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Sourav Ganguly Cricket Journey: कोलकाता टाइगर का सफर मैच की पिच से लेकर क्रिकेट के दादा बनने तक कैसा रहा, आइए जानें

Sourav Ganguly Cricket Journey: सौरव दाएं हाथ से बल्लेबाजी करते थे, लेकिन भाई के क्रिकेट गियर की वजह से बाएं हाथ से बल्लेबाजी सीखी।

Akshita Pidiha
Published on: 7 July 2025 7:21 PM IST
Sourav Ganguly Cricket Journey
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Sourav Ganguly Cricket Journey (Photo - Social Media)

Sourav Ganguly Cricket Journey: सौरव गांगुली का जन्म कोलकाता के बेहाला में एक संपन्न परिवार में हुआ। उनके पिता चंडीदास गांगुली एक सफल प्रिंटिंग बिजनेस चलाते थे और माँ निरूपा गांगुली चाहती थीं कि सौरव पढ़ाई पर ध्यान दें। लेकिन सौरव का दिल खेल में था। कोलकाता में फुटबॉल का जुनून हर गली में दिखता था और सौरव भी शुरू में फुटबॉल की ओर झुके। उनके बड़े भाई स्नेहाशीष, जो बंगाल के लिए क्रिकेट खेलते थे, ने उन्हें क्रिकेट की राह दिखाई।

सौरव दाएं हाथ से बल्लेबाजी करते थे, लेकिन भाई के क्रिकेट गियर की वजह से बाएं हाथ से बल्लेबाजी सीखी। उनके घर में इंडोर जिम और कंक्रीट पिच थी, जहाँ वो प्रैक्टिस करते थे। डेविड गॉवर जैसे खिलाड़ियों के वीडियो देखकर उन्होंने अपनी बल्लेबाजी को निखारा। सेंट जेवियर्स स्कूल में सौरव ने स्कूल क्रिकेट में धमाल मचाया और कप्तान बने। लेकिन उनकी जिद ने उन्हें शुरुआती आलोचना भी दिलाई। एक बार जूनियर दौरे पर उन्होंने 12वें खिलाड़ी की जिम्मेदारी लेने से मना कर दिया, जिसे लोग उनके घमंड से जोड़कर देखते थे।

क्रिकेट में शुरुआत: मुश्किलों से भरा रास्ता


सौरव का क्रिकेट करियर 1989 में बंगाल की रणजी ट्रॉफी टीम से शुरू हुआ। 1990-91 के रणजी सीजन में उन्होंने शानदार प्रदर्शन किया और राष्ट्रीय चयनकर्ताओं का ध्यान खींचा। 1992 में उन्हें वेस्टइंडीज के खिलाफ वनडे डेब्यू का मौका मिला, लेकिन वो सिर्फ 3 रन बना सके। उनके रवैये और खराब प्रदर्शन की वजह से उन्हें महाराजा टैग के साथ आलोचना झेलनी पड़ी और टीम से बाहर कर दिया गया। कई लोगों ने सोचा कि सौरव का करियर यहीं खत्म हो गया।

लेकिन सौरव ने हार नहीं मानी। अगले कुछ सालों में उन्होंने घरेलू क्रिकेट में रनों का ढेर लगाया। 1995-96 के दलीप ट्रॉफी में उनके शानदार प्रदर्शन ने उन्हें 1996 के इंग्लैंड दौरे के लिए भारतीय टीम में वापसी दिलाई।

लॉर्ड्स में धमाल: स्टार का जन्म

1996 में इंग्लैंड दौरे पर सौरव को लॉर्ड्स में डेब्यू का मौका मिला। उन्होंने पहली ही टेस्ट पारी में 131 रन ठोक दिए और तीसरे ऐसे बल्लेबाज बने जिन्होंने लॉर्ड्स पर डेब्यू में शतक बनाया। अगले टेस्ट में 136 रनों की पारी और सचिन तेंदुलकर के साथ 255 रनों की साझेदारी ने उन्हें स्टार बना दिया। इन पारियों ने शुरुआती आलोचनाओं को खामोश कर दिया।



1997 में सौरव ने श्रीलंका के खिलाफ पहला वनडे शतक (113 रन) बनाया और सचिन के साथ ओपनिंग शुरू की। दोनों की जोड़ी वनडे क्रिकेट की सबसे खतरनाक सलामी जोड़ी बनी। 1999 के वर्ल्ड कप में सौरव ने श्रीलंका के खिलाफ 183 रनों की ऐतिहासिक पारी खेली, जो उस समय वर्ल्ड कप में किसी भारतीय का सर्वोच्च स्कोर था। राहुल द्रविड़ के साथ उनकी 318 रनों की साझेदारी आज भी रिकॉर्ड है। राहुल द्रविड़ ने उनकी ऑफ-साइड शॉट्स की तारीफ में उन्हें गॉड ऑफ ऑफ-साइड का नाम दिया।


कप्तानी का सुनहरा दौर: नया भारत

2000 में, जब भारतीय क्रिकेट मैच फिक्सिंग के दाग से जूझ रहा था, सौरव को कप्तानी सौंपी गई। ये वो दौर था जब भारतीय क्रिकेट को एक आक्रामक लीडर की जरूरत थी। सौरव ने न सिर्फ टीम को संभाला, बल्कि उसे एक नया जुनून दिया। उनकी कप्तानी में भारत ने कई ऐतिहासिक जीत हासिल की:

2001 बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफी: कोलकाता के ईडन गार्डन्स में ऑस्ट्रेलिया की 16 टेस्ट जीत की स्ट्रीक टूटी। वीवीएस लक्ष्मण और राहुल द्रविड़ की पारियों के साथ सौरव की रणनीति ने इतिहास रचा।

2002 नेटवेस्ट ट्रॉफी: लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में भारत ने 326 रनों का पीछा किया। सौरव ने टी-शर्ट उतारकर लॉर्ड्स की बालकनी से लहराई, जो भारतीय क्रिकेट के आक्रामक रवैये का प्रतीक बना।

2003 वर्ल्ड कप: सौरव की कप्तानी में भारत फाइनल तक पहुँचा, हालाँकि ऑस्ट्रेल against हार गया।


2002 चैंपियंस ट्रॉफी: सौरव ने सेमीफाइनल और फाइनल में शतक बनाए और भारत को खिताब दिलाया।

सौरव ने युवा खिलाड़ियों को मौका दिया। युवराज सिंह, हरभजन सिंह, जहीर खान और वीरेंद्र सहवाग जैसे खिलाड़ी उनकी कप्तानी में चमके। उनके नेतृत्व में भारत ने 49 टेस्ट में से 21 जीते, जो उस समय रिकॉर्ड था। सौरव ने विदेशी जमीन पर टेस्ट जीतने का सिलसिला शुरू किया और भारतीय क्रिकेट में आत्मविश्वास भरा।

चुनौतियाँ और विवाद: जिद का जवाब

सौरव का करियर हमेशा सुगम नहीं रहा। कुछ चुनिंदा विवादों ने उनके करियर को प्रभावित किया:

ग्रेग चैपल विवाद (2005): सौरव का सबसे बड़ा विवाद ऑस्ट्रेलियाई कोच ग्रेग चैपल के साथ हुआ। चैपल ने BCCI को एक ईमेल में सौरव को मानसिक और शारीरिक रूप से अक्षम बताया, जो लीक हो गया। इसने कोलकाता में हंगामा मचा दिया और सौरव को कप्तानी और टीम से बाहर कर दिया गया। ये उनके करियर का सबसे मुश्किल दौर था।

टी-शर्ट विवाद (2002): 2002 नेटवेस्ट फाइनल में सौरव ने लॉर्ड्स की बालकनी पर टी-शर्ट उतारकर लहराई। ये एंड्रयू फ्लिंटॉफ की हरकत का जवाब था, लेकिन कुछ लोगों ने इसे असभ्य माना।

इन विवादों के बावजूद, सौरव ने शानदार वापसी की। 2006 में साउथ अफ्रीका दौरे पर वो भारत के सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे। 2007 में, उन्होंने इंग्लैंड और पाकिस्तान के खिलाफ शतक बनाए, जिनमें बेंगलुरु में 239 रनों की पारी शामिल थी। ये सौरव की जिद और जुनून की जीत थी।

रिटायरमेंट और उसके बाद


2008 में, ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घरेलू टेस्ट सीरीज के बाद सौरव ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया। उनकी आखिरी टेस्ट पारी में वो पहली गेंद पर आउट हुए, लेकिन उनकी विरासत अमर रही। सौरव ने 113 टेस्ट में 7212 रन और 311 वनडे में 11363 रन बनाए। वो पाँच ऐसे क्रिकेटरों में से एक हैं जिन्होंने वनडे में 10,000 रन, 100 विकेट और 100 कैच लिए।

रिटायरमेंट के बाद, सौरव ने कई भूमिकाएँ निभाईं:

IPL: वो कोलकाता नाइट राइडर्स के कप्तान बने और बाद में पुणे वॉरियर्स के लिए खेले।

कमेंट्री और प्रशासन: सौरव ने कमेंट्री में अपनी बेबाक राय से फैंस का दिल जीता।

2015 से 2019 तक वो क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बंगाल के अध्यक्ष रहे और 2019 से 2022 तक BCCI के अध्यक्ष बने।

पुरस्कार: 2004 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया गया।

निजी जिंदगी: प्यार और परिवार

सौरव की निजी जिंदगी भी रोचक है। उनकी पत्नी डोना रॉय, जो एक ओडिसी डांसर हैं, उनकी बचपन की दोस्त थीं। दोनों के परिवारों में अनबन थी, लेकिन सौरव और डोना ने 1997 में भागकर शादी कर ली। बाद में दोनों परिवारों में सुलह हो गई। उनकी बेटी सना, जो 2001 में पैदा हुई, लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज से इकोनॉमिक्स में ग्रेजुएट है और मॉर्गन स्टैनली में काम करती है।


2021 में, सौरव को हल्का दिल का दौरा पड़ा, जिसके बाद उनकी एंजियोप्लास्टी हुई। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और जल्दी ठीक होकर क्रिकेट से जुड़े रहे।

सौरव गांगुली की विरासत रनों और जीत से कहीं बड़ी है। कुछ खास बातें जो उनकी विरासत को खास बनाती हैं:

युवा प्रतिभा को मौका: सौरव ने युवराज, सहवाग और हरभजन जैसे खिलाड़ियों को मौका दिया, जो बाद में सुपरस्टार बने।

विदेशी जीत: उनकी कप्तानी में भारत ने विदेशों में 11 टेस्ट जीते, जो उस समय रिकॉर्ड था।

ऑफ-साइड का जादू: उनकी ऑफ-साइड ड्राइव्स और लॉफ्टी कवर्स ने उन्हें गॉड ऑफ ऑफ-साइड बनाया।

आक्रामक रवैया: सौरव ने ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीमों को आँखों में आँखें डालकर चुनौती दी।

सौरव गांगुली सिर्फ एक क्रिकेटर नहीं, बल्कि एक भावना हैं। कोलकाता की गलियों से लॉर्ड्स की बालकनी तक, उन्होंने हर जगह अपनी छाप छोड़ी। उनकी जिद, उनका जुनून और उनकी नेतृत्व क्षमता ने भारतीय क्रिकेट को नई दिशा दी। चाहे वो 2003 वर्ल्ड कप का फाइनल हो, या 2002 की नेटवेस्ट ट्रॉफी की जीत, सौरव ने हर बार फैंस को गर्व करने का मौका दिया।

8 जुलाई को उनका जन्मदिन न सिर्फ उनके लिए, बल्कि हर उस फैन के लिए खास है, जो मानता है कि दादा जैसा कोई नहीं।

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