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Premanand Ji Maharaj: महिलाओं के पक्ष में कही बड़ी गहरी बात, हमारा सोचने का ढंग ही समाज में बदलाव लाता है-
Premanand Ji Maharaj Satsang: प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं,"समाज में महिलाओं के प्रति हमारा नज़रिया केवल हमारी निजी विचारधारा नहीं बल्कि यह हमारे भीतर के संस्कार और संस्कृति का भी दर्पण है।"
Premanand Ji Maharaj Inspiring Message To Shine in Life One Must Endure Adversity (Image Credit-Social Media)
Premanand Ji Maharaj Satsang: अभी कुछ दिन पहले ही महिलाओं से जुड़े एक विवादित बयान को लेकर प्रेमानंद जी को काफी ट्रोल किया गया। अब एक बार फिर महिलाओं को लेकर प्रेमानंद महाराज जी द्वारा दिया गया प्रेरक संदेश काफी ज्यादा लोकप्रियता हासिल कर रहा है। उनका कहना है कि, किसी भी समाज की मूल आत्मा का जुड़ाव इस बात पर निर्भर करता है कि, वह अपने समाज के भीतर मौजूद संवेदनशील और नाजुक हिस्से के साथ कैसे पेश आता है। जिसका सबसे अहम हिस्सा महिलाएं होती हैं। उनका कहना है कि, समाज में महिलाओं के प्रति हमारा नज़रिया केवल हमारी निजी विचारधारा नहीं बल्कि यह हमारे भीतर के संस्कार और संस्कृति का भी दर्पण है। मौजूदा समय में महिलाओं को लेकर लोगों के बीच गलत सोच और धारणाएं हमारे समाज के बीच गहराई से अपनी जगह बनाए हुए हैं। श्री हित प्रेमानंद महाराज ने हाल ही में अपने सत्संग में महिलाओं से जुड़े इस विषय पर महत्पूर्ण और समाज को प्रेरित करने वाली बातें कहीं। ये प्रेरक संदेश सिर्फ धार्मिक प्रवचन नहीं, बल्कि मानवीय धारणाओं को झकझोरने वाला है।
अधूरी है ईश्वर की साधना
अपने प्रवचन में महाराज ने महिलाओं को लेकर स्पष्ट कहा है कि, 'अगर आप ईश्वर की आराधना करते हो और आपके मन में किसी स्त्री के प्रति भी गलत भाव है। तो समझो तुम्हारी साधना पूरी तरह से अधूरी है।' ईश्वरीय सत्ता में विश्वास का पहला कदम समाज में हर वर्ग के लिए सबके प्रति समानता और सम्मान का नजरिया रखना होता है।
महिलाओं के प्रति गलत सोच आध्यात्मिक प्रगति की रुकावट
महाराज ने अपने सत्संग में यह स्पष्ट किया कि स्त्रियों के प्रति गलत सोच केवल सामाजिक समस्या नहीं, बल्कि यह हमारे आध्यात्मिक उन्नति में भी सबसे बड़ी बाधा है। जब हम किसी महिला को कमजोर, अपूर्ण या सिर्फ एक भूमिका तक सीमित मानते हैं, तो हम ईश्वर की बनाई सृष्टि के साथ अन्याय करते हैं। बड़े बड़े ज्ञानी संत महात्मा सबकी जननी एक महिला ही है।
उन्होंने कहा कि 'जिसे तुम देख कर गलत सोचते हो, वह भी मेरे श्याम की बनाई है। उसका अपमान, श्याम का अपमान है।' मीराबाई जैसी कितनी ही महिला संतों ने हमारे समाज को प्रेरणा दी है।
भक्ति का असली सार आडंबर में नहीं, बल्कि भीतर की साधना
प्रेमानंद जी महाराज का जीवन, उनकी साधना और उनके प्रवचन सादगी और करुणा का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। उनका कहना हैं कि, ईश्वर भक्ति का मूल जुड़ाव ईश्वर के नाम पर किसी बड़े आयोजन या बाहरी दिखावे से नहीं, बल्कि इंसान की आत्मिक साधना यानी ईश्वर के नाम-जाप और निस्वार्थ प्रेम में निहित होता है। प्रेमानंद जी का कहना है कि- ईश्वर के सामने मंदिर में घी का दीपक जलाने से पहले अपने मन के भीतर मौजूद अंधेरे को मिटाने की कोशिश की जानी चाहिए, वास्तविक प्रकाश तभी होगा।
हमारे विचारों और हमारे आचरण में झलकनी चाहिए भक्ति
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि, ईश्वर की भक्ति का मतलब सिर्फ पूजा-पाठ नहीं है। बल्कि भक्ति से जुड़े संस्कार हमारे आचार-व्यवहार के साथ हमारी सोच में भी झलकने चाहिए। उनके अनुसार 'भक्ति का अर्थ केवल ईश्वर का नाम जपना नहीं होता बल्कि उस शक्ति से जुड़ी मूल भावना को आत्मसात करना होता है।'
जीवन के हर पल में बहने वाली धारा है भक्ति
महाराज जी अपने प्रेरक संदेश में सच्ची भक्ति भाव को समझाते हुए कहते हैं कि ' ईश्वर की सच्ची भक्ति एक दीपक के समान होती है, जो हवा से नहीं बुझती बल्कि वह हमारी आत्मा में प्रेम रूपी बाती के समान अनवरत दीप्यमान रहती है।' महाराज जी के प्रेरक संदेशों में सदैव सादगी पर जोर दिया गया है। वे कहते हैं कि, सच्ची भक्ति वही है जो शांति भाव से, बिना रुके और बिना आडंबर के की जाती है। ईश्वरीय आराधना को किसी विशेष आयोजन, अवसर या भव्यता की जरूरत नहीं होती, सच्ची भक्ति तो हर स्वांस के साथ जीवन के हर पल में बहने वाली एक अविरल धारा है।
हम अपनी सोच बदलें जमाना बदलेगा
समाज में बदलाव लाने का सबसे प्रभावी तरीका बताते हुए प्रेमानंद जी कहते हैं कि, समाज में यदि परिवर्तन लाना चाहते हैं तो इसके लिए जरूरी है कि हम अपनी सोच में बदलाव लाए। 'आपको सबसे पहले आईने में खुद को देखना चाहिए। वही चेहरा समाज की पहचान है। हमारी सामाजिक व्यवस्था में मौजूद नियम-कानून, नीतियां तभी कारगर होती हैं, जब समाज के भीतर रहने वाले लोगों द्वारा अपनी सोच में सुधार किया जाए।' प्रेमानंद महाराज का कहना है, कि समाज के भीतर अनुकूल परिवर्तन लाना चाहते हैं तो प्रेम, दया और करुणा को अपने जीवन का हिस्सा बनाएं। महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना को संस्कार और अपना स्वभाव बना लें। उनका कहना है कि ' अगर अपने भीतर श्याम को पाना चाहते हैं तो सबसे पहले उसके लिए अपने मन को शुद्ध करो। समाज में सभी के प्रति आदर-सम्मान, प्रेम और सेवा की भावना ही असली ईश्वरीय भक्ति है।'
प्रेमानंद जी का यह प्रवचन हमें यह संदेश देता है कि, विनम्रता, सम्मान, भक्ति और प्रेम ही जीवन से जुड़े मूल स्तंभ हैं। उनके शब्दों में 'श्याम का रंग सबमें है, चाहे वह रूप, शरीर या जन्म कुछ भी हो। उसी तरह स्त्रियों के प्रति सम्मान का अर्थ केवल उन्हें बराबरी का दर्जा देना नहीं, बल्कि यह समझना है कि, वे देवी रूप में पूजनीय हैं। वे भी उसी ईश्वर की रचना हैं जिनकी हम सब आराधना करते हैं।
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