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India – Pak War History : रणभूमि में भारत के सामने हर बार घुटनों के बल गिरा पाकिस्तान, जानिए पाकिस्तान के शिकस्त वाले युद्धों का इतिहास
India – Pak War History : यह लेख भारत-पाकिस्तान के संघर्षपूर्ण रिश्तों की एक क्रमबद्ध समीक्षा है। इसमें हम उन सभी प्रमुख युद्धों और सैन्य अभियानों का गहन विश्लेषण करेंगे, जहां-जहां भारत ने अपने साहस, सैन्य क्षमता और रणनीतिक कौशल से पाकिस्तान को घुटनों पर लाकर खड़ा किया।
India – Pak War History (Image Credit-Social Media)
India – Pak War Update : पहलगाम हमले ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि पाकिस्तान समर्थित आतंकवाद भारत की सुरक्षा और संप्रभुता के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। इसके जवाब में भारत द्वारा चलाया गया 'ऑपरेशन सिन्दूर' न केवल एक सैन्य प्रतिशोध था, बल्कि यह भारत की बदलती रणनीतिक सोच का प्रतीक भी बना एक ऐसा देश जो अब केवल प्रतिक्रिया नहीं करता, बल्कि आक्रामक रणनीति के तहत जवाब देने में भी संकोच नहीं करता।
लेकिन यह स्थिति कोई नई नहीं है। भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्तों का इतिहास हमेशा संघर्ष, युद्ध और शांति प्रयासों के त्रिकोण में फंसा रहा है। 1947 के बंटवारे के बाद से ही दोनों देशों के बीच चार बड़े युद्ध, एक निर्णायक सैन्य अभियान और कई सीमित संघर्ष हो चुके हैं। हर बार भारत ने न केवल सैन्य क्षेत्र में पाकिस्तान को परास्त किया, बल्कि राजनयिक मंचों पर भी नैतिक बढ़त हासिल की। चाहे 1947 का कबायली हमला हो, 1965 की घुसपैठ, 1971 का बांग्लादेश युद्ध या फिर 1999 का करगिल संघर्ष हर बार भारत ने संयम और शक्ति का संतुलन साधते हुए जवाब दिया है।
1947- 1948 का पहला भारत-पाक युद्ध (कश्मीर युद्ध)
15 अगस्त 1947 को भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जम्मू-कश्मीर एक स्वतंत्र रियासत था, जिसके शासक महाराजा हरि सिंह ने आरंभ में स्वतंत्र रहने की इच्छा जताई। लेकिन अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान समर्थित कबायली और सेना ने कश्मीर में घुसपैठ कर दी, जिससे हालात बिगड़ गए। इस आक्रमण के बाद महाराजा हरि सिंह ने भारत से सहायता मांगी और 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ विलय पत्र (इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन) पर हस्ताक्षर किए। भारत ने तुरंत जवाब देते हुए श्रीनगर हवाई अड्डे के माध्यम से सैनिक और सैन्य साजो-सामान भेजे।
भारतीय सेना ने श्रीनगर, बारामुला, उरी, पुंछ और कारगिल जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों को मुक्त कराया। हालांकि कबायलियों की लूटपाट और विलंब से भारतीय सेना को तैयार होने का समय मिल गया। युद्ध के अंत में भारत ने जम्मू-कश्मीर के दो-तिहाई हिस्से (कश्मीर घाटी, जम्मू और लद्दाख) पर नियंत्रण स्थापित किया, जबकि पाकिस्तान ने एक-तिहाई हिस्से (गिलगित, बाल्टिस्तान और तथाकथित आजाद कश्मीर) पर कब्जा कर लिया। नेहरू सरकार ने युद्धविराम का निर्णय लिया और मामला संयुक्त राष्ट्र में ले जाया गया, जिसके तहत 1 जनवरी 1949 को युद्धविराम लागू हुआ और नियंत्रण रेखा (Line of Control) निर्धारित की गई। संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव के अनुसार पाकिस्तान को अपने सैनिक हटाने थे और भारत को सीमित सैन्य उपस्थिति बनाए रखनी थी, परंतु जनमत संग्रह की शर्तें कभी पूरी नहीं हुईं। इस संघर्ष में भारत के लगभग 1,100 और पाकिस्तान के लगभग 6,000 सैनिक मारे गए, जिससे दोनों पक्षों को भारी क्षति हुई।
1965 का भारत-पाक युद्ध (ऑपरेशन जिब्राल्टर)
1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान को भारत की सैन्य क्षमता कमजोर प्रतीत हुई, और इसी भ्रम में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में विद्रोह भड़काने हेतु "ऑपरेशन जिब्राल्टर" शुरू किया। इस योजना के अंतर्गत पाकिस्तानी सैनिक स्थानीय कश्मीरियों के वेश में घुसपैठ कर जनता को विद्रोह के लिए उकसाने का प्रयास कर रहे थे, परंतु स्थानीय समर्थन की कमी और आपसी समन्वय के अभाव के कारण यह योजना विफल हो गई। भारत ने इस घुसपैठ का कड़ा जवाब देते हुए सैन्य कार्रवाई शुरू की। 1 सितंबर 1965 को पाकिस्तान ने छंब सेक्टर में आक्रमण किया, जिसके प्रत्युत्तर में भारतीय सेना ने पंजाब, सियालकोट और कश्मीर के कई मोर्चों पर आक्रामक कार्रवाई की और पाकिस्तान के कब्जे वाले कुछ क्षेत्रों पर नियंत्रण भी स्थापित किया। पाकिस्तान की कश्मीर हथियाने की योजना पूरी तरह नाकाम रही और ऑपरेशन जिब्राल्टर के साथ-साथ ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम भी असफल सिद्ध हुआ। संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता और अमेरिका-रूस के दबाव में 23 सितंबर 1965 को युद्धविराम लागू हुआ। इसके बाद जनवरी 1966 में उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के बीच ताशकंद समझौता हुआ, जिसमें दोनों देशों ने युद्ध में जीते गए क्षेत्रों को वापस करने और शांति बनाए रखने का संकल्प लिया। यद्यपि भारत ने सैन्य रूप से श्रेष्ठता दिखाई, फिर भी रणनीतिक रूप से दोनों देशों को अपनी पूर्व सीमाओं पर लौटना पड़ा।
1971 का भारत-पाक युद्ध (बांग्लादेश मुक्ति संग्राम)
1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पाकिस्तान द्वारा बंगाली जनता पर किए जा रहे अत्याचारों से शुरू हुआ, जिससे लाखों शरणार्थी भारत की सीमा में आ गए। भारत ने पहले राजनीतिक समाधान की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान के अमानवीय रवैये और शरणार्थी संकट ने युद्ध को अनिवार्य बना दिया। 3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान ने "ऑपरेशन चेंगिज़ खान" के तहत भारत के कई हवाई अड्डों पर हमला कर युद्ध की शुरुआत की, जिसके जवाब में भारत ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चों पर निर्णायक सैन्य कार्रवाई की। विशेष रूप से पूर्वी पाकिस्तान में भारत ने blitzkrieg (तीव्र आक्रमण) रणनीति अपनाई और थल, वायु व नौसेना के समन्वित हमलों से पाकिस्तानी सेना को चारों ओर से घेर लिया। नतीजतन, 16 दिसंबर 1971 को ढाका के रामना रेसकोर्स मैदान में पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी ने भारतीय सेना के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने 93,000 सैनिकों के साथ आत्मसमर्पण कर दिया। यह विश्व सैन्य इतिहास का सबसे बड़ा सार्वजनिक आत्मसमर्पण था, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में अस्तित्व में आया और भारत ने पाकिस्तान को निर्णायक रूप से पराजित कर इतिहास रच दिया।
1999 का करगिल युद्ध (ऑपरेशन विजय)
कारगिल युद्ध 1999 में तब शुरू हुआ जब पाकिस्तानी सेना और आतंकवादियों (जिहादियों) ने चुपचाप नियंत्रण रेखा (LOC) पार कर कारगिल सेक्टर की ऊंची पहाड़ियों तोलोलिंग, टाइगर हिल, ड्रास, बटालिक और मुश्कोह पर कब्जा कर लिया। उनका उद्देश्य श्रीनगर-लेह हाइवे (NH-1A) को काटकर कश्मीर घाटी को लद्दाख से अलग करना था, जो LOC पर हुए संघर्षविराम समझौतों का खुला उल्लंघन था। भारत ने तुरंत 'ऑपरेशन विजय' शुरू कर जवाबी कार्रवाई की, जिसमें भारतीय सेना ने दुर्गम और बर्फीले इलाकों में अत्यंत साहस का परिचय दिया। वायुसेना ने 'ऑपरेशन सफेद सागर' के तहत हवाई हमले किए और नौसेना ने 'ऑपरेशन तलवार' के जरिए समुद्री सीमाएं सुरक्षित रखीं। कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन अनुज नैयर और मेजर राजेश अधिकारी जैसे वीर जवानों ने अदम्य शौर्य दिखाते हुए सर्वोच्च बलिदान दिया, जिनका सम्मान परमवीर चक्र जैसे वीरता पुरस्कारों से किया गया। युद्ध के अंत में भारत ने सभी प्रमुख चोटियों को पुनः अपने नियंत्रण में ले लिया और पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर अमेरिका, ने भारत के रुख को सही ठहराया और पाकिस्तान की आलोचना की, जिससे उस पर वैश्विक दबाव बढ़ा। यह युद्ध 26 जुलाई 1999 को समाप्त हुआ, जिसे आज ‘कारगिल विजय दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। इस संघर्ष में भारत के 527 से अधिक सैनिक शहीद हुए और 1,300 से अधिक घायल हुए, जबकि पाकिस्तान को सैन्य और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गंभीर शर्मिंदगी झेलनी पड़ी।
सर्जिकल स्ट्राइक (2016) - सीमित लेकिन निर्णायक जवाब
18 सितंबर 2016 को जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में भारतीय सेना के बेस पर पाकिस्तान समर्थित जैश-ए-मोहम्मद के आतंकवादियों ने हमला किया, जिसमें 18 - 19 भारतीय जवान शहीद हो गए। यह हमला पाकिस्तान सेना से प्रशिक्षित आतंकवादियों द्वारा किया गया था, जिसने भारत में उथल-पुथल मचाई। इसके जवाब में 28-29 सितंबर 2016 की रात भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा (LoC) पार करते हुए पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित आतंकी लॉन्च पैड्स पर सर्जिकल स्ट्राइक की। यह पहला अवसर था जब भारत ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि उसने पाकिस्तान के भीतर सैन्य कार्रवाई की है। इस ऑपरेशन में भारतीय सेना ने 7 आतंकी शिविरों को नष्ट किया और 35 - 40 आतंकवादियों को मार गिराया, जबकि भारतीय सेना के किसी भी जवान की जान नहीं गई, हालांकि दो जवान घायल हुए। इस कार्रवाई ने भारत का आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक और प्रत्यक्ष दृष्टिकोण स्पष्ट किया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के इस कदम को व्यापक समर्थन मिला और पाकिस्तान पर वैश्विक दबाव बढ़ा। "नई नीति, नया भारत" का संदेश भारत सरकार ने इस ऑपरेशन के माध्यम से स्पष्ट रूप से दुनिया को दिया।
एयर स्ट्राइक (2019 - बालाकोट हमला)
14 फरवरी 2019 को जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के काफिले पर हुए आत्मघाती हमले में 40 भारतीय जवान शहीद हो गए, और इस हमले की जिम्मेदारी पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली। इसके जवाब में, 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायुसेना ने तड़के पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के बालाकोट में जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी प्रशिक्षण शिविरों पर हमला किया। यह पहला अवसर था जब भारत ने नियंत्रण रेखा (LoC) से काफी आगे जाकर पाकिस्तान के भीतर सार्वजनिक रूप से हवाई हमला किया। इस ऑपरेशन में 12 मिराज-2000 विमानों ने हिस्सा लिया और लगभग 21 मिनट में मिशन पूरा किया। भारतीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बड़ी संख्या में आतंकवादी मारे गए, हालांकि पाकिस्तान ने नुकसान से इनकार किया। इस हमले ने पाकिस्तान के लिए रणनीतिक और मनोवैज्ञानिक झटका दिया, और भारत ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि वह आतंकवाद के खिलाफ अपनी सीमा में घुसकर भी कार्रवाई कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के रुख को व्यापक समर्थन मिला, और पाकिस्तान को वैश्विक दबाव का सामना करना पड़ा। अगले दिन पाकिस्तान ने जवाबी हवाई कार्रवाई की, जिसमें दोनों देशों के विमानों का आमना-सामना हुआ।
भारत की जीत सिर्फ युद्धभूमि पर नहीं
भारत ने पाकिस्तान को सिर्फ युद्ध के मैदान में ही नहीं हराया, बल्कि हर बार वैश्विक मंच पर भी नैतिक और कूटनीतिक रूप से शिकस्त दी है। संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, रूस, फ्रांस और अन्य देशों ने भारत की रक्षा नीति को बार-बार समर्थन दिया है, जबकि पाकिस्तान को अक्सर अलग-थलग रहना पड़ा है।
भारत की शांतिप्रियता, लेकिन ताकतवर रक्षा नीति
भारत ने हमेशा शांति की पहल की है, लेकिन जब-जब पाकिस्तान ने भारत की संप्रभुता और सुरक्षा पर हमला किया, भारत ने निर्णायक जवाब दिया। भारत की नीति स्पष्ट है , "हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन यदि थोप दिया गया, तो पीछे नहीं हटेंगे।"
भारत के इन युद्धों और सैन्य अभियानों ने यह सिद्ध किया है कि भारत न केवल दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, बल्कि एक सशक्त, संगठित और रणनीतिक दृष्टिकोण रखने वाला देश भी है।
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