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Constable Bharti Motivation: असाधारण है एक कांस्टेबल का बनना
Police Constable Bharti Motivation: पुलिस सिपाही की भर्ती के अपॉइंटमेंट लेटर जो बंटे हैं। जिन सौभाग्यशालियों को मिले, उनका, उनके खानदान, उनके गांववालों का भी जीवन तर गया।
Police Constable Bharti Motivation
Police Constable Bharti Motivation: कहीं नोटों की माला और बैंड बाजा, कहीं अखंड रामायण, कहीं नाच गाना, कहीं डीजे, कहीं जागरण, कहीं भंडारा। यूपी में जगह जगह ये नजारे हैं। वजह सबमें कॉमन है - पुलिस सिपाही की भर्ती के अपॉइंटमेंट लेटर जो बंटे हैं। जिन सौभाग्यशालियों को मिले, उनका, उनके खानदान, उनके गांववालों का भी जीवन तर गया। तभी तो जगह जगह दीवाली मनाई जा रही है, जश्न मनाया जा रहा है, लड्डू बंट रहे हैं।
खबरें लबरेज़ हैं उन बखानों से जो बताती हैं बदायूं के उस अद्भुत गांव के बारे में जहां जिंदगी में पहली मर्तबा किसी बाशिंदे को सरकारी नौकरी मिली और वो भी पुलिस सिपाही की। धन्य है वो गांव। इतिहास रच दिया गांव के बेटे ने सिपाही बन कर। इसके लिए तो नोटों की माला और बैंड बाजा कम है, इसे नोटों से तौला जाना चाहिए।
प्रेरणादायक खबरों की भरमार है कि किस तरह लड़के लड़कियों ने पुलिस भर्ती में सफलता हासिल करके अपने जीवन का सपना पूरा किया। इनकी जय जयकार है। मेहनत, लगन, समर्पण और ज़ज़्बे को फर्शी सलाम है। कितनी मनौतियां मानीं गईं होंगी, कितने व्रत रखे गए होंगे, कितनी उपासना की गई होगी ये दिन देखने के लिए,अपॉइंटमेंट लेटर छूने के लिए।
कॉन्स्टेबल बन कर अपने गांवों का नाम रोशन कर दिया है बहुत से युवाओं ने। ऐसे भी भाग्यशाली गांव रहे जहां दो-दो युवा सिपाही बन गए। ऐसे ऐसे भी चमत्कार हुए कि बाप - बेटे, दो दो बहनें साथ साथ सिपाही बन गईं।
कॉन्स्टेबल बनना कितनी बड़ी बात है। 30-40 हजार रुपये की नौकरी। पुलिस व्यवस्था में सबसे निचले पायदान की नौकरी। लेकिन यही जीवन का परम लक्ष्य है। ये तपस्वियों की तपस्या का अमृत फल है।
एक अदद कॉन्स्टेबल बनना इतनी बड़ी उपलब्धि, इतनी बड़ी सफलता? ये कोई छोटी मोटी बात नहीं। इसके कितने ही अंतर्निहित मायने हैं। ये चिंतन, मनन, शोध का विषय है। 60 हजार से ज्यादा कांस्टेबलों की भर्ती आखिर क्यों निजी और सरकार की महान उपलब्धि है? एक अदद सरकारी नौकरी या फिर कांस्टेबल, कौन किस पर भारी है और क्यों? पुलिस भर्ती तो भारत भर में होती आईं हैं, हो भी रहीं हैं लेकिन ऐसे जश्न क्या केरल से लेकर अरुणाचल तक सब जगह होते हैं? अगर सिर्फ यूपी में हो रहे हैं तो वजह क्या है?
हम तो दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी हैं। 22 साल में विकसित देश बनने का टारगेट है फिर भी कांस्टेबल बनने का परम आनंद?
नौकरियां तो बहुत तरह की होती हैं। भारत से लेकर अरब इजरायल तक की नौकरी। प्राइवेट सेक्टर से लेकर सरकारी तक। सेल्समैन से लेकर सेना के अग्निवीर तक।
जिन गांवों में दीवाली मनाई गई वहां के कई लोग भी किसिम किसिम की नौकरी जरूर करते होंगे, अच्छा पैसा भी पाते होंगे लेकिन उनकी नौकरी, उनके अपॉइंटमेंट लेटर पर सार्वजनिक जश्न शायद ही मना हो।
इस पुलिसिया नौकरी की बात ही कुछ और है। इसका कोई जोड़ नहीं। इसके आगे सीमा के प्रहरी भी फीके पड़ते दिखते हैं।
दरअसल, कॉन्स्टेबल बनने की खुशियाँ कई सच्चाईयां बयां करती हैं।
एक सच्चाई ताकत की, जो बताती है कि आज पुलिस कितनी पावरफुल है। उस पावरफुल सिस्टम का हिस्सा बनना कितनी बड़ी बात है। पुलिस सिस्टम का सबसे निचला पायदान भी कितनी ताकत, रसूख, इज्जत, दहशत, कंट्रोल रखता है जो किसी दूसरी नौकरी में मुमकिन ही नहीं।
सच्चाई ये भी है कि कॉन्स्टेबल पावर सेंटर भी है। नेता, अफसर, माफिया, सबके करीब जाने का स्वर्णिम मौका। किसी और नौकरी में ये कहां मिलने वाला। एक बार करीबियां बन गईं तो क्या क्या वारेन्यारे नहीं हो सकते, जिंदगी कहां से कहाँ नहीं पहुंच सकती।
सच्चाई ये भी है कि कॉन्स्टेबल बनना मात्र 40 हजार की तनख्वाह वाली सरकारी नौकरी का मामला नहीं है। कॉन्स्टेबल उससे कहीं आगे की चीज है। कितनी ही खबरें पढ़ी सुनी देखी हैं जिनमें मल्टी करोड़पति कॉन्स्टेबल केंद्रीय पात्र रहे हैं। गांव कस्बों से लेकर शहरों महानगरों तक सिपाहियों की ‘जाँबाज़ी’ के किस्से और उदाहरण आखिर क्यों नहीं जबर्दस्त आकर्षण पैदा करेंगे? आखिरकार जो कुछ है वो पैसा और पावर ही तो है?
सच्चाई ये भी है कि आज हमारे यहां नौकरियां हैं कहां? हैं भी तो कोई गारंटी नहीं कि कब तक चलेंगी। ऐसे में एक अदद सरकारी नौकरी जीवन मरण का सवाल है। भले ही अडानी अम्बानी की नौकरी में दोगुना तनख्वाह मिल जाये लेकिन कॉन्स्टेबल जैसा सुख-स्थायित्व-अवसर वो कभी दे ही नहीं पाएंगी।
सिपाही बनना कतई कोई बुरी बात नहीं। काम आखिर काम होता है। न छोटा न बड़ा। सबका महत्व है। जो सिपाही बने वो भी हमारे युवा हैं। हमारे यहां उदाहरण हैं कि सिपाही फिल्मस्टार तक बन गए, संसद सदस्य भी बन गए अलग अलग क्षेत्रों में नाम कमाया। आज भी जो सिपाही बने हैं वो भी किसी न किसी मुकाम तक पहुंचेंगे।
उम्मीद बस इतनी करनी चाहिए। दुआ करनी चाहिए कि ये हजारों सिपाही हम सबकी, समाज की रक्षा ही करेंगे। संविधान की रक्षा करेंगे। न्याय की रक्षा करेंगे। इस युवा फौज से यही उम्मीद है कि वो पुलिस की आताताई, जुल्मी, भ्रष्ट छवि से एकदम अलग होंगे। साठ हजार कम नहीं होते। ये चाहें तो क्या नहीं कर सकते। आखिरकार,हमारी आखिरी उम्मीद देश के युवाओं से ही तो है।
( लेखक पत्रकार हैं।)
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