यहाँ की संस्कृति में राजपूत, जैन और स्थानीय आदिवासी परंपराओं का मिश्रण था। चम्पानेर के राजा, रावल जयसिंह, एक राजपूत शासक थे, जिन्होंने इस रियासत को एक किले के रूप में मजबूत किया था।


रानी रुद्राबाई, जिनका जन्म 1450 के आसपास हुआ था, रावल जयसिंह की पत्नी थीं। उनका परिवार मेवाड़ के राजपूतों से संबंधित था, और बचपन से ही उन्हें युद्ध कला, घुड़सवारी और शासन की बारीकियाँ सिखाई गई थीं। रुद्राबाई न सिर्फ सुंदर थीं, बल्कि उनकी बुद्धिमत्ता और साहस की कहानियाँ चम्पानेर में मशहूर थीं। जब 1479 में रावल जयसिंह की मृत्यु हुई, तो रुद्राबाई ने अपने नाबालिग बेटे वीरसिंह के लिए रियासत की बागडोर संभाली। उस समय उनकी उम्र करीब 30 साल थी, और चम्पानेर पर गुजरात सल्तनत के सुल्तान महमूद बेगड़ा की नजर थी।

महमूद बेगड़ा: एक ताकतवर सुल्तान

महमूद बेगड़ा, जिनका असली नाम महमूद शाह प्रथम था, 1459 से 1511 तक गुजरात सल्तनत का सुल्तान था। वह एक कुशल और महत्वाकांक्षी शासक था, जिसने गुजरात को एक ताकतवर साम्राज्य बनाया। उसने जूनागढ़, सौराष्ट्र और खानदेश के कई हिस्सों को अपने कब्जे में किया। चम्पानेर उसका अगला लक्ष्य था, क्योंकि यह रियासत न सिर्फ धनवान थी, बल्कि इसकी पावागढ़ पहाड़ी एक रणनीतिक गढ़ थी। महमूद बेगड़ा ने 1482 में चम्पानेर पर हमले की योजना बनाई, लेकिन रुद्राबाई की रणनीति ने उसे कई साल तक रोके रखा।

महमूद बेगड़ा की सेना में हजारों सैनिक, घुड़सवार और तोपें थीं। उसका मकसद न सिर्फ चम्पानेर को जीतना था, बल्कि पूरे गुजरात में अपनी सत्ता को मजबूत करना था। लेकिन रुद्राबाई ने साबित किया कि एक छोटी रियासत भी सही रणनीति और हिम्मत से बड़ी सेना को टक्कर दे सकती है।

रुद्राबाई की गुप्त सेना

रुद्राबाई को पता था कि चम्पानेर की छोटी सेना महमूद बेगड़ा के सामने सीधे टकराव में नहीं टिक सकती। इसलिए उन्होंने एक अनोखी रणनीति बनाई। उन्होंने पावागढ़ के जंगलों और पहाड़ियों में एक गुप्त सेना तैयार की, जिसमें स्थानीय आदिवासी, राजपूत योद्धा और कुछ भाड़े के सैनिक शामिल थे। इस सेना का नेतृत्व रुद्राबाई ने खुद किया, लेकिन इसका आधार था गोपनीयता और छापामार युद्ध।

पावागढ़ की पहाड़ियाँ और घने जंगल रुद्राबाई के लिए एक बड़ा हथियार थे। उन्होंने आदिवासियों को संगठित किया, जो जंगल के रास्तों और छिपने की जगहों को अच्छे से जानते थे। इन आदिवासियों में भील और कोली समुदाय के लोग शामिल थे, जो तीरंदाजी और भाले से युद्ध में माहिर थे। रुद्राबाई ने इन योद्धाओं को प्रशिक्षण दिया और उन्हें छोटी-छोटी टुकड़ियों में बाँटा। ये टुकड़ियाँ रात के अंधेरे में या जंगल की आड़ में सुल्तान की सेना पर हमला करती थीं।

रुद्राबाई ने अपने गुप्तचरों का एक जाल भी बनाया, जो सुल्तान की सेना की गतिविधियों की खबर लाते थे। ये गुप्तचर गाँवों में साधारण किसान या व्यापारी बनकर रहते थे, लेकिन रात में रुद्राबाई को सारी जानकारी देते। इस तरह, रुद्राबाई हमेशा सुल्तान की अगली चाल से एक कदम आगे रहती थीं। उनकी सेना ने सुल्तान के आपूर्ति मार्गों पर हमले किए, उनके घोड़ों को भगाया और छोटे शिविरों को नष्ट किया। यह छापामार युद्ध इतना प्रभावी था कि महमूद बेगड़ा को कई बार अपनी रणनीति बदलनी पड़ी।

1484 का प्रतिरोध

1484 में महमूद बेगड़ा ने चम्पानेर पर पूर्ण हमला बोला। उसकी सेना ने पावागढ़ के किले को घेर लिया। लेकिन रुद्राबाई ने पहले से ही अपनी गुप्त सेना को तैनात कर रखा था। उन्होंने किले की रक्षा के लिए एक हिस्सा छोड़ा, लेकिन बाकी सेना को जंगल में छिपा दिया। जब सुल्तान की सेना किले की ओर बढ़ी, तो जंगल से रुद्राबाई की टुकड़ियाँ निकलीं और छापामार हमले शुरू कर दिए। तीरों की बौछार, भाले और रात के अंधेरे में किए गए हमलों ने सुल्तान की सेना को परेशान कर दिया।


रुद्राबाई ने एक और चाल चली। उन्होंने सुल्तान को यह विश्वास दिलाया कि चम्पानेर की सेना कमजोर है और जल्दी हार मान लेगी। इसके लिए उन्होंने कुछ गुप्तचरों को सुल्तान के शिविर में भेजा, जो गलत जानकारी फैलाते थे। सुल्तान को लगा कि वह आसानी से जीत जाएगा, लेकिन रुद्राबाई की रणनीति ने उसे कई महीनों तक उलझाए रखा। स्थानीय किंवदंतियों के अनुसार, रुद्राबाई खुद कई बार पुरुष वेश में जंगल में अपनी सेना का नेतृत्व करती थीं। उनकी हिम्मत और चतुराई ने सैनिकों का मनोबल बढ़ाया।

लेकिन 1484 के अंत तक, सुल्तान की सेना की ताकत और संसाधनों ने चम्पानेर को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। रुद्राबाई ने आखिरी बार किले की रक्षा की कोशिश की, लेकिन सुल्तान की तोपों और विशाल सेना के सामने चम्पानेर हार गया। कुछ कथाओं के अनुसार, रुद्राबाई ने आत्मसमर्पण करने की बजाय अपनी गुप्त सेना के साथ जंगल में शरण ली और कई सालों तक सुल्तान के खिलाफ छापामार युद्ध जारी रखा। दूसरी कथाएँ कहती हैं कि वह युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुईं।

रुद्राबाई की गुप्त सेना का महत्व

रुद्राबाई की गुप्त सेना सिर्फ एक सैन्य टुकड़ी नहीं थी। यह उस समय की सामाजिक और सांस्कृतिक संरचना को दर्शाती थी। चम्पानेर में राजपूत, आदिवासी और स्थानीय समुदायों का मिश्रण था। रुद्राबाई ने इन सबको एकजुट किया और एक साझा मकसद दिया—अपनी रियासत की रक्षा। उनकी सेना में महिलाएँ भी शामिल थीं, जो गुप्तचरों और संदेशवाहकों की भूमिका निभाती थीं। यह उस समय के लिए क्रांतिकारी था, क्योंकि युद्ध को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता था।

रुद्राबाई की रणनीति ने छापामार युद्ध की ताकत को उजागर किया। बाद में मराठों ने भी इसी रणनीति का इस्तेमाल मुगलों और अन्य शासकों के खिलाफ किया। रुद्राबाई की गुप्त सेना ने दिखाया कि छोटी रियासतें भी सही रणनीति और हिम्मत से बड़े साम्राज्यों को चुनौती दे सकती हैं।

क्यों भूल गई यह कहानी

रुद्राबाई की कहानी कम चर्चित है, क्योंकि चम्पानेर की हार ने महमूद बेगड़ा की जीत को ज्यादा सुर्खियाँ दीं। सुल्तान ने चम्पानेर को अपनी राजधानी बनाया और वहाँ भव्य मस्जिदें और इमारतें बनवाईं, जैसे जामी मस्जिद। इतिहासकारों ने सुल्तान की विजय पर ज्यादा ध्यान दिया, और रुद्राबाई की वीरता पृष्ठभूमि में चली गई।

भारतीय इतिहास में भी, रानी लक्ष्मीबाई और रानी दुर्गावती जैसी वीरांगनाओं की कहानियाँ ज्यादा मशहूर हुईं। चम्पानेर एक छोटी रियासत थी, और इसका इतिहास स्थानीय किंवदंतियों और कुछ गुजराती साहित्य तक सीमित रहा। जैन और राजपूत स्रोतों में रुद्राबाई का ज़िक्र है, लेकिन ये दस्तावेज़ व्यापक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। इसके अलावा, रुद्राबाई की कहानी में आदिवासी योगदान को भी कम दर्ज किया गया, क्योंकि इतिहास अक्सर बड़े राजवंशों पर केंद्रित रहा।

प्रभाव और विरासत

रुद्राबाई की हार के बावजूद, उनकी कहानी चम्पानेर के लोगों के बीच जीवित रही। स्थानीय लोककथाएँ और गीत आज भी उनकी वीरता का बखान करते हैं। पावागढ़ का कालिका माता मंदिर, जो रुद्राबाई की आस्था का केंद्र था, आज भी तीर्थस्थल है। उनकी गुप्त सेना ने आदिवासी और राजपूत समुदायों के बीच एकता की मिसाल कायम की, जो बाद में अन्य स्वतंत्रता संग्रामों में देखी गई।

महमूद बेगड़ा ने चम्पानेर को जीता, लेकिन रुद्राबाई की रणनीति ने सुल्तान को यह दिखाया कि छोटी रियासतें भी आसानी से नहीं झुकतीं। उनकी गुप्त सेना की कहानी मराठों और सिखों जैसे बाद के योद्धाओं के लिए प्रेरणा बनी, जो छापामार युद्ध में माहिर थे।

रुद्राबाई की कहानी, यह दिखाती है कि नेतृत्व सिर्फ ताकत से नहीं, बल्कि बुद्धि और एकता से भी आता है। रुद्राबाई ने अपने सीमित संसाधनों के बावजूद एक ऐसी सेना बनाई, जिसने सुल्तान को कई साल तक उलझाए रखा। उनकी रणनीति आज के ज़माने में भी प्रासंगिक है, खासकर उन लोगों के लिए जो कम संसाधनों के साथ बड़े लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं।


यह कहानी हमें यह भी सिखाती है कि इतिहास में छोटी रियासतों और अनाम नायकों की भूमिका को कम नहीं आंकना चाहिए। रुद्राबाई और उनकी गुप्त सेना ने भले ही चम्पानेर को नहीं बचा पाया, लेकिन उनकी हिम्मत और चतुराई ने इतिहास में एक छाप छोड़ी। यह हमें याद दिलाती है कि हर हार के पीछे एक ऐसी कहानी होती है, जो जीत से कम नहीं होती।

रानी रुद्राबाई और उनकी गुप्त सेना की कहानी 15वीं शताब्दी के भारत की एक ऐसी गाथा है, जो कम लोगों को पता है। यह न सिर्फ एक रानी की वीरता की कहानी है, बल्कि एक ऐसी रणनीति की भी, जिसने पहाड़ों और जंगलों को हथियार बनाया। रुद्राबाई ने दिखाया कि हिम्मत और बुद्धि से कोई भी चुनौती छोटी नहीं होती। चम्पानेर की यह कहानी हमें सिखाती है कि इतिहास के पन्नों में दबी कई ऐसी कहानियाँ हैं, जो साहस, एकता और दृढ़ता का सबक देती हैं। रुद्राबाई की गुप्त सेना भले ही इतिहास में गुमनाम हो, लेकिन उनकी वीरता आज भी पावागढ़ की पहाड़ियों में गूँजती है।

Start Quiz

This Quiz helps us to increase our knowledge

Shweta Srivastava

Shweta Srivastava

Content Writer

मैं श्वेता श्रीवास्तव 15 साल का मीडिया इंडस्ट्री में अनुभव रखतीं हूँ। मैंने अपने करियर की शुरुआत एक रिपोर्टर के तौर पर की थी। पिछले 9 सालों से डिजिटल कंटेंट इंडस्ट्री में कार्यरत हूँ। इस दौरान मैंने मनोरंजन, टूरिज्म और लाइफस्टाइल डेस्क के लिए काम किया है। इसके पहले मैंने aajkikhabar.com और thenewbond.com के लिए भी काम किया है। साथ ही दूरदर्शन लखनऊ में बतौर एंकर भी काम किया है। मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एंड फिल्म प्रोडक्शन में मास्टर्स की डिग्री हासिल की है। न्यूज़ट्रैक में मैं लाइफस्टाइल और टूरिज्म सेक्शेन देख रहीं हूँ।

Next Story