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Today Motivational Story: धर्मपत्नी और योगेश्वर
Today Motivational Story: आज हम आपके लिए एक ऐसी प्रेरक कहानी लेकर आये हैं जो आपको समाज का चेहरा समझने का प्रयास करेगी।
Today Motivational Story Dharampatni and Yogeshwar
Today Motivational Story: जैसे-जैसे योगेश्वर की उम्र बढ़ रही थी, उसकी धर्मपत्नी शालिनी का रुतबा और प्रभाव उस पर बढ़ता जा रहा था। दरअसल, दोनों के बीच खटपट की शुरुआत शादी के पांच-सात वर्षों के भीतर ही हो गई थी। तब तक उनके दो पुत्र और एक पुत्री का जन्म हो चुका था। अब जब तीनों की गृहस्थी बस चुकी थी, शालिनी के बालों में सफेदी आ गई थी, मगर उसके स्वभाव का पारा दिन-ब-दिन चढ़ता जा रहा था।
संयुक्त परिवार में जब भी कोई छोटी-बड़ी घटना घटती—जैसे कोई फिसलकर गिर जाता, सामान टूट जाता, या किसी को छींक आ जाती—तो शालिनी आंखें मूंदकर सारा दोष अपने पति योगेश्वर के सिर मढ़ देती। उसकी दृष्टि में घर में जो भी गलत होता, वह योगेश्वर की असावधानी या निर्णयहीनता का नतीजा था।
यहां तक कि अगर योगेश्वर कभी हल्के-फुल्के मजाक में कुछ कह देता, तो शालिनी उसे भी गंभीरता से लेकर झगड़ने पर उतारू हो जाती।
एक दिन उसने योगेश्वर से पूछा, “कौन-सी तारीख है आज और कौन-सा दिन?”
योगेश्वर ने सहज भाव से जवाब दिया, लेकिन वह तमतमा उठी—
“दिन-भर कलम चलाते हो, अखबार पढ़ते हो, मोबाइल में आंखें गड़ाए रहते हो और मुझसे तारीख पूछते हो! उल्लू बना रहे हो?”
योगेश्वर ने हँसते हुए कहा, “हमसे बहुत बड़ी गलती हो गई श्रीमतीजी, हो सके तो माफ कर दीजिए।”
शालिनी मौन रहकर आवेश में कुर्सी से उठी और बाथरूम की ओर चली गई।
कुछ ही देर बाद उसकी चीख सुनाई दी—
“अभी गिर ही जाती! हाथों में ताकत नहीं है कि वाइपर से बाथरूम सुखा दो?”
योगेश्वर ने जवाब दिया, “मैंने वाइपर से अच्छी तरह सफाई की थी… हो सकता है किसी और ने उपयोग किया हो।”
शालिनी का गुस्सा बढ़ता गया—
“गिर जाती तो तुम्हारा कलेजा ठंडा हो जाता!”
आख़िरकार, बहुत दिनों के बाद, योगेश्वर का धैर्य जवाब दे गया। वह कड़कती आवाज़ में बोल उठा:
“भूल गई वो दिन जब खपरैल वाले घर में पहली बार आई थीं और रोने लगी थीं? तब मैंने वादा किया था कि धीरे-धीरे सब सुख-सुविधा जुटा दूंगा। आज जब तुम्हारे पास सब कुछ है, तो मेरे प्रति यह व्यवहार क्यों?”
शालिनी फफक कर रो पड़ी।
योगेश्वर ने गुस्से में कहा, “अब ये घर नहीं, लड़ाई-झगड़े का अखाड़ा बन गया है। मैं गृहत्याग कर दूंगा!”
और वह अटैची में कपड़े भरने लगा।
तभी पोते-पोतियों का झुंड दौड़ा आया—
“मत जाइए दादाजी! चार दिन बाद रुपाली का जन्मदिन है।”
बच्चों की मासूम अपील ने योगेश्वर का क्रोध भंग कर दिया। उसने सबको गले से लगा लिया और कहा—
“अब जीवन की शेष यात्रा में तुम सब ही मेरा सहारा हो।”
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