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Satyajit Ray's Ancestral Home Protected: सांस्कृतिक धरोहर पर संकट टला,सिनेजगत के पुरोधा सत्यजीत रे का पैतृक आवास होगा संरक्षित
Satyajit Ray's Ancestral Home Protected: मशहूर भारतीय फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के घर को अब गिराया नहीं जाएगा। बांग्लादेश सरकार ने इस इमारत को तोड़ने की योजना पर रोक लगा दी है
Satyajit Ray (Image Credit-Social Media)
Satyajit Ray's Ancestral Home Protected: 1856 में लखनऊ में हुए विद्रोह से कुछ समय पहले की कहानी पर आधारित फिल्म शतरंज के खिलाड़ी जिसे पर्दे पर 1977 में प्रदर्शित किया गया था। इस फिल्म के निर्देशक कोई और नहीं बल्कि भारतीय फिल्म के मशहूर फिल्म निर्देशक और लेखक सत्यजीत रे थे।
सत्यजीत रे की इस फिल्म को 2 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 3 फिल्मफेयर पुरस्कार और बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में गोल्डन बीयर के लिए नॉमिनेशन का मौका मिला साथ ही यह फिल्म भारत की ऑस्कर एंट्री भी बनी थी। यह फिल्म मुंशी प्रेमचंद की इसी नाम की लघु कहानी पर आधारित है। शतरंज के खिलाड़ी फिल्म को कई महत्वपूर्ण सम्मान और नामांकन के अलावा, इस फिल्म को फिल्म समीक्षकों और दर्शकों से भी बहुत सराहना हासिल हुई थी। इस फिल्म को सत्यजीत रे की सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक माना जाता है। वहीं अभावों के बीच इनके द्वारा अपनी पहली निर्देशित बंगला फिल्म पथेर पांचाली 1955 में प्रदर्शित हुई और बहुत लोकप्रिय रही। भारत और अन्य देशों में भी यह लम्बे समय तक सिनेमा में लगी रही। सत्यजीत एक ऐसे भारतीय फ़िल्म निर्देशक थे, जिन्हें 20वीं शताब्दी के सर्वोत्तम फ़िल्म निर्देशकों में गिना जाता है। इनका जन्म (2मई 1921 - 23 अप्रैल 1992)कला और साहित्य के जगत में जाने-माने कोलकाता (तब कलकत्ता) के एक बंगाली परिवार में हुआ था। इनकी शिक्षा प्रेसिडेंसी कॉलेज और विश्व-भारती विश्वविद्यालय में हुई। इन्होंने अपने करियर की शुरुआत पेशेवर चित्रकार की तरह की। फ़्रांसिसी फ़िल्म निर्देशक ज्यां रेनुआ से मिलने पर, और लंदन में इतालवी फ़िल्म लाद्री दी बिसिक्लेत (Ladri di biciclette, बाइसिकल चोर) (1948) देखने के बाद स्वतंत्र फिल्म निर्माण की ओर आकर्षित हुए।
रे को कई पुरस्कार और सम्मान मिले, जिनमें सिनेमा में भारत का सर्वोच्च पुरस्कार,दादा साहब फाल्के पुरस्कार(1984) और भारत का सर्वोच्चनागरिक पुरस्कार,भारत रत्नफ्रांस के सर्वोच्च सम्मान,नेशनल ऑर्डर ऑफ द लीजन ऑफ ऑनरके कमांडर64वें अकादमी पुरस्कार(1991)मेंमानद पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
फिल्म बांग्ला साहित्य और सिनेमा के पुरोधा माने जाने वाले सत्यजीत रे से जुड़ी एक बड़ी खबर सामने आई है। बांग्लादेश के मैमनसिंह में स्थित उनके पैतृक आवास को अभी तक नेस्तनाबूत किए जाने की जानकारी सामने आ रही थी लेकिन अब इस बारे में एक अच्छी खबर है। इस मशहूर भारतीय फिल्म निर्देशक के घर को अब गिराया नहीं जाएगा। बांग्लादेश सरकार ने इस इमारत को तोड़ने की योजना पर रोक लगा दी है और इसके संरक्षण व पुनर्निर्माण के लिए एक विशेष समिति का गठन कर दिया है। यह फैसला भारत सरकार और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की चिंता जताने के बाद लिया गया है।
रे परिवार की पृष्ठभूमि
रे परिवार के सबसे पहले दर्ज पूर्वज रामसुंदर देव (देब) थे, जिनका जन्म सोलहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ था। वह वर्तमान भारत के पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के चकदाह गांव के मूल निवासी थे और पूर्वी बंगाल के शेरपुर में चले गए। वह जशोदाल (वर्तमान बांग्लादेश के किशोरगंज जिले में) के शासक के दामाद बने और उन्हें जागीर (सामंती भूमि अनुदान) प्रदान की गई । उनके वंशज अठारहवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में किशोरगंज के कटियाडी उपजिला के मसुआ गांव में चले गए ।
सत्यजीत रे और उनके दादा उपेंद्र किशोर रे चौधरी का सांस्कृतिक योगदान
रे परिवार ने साहित्य, कला, फिल्म और समाज सुधार आंदोलनों में अपनी अमिट छाप छोड़ी है। सत्यजीत रे न सिर्फ भारत बल्कि विश्व सिनेमा के महान फिल्मकारों में शुमार हैं। उन्होंने 'पाथेर पांचाली' जैसी कालजयी फिल्मों का निर्देशन कर भारतीय सिनेमा को वैश्विक पहचान दिलाई। उनकी रचनाओं में भारतीय संस्कृति की गहराई और मानवीय संवेदनाओं की सुंदर प्रस्तुति देखने को मिलती है। उनके दादा उपेंद्र किशोर रे चौधरी ने बंगाली साहित्य, चित्रकला और विज्ञान के क्षेत्र में अपने रचनात्मक कार्यों से खास पहचान बनाई। उन्होंने बच्चों के लिए 'संडेश' नामक पत्रिका शुरू की थी और अपनी लेखनी से बाल साहित्य को समृद्ध किया। मैमनसिंह स्थित उनका पैतृक घर इसी समृद्ध विरासत का हिस्सा है। उनके पुत्र सुकुमार रे हास्य-व्यंग्य रचनाओं और 'अबल ताबल' जैसी पुस्तकों के लिए प्रसिद्ध रहे। सत्यजीत रे ने फिल्म निर्माण, संगीत, लेखन और कला के क्षेत्र में बहुमुखी प्रतिभा का परिचय दिया और भारत रत्न व ऑस्कर जैसे सर्वोच्च सम्मान प्राप्त किए। रे परिवार की यह सांस्कृतिक विरासत बंगाल और भारतीय उपमहाद्वीप के सांस्कृतिक इतिहास में स्वर्णिम अध्याय है।
घर गिराने की योजना क्यों बनी थी
हाल ही में बांग्लादेश सरकार ने यह कहकर सत्यजीत रे के पैतृक आवास को गिराने का निर्णय लिया था कि यह भवन बेहद जर्जर हालत में है और सुरक्षा के लिहाज से खतरा बन सकता है। इसके स्थान पर एक नया कंक्रीट भवन निर्माण की योजना बनाई गई थी। जिसे सांस्कृतिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकसित किया जाना था। हालांकि, इस निर्णय को लेकर साहित्यिक और सांस्कृतिक जगत में तीखी प्रतिक्रिया हुई।
भारत सरकार की आपत्ति और सांस्कृतिक महत्व का जोर
भारत सरकार ने इस फैसले पर आपत्ति जताई और विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक बयान में कहा कि, यह भवन बांग्ला सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रतीक है और इसे गिराने के बजाय इसका संरक्षण और पुनर्निर्माण किया जाना चाहिए। भारत सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस कार्य में बांग्लादेश सरकार की मदद के लिए तैयार है। इस बयान में यह भी कहा गया कि यह भारत और बांग्लादेश की साझा सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और इसे संजोकर रखना दोनों देशों के लिए जरूरी है।
ममता बनर्जी की भावुक अपील
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस मामले में चिंता जताई और कहा कि रे परिवार बंगाली संस्कृति के अग्रदूतों में से एक है। उन्होंने इसे बंगाल के सांस्कृतिक इतिहास का अभिन्न हिस्सा बताते हुए बांग्लादेश सरकार और वहां के नागरिकों से इस धरोहर को संरक्षित रखने की अपील की। ममता ने कहा कि उपेंद्र किशोर बंगाल के पुनर्जागरण के प्रमुख स्तंभ हैं और इस घर का संरक्षण करना सांस्कृतिक उत्तरदायित्व है।
बांग्लादेश सरकार का बदला हुआ नजरिया
भारत और पश्चिम बंगाल की ओर से उठी आपत्तियों के बाद बांग्लादेश सरकार ने अपने फैसले में बदलाव करते हुए इस ऐतिहासिक भवन को गिराने की योजना फिलहाल रोक दी है। अब एक समिति गठित की गई है, जो इस भवन के संरक्षण और पुनर्निर्माण की रूपरेखा तैयार करेगी। समिति इस बात पर भी विचार करेगी कि इस इमारत को साहित्यिक और सांस्कृतिक केंद्र के रूप में कैसे विकसित किया जाए, ताकि यह विरासत भविष्य की पीढ़ियों तक पहुंच सके।
भारत-बांग्लादेश संबंधों के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इस फैसले का महत्व
यह पूरा घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है, जब भारत और बांग्लादेश के द्विपक्षीय संबंधों में कुछ खटास देखी जा रही है। शेख हसीना सरकार के जाने के बाद से अंतरिम सरकार का गठन हुआ है, जिसका नेतृत्व मोहम्मद यूनुस कर रहे हैं। इस दौरान बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही घटनाओं को लेकर भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। ऐसे में सत्यजीत रे के पैतृक घर को संरक्षित करने का यह फैसला दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संवाद और सौहार्द के लिए एक सकारात्मक संकेत माना जा रहा है।
सांस्कृतिक धरोहर संरक्षण की वैश्विक पहल और भारत-बांग्लादेश
दुनिया भर में सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के लिए कई वैश्विक प्रयास होते रहे हैं, जिनमें यूनेस्को की भूमिका अहम रही है। भारत और बांग्लादेश, दोनों ही यूनेस्को के सदस्य हैं और दोनों देशों में कई धरोहर स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल किया गया है। हाल ही में भारत के शांति निकेतन को यूनेस्को विश्व धरोहर का दर्जा मिला है। इसी तरह बांग्लादेश ने भी कई ऐतिहासिक स्थलों को विश्व धरोहर सूची में शामिल करने की कोशिश की है। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण अंतरराष्ट्रीय महत्व का विषय है।
भारत-बांग्लादेश सांस्कृतिक संबंधों के जीवंत उदाहरण
भारत और बांग्लादेश के सांस्कृतिक संबंध गहरे और ऐतिहासिक हैं। रवींद्रनाथ ठाकुर, जो दोनों देशों में समान रूप से सम्मानित हैं, इसके जीवंत उदाहरण हैं। काजी नजरुल इस्लाम, जो बांग्लादेश के राष्ट्रीय कवि हैं, उनका सम्मान भारत में भी समान रूप से किया जाता है। 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम में भारत की भूमिका भी सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साझेदारी का परिचायक है। इस साझा विरासत को मजबूत करना दोनों देशों की सांस्कृतिक और कूटनीतिक संबंधों को और प्रगाढ़ बनाएगा।
सांस्कृतिक धरोहरों का संरक्षण एक साझा जिम्मेदारी
सत्यजीत रे का पैतृक घर केवल ईंट-पत्थर से बनी इमारत नहीं, बल्कि भारत और बांग्लादेश के सांस्कृतिक इतिहास की जीवंत मिसाल है। इसके संरक्षण के लिए दोनों देशों को मिलकर काम करना चाहिए, ताकि यह धरोहर आने वाली पीढ़ियों तक सुरक्षित रह सके। बांग्लादेश सरकार का यह कदम निश्चित रूप से सराहनीय है, जो भारत-बांग्लादेश के संबंधों को मजबूती देगा और सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण के वैश्विक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत होगा।
स्थानीय प्रशासन की क्या है पुष्टि?
हालांकि भारत के मशहूर फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे के पैतृक घर को तोड़े जाने को लेकर बांग्लादेश के एक वरिष्ठ अधिकारी का बयान सामने आया है। बांग्लादेश के अधिकारी ने बताया है कि मैमनसिंह में जिस घर को ढहाया गया है, वह सत्यजीत रे के परिवार से जुड़ा हुआ नहीं था। मैमनसिंह के डिप्टी कमिश्नर मोफिदुल आलम ने पुष्टि की कि स्थानीय प्रशासन ने जांच के बाद यह पुख्ता किया है कि जिस घर को ढहाया गया, उसका सत्यजीत रे से कोई संबंध नहीं था।
स्थानीय प्रशासन ने पुष्टि की कि सत्यजीत रे के घर को स्थानीय तौर पर दुरलोव हाउस के तौर पर जाना जाता है, जो सही अवस्था में है उसे छुआ तक नहीं गया।
आलम ने कहा कि हमें पता चला है कि सत्यजीत रे की पैतृक संपत्ति सही-सलामत है। हमने उसके मौजूदा मालिक से बात की है, जिन्होंने पुष्टि की है कि उन्होंने इस मकान को सीधे सत्यजीत रे के परिवार से खरीदा था और यह सिद्ध करने के लिए उनके पास सभी दस्तावेज हैं। जिस घर को ढहाया जाना है। उसे गलती से सत्यजीत रे का पैतृक आवास समझ लिया गया है।
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