US Tariff Impact: ट्रंप के 50% टैरिफ का भारत के उद्योगों पर असर, जानें किन क्षेत्रों को लगेगा बड़ा झटका और कौन रहेगा सुरक्षित?

US Tariff Impact: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि जब तक टैरिफ मुद्दे का समाधान नहीं होता, भारत से वार्तालाप नहीं होगा । दूसरी ओर अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत उनका महत्वपूर्ण भागीदार है और वे इस विषय पर खुलकर बातचीत करेंगे ।

Shivani Jawanjal
Published on: 11 Aug 2025 4:31 PM IST
US 50 Percent Tariff Impact on Indian Sectors Trump Russia Oil Imports 2025
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US 50 Percent Tariff Impact on Indian Sectors Trump Russia Oil Imports 2025

US Tariff Impact: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत से होने वाले अमेरिकी आयातों पर 50% तक का भारी-भरकम टैरिफ लगाने का ऐलान, अंतरराष्ट्रीय व्यापार समीकरणों में भूचाल ला सकता है। यह कठोर नीति 27 अगस्त 2025 से लागू होगी और इसके पीछे प्रमुख कारण के रूप में भारत का रूस से तेल आयात जारी रखना बताया गया है। इस कदम का भारत-अमेरिका व्यापारिक रिश्तों में गहरा असर हुआ है। भारतीय निर्यात, रोजगार, विदेशी निवेश और विकास दर पर गहरे आर्थिक प्रभाव पड़ सकते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार यह फैसला एशिया से लेकर पश्चिमी बाज़ारों तक व्यापक आर्थिक असंतुलन पैदा कर सकता है।

ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50% टैरिफ का अलग-अलग सेक्टर्स पर कैसे और कितना असर पड़ेगा।

टैरिफ का अर्थ और महत्व

टैरिफ यानी आयातित वस्तुओं पर लगाया जाने वाला कर है जो किसी भी देश की वाणिज्यिक नीति का एक सशक्त हथियार होता है। किसी देश की सरकार विदेशी माल पर यह कर लगाती है, ताकि घरेलू उद्योगों को बाहरी प्रतिस्पर्धा से बचाया जा सके और आयात पर नियंत्रण रखा जा सके। 50% टैरिफ बेहद ऊँचा स्तर है, जो किसी भी उत्पाद की अमेरिकी बाज़ार में प्रतियोगिता को प्रभावित करता है।इस तरह का बड़ा टैरिफ आमतौर पर किसी भी देश के रक्षात्मक नीति का हिस्सा होता है। जिसका उद्देश्य घरेलु उद्योगों को बढ़ावा देना तथा किसी दूसरे देश पर आर्थिक और राजनीतिक दबाव बनाना होता है ।

ट्रंप के 50% टैरिफ का किस क्षेत्र पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा

टेक्सटाइल और परिधान (Textiles & Apparel) - भारत का टेक्सटाइल और परिधान निर्यात $10.3 बिलियन से अधिक है। लेकिन 60 - 64% के भारी टैरिफ (जैसे कंबल, बेड लिनन, कपड़े) के कारण अमेरिकी खरीदारों ने फ़िलहाल ऑर्डर रोक दिए हैं। ऐसे में 30 - 40% तक निर्यात गिरने का खतरा है। इसके अलावा वियतनाम और बांग्लादेश जैसे देशों से प्रतिस्पर्धा और कठिन हो जाएगी, जिससे इस क्षेत्र में रोजगार और उत्पादन पर गंभीर असर पड़ सकता है।

रत्न और आभूषण (Gems & Jewellery) - $10–12 बिलियन के निर्यात वाला यह क्षेत्र अमेरिका पर सबसे ज्यादा निर्भर है, लेकिन 50 - 52% टैरिफ ने हालात बिगाड़ दिए हैं। ऑर्डर लगभग ठप हो चुके हैं और वियतनाम व थाईलैंड जैसी वैश्विक प्रतिस्पर्धा से दबाव बढ़ रहा है। जिसकारण इस क्षेत्र में छोटे कारीगरों से लेकर बड़े ब्रांड तक सभी प्रभावित होंगे।

समुद्री उत्पाद - $2.2–2.4 बिलियन के निर्यात वाले श्रिंप पर कुल 33% ड्यूटी (एंटी-डंपिंग व काउंटरवेलिंग शुल्क सहित) ने अमेरिकी बाज़ार में भारतीय श्रिंप को 30% महंगा कर दिया है। इससे इक्वाडोर और वियतनाम जैसे देशों की ओर आयात झुकाव बढ़ गया है, जिससे आंध्र प्रदेश और अन्य तटीय राज्यों के किसानों व उद्योगों पर गहरा असर पड़ सकता है।

चमड़ा और फुटवियर (Leather & Footwear) - लगभग $1.1 - 1.2 बिलियन के निर्यात वाले चमड़ा और फुटवियर पर 50% टैरिफ ने बाज़ार को कमजोर कर दिया है। इससे छोटे एमएसएमई उद्यमों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो सकता है और निर्यात सामर्थ्य में भी भारी गिरावट की आशंका जताई गई है।

रासायनिक उत्पाद (Chemicals) - $5.7 बिलियन के रासायनिक निर्यात पर 26% से लेकर कुछ मामलों में 54% तक टैरिफ ने लागत बढ़ा दी है। अमेरिका में प्रतिस्पर्धा कमजोर हुई है, खासतौर पर विशेष (specialty) केमिकल्स में, जहां भारतीय उत्पादकों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

इंजीनियरिंग, मशीनरी, फर्नीचर (Engineering, Machinery, Furniture) - मशीनरी पर 20 - 25% और फर्नीचर पर लगभग 52% टैरिफ ने इस क्षेत्र की कीमत और निवेश को प्रभावित किया है। अमेरिका में बिक्री घटने की संभावना है जिससे भारत के इंजीनियरिंग व मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को झटका लग सकता है।

बासमती चावल (Basmati Rice) - लगभग $337 मिलियन के निर्यात और 8 - 10% अमेरिकी मार्केट हिस्सेदारी वाले बासमती चावल पर 25% टैरिफ (और संभावित 50% की आशंका) कीमतों को बढ़ा सकता है। अमेरिका के प्रीमियम मार्केट में इससे पाकिस्तानी चावल को बढ़त मिल सकती है, जिससे भारतीय किसानों और निर्यातकों इसका बुरा असर हो सकता है ।

कम प्रभाव वाले क्षेत्र

फार्मास्युटिकल्स (Pharmaceuticals) - भारत अमेरिका की जेनेरिक दवाओं की जरूरत का लगभग 45% पूर्ति करता है और इस सेक्टर को फिलहाल टैरिफ से छूट मिली हुई है। अमेरिकी स्वास्थ्य प्रणाली भारतीय जेनेरिक दवाओं पर काफी हद तक निर्भर है, इसलिए इस पर उच्च टैरिफ लगाना व्यावहारिक नहीं माना जा रहा। यह छूट भारतीय फार्मा उद्योग के लिए एक बड़ी राहत है।

इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सेमीकंडक्टर (Electronics & Semiconductors) - स्मार्टफोन, कंप्यूटर, डिस्प्ले स्क्रीन जैसे हाई-टेक उत्पादों पर अमेरिका ने टैरिफ छूट दी है। इसका कारण यह है कि अमेरिकी टेक इंडस्ट्री को भारतीय इनोवेशन और सप्लाई से सीधा लाभ मिलता है, जिससे दोनों देशों के तकनीकी सहयोग को मजबूती मिलती है।

एनर्जी प्रोडक्ट्स (Energy Products: Oil, Gas, Coal) - कच्चा तेल, गैस और कोयला जैसे ऊर्जा उत्पादों पर ट्रंप द्वारा कोई टैरिफ नहीं लगाया गया है। यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अमेरिका से होने वाले इन आयातों पर रुकावट नहीं आएगी, जिससे ऊर्जा आपूर्ति स्थिर बनी रहेगी।

आईटी सर्विसेज़ और सॉफ्टवेयर (IT Services & Software) - भारतीय आईटी और सॉफ्टवेयर सेवाओं पर सीधे तौर पर टैरिफ का असर नहीं पड़ा है। हालांकि जिन विदेशी क्लाइंट्स पर टैरिफ का दबाव बढ़ेगा, वे अपनी लागत कम करने के लिए प्रोजेक्ट्स या निवेश में कटौती कर सकते हैं। जिससे इस क्षेत्र में अप्रत्यक्ष (सेकंड ऑर्डर) प्रभाव देखने को मिल सकता है।

वित्तीय सेवाएं और बैंकिंग (Financial Services & Banking) - वित्तीय कंपनियां और बैंक, टैरिफ के सीधे असर से बाहर हैं। घरेलू मांग और तरलता की स्थिति मजबूत होने के कारण यह सेक्टर स्थिर बना रह सकता है। हालांकि व्यापक आर्थिक माहौल में बदलाव इन पर अप्रत्यक्ष दबाव डाल सकता है।

भारत पर आर्थिक संकट?

अमेरिका, जो भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है द्वारा लगाए गए नए टैरिफ से भारतीय अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ने की आशंका है। आशंका है कि भारतीय निर्यात में लगभग 30% तक गिरावट आ सकती है जिससे निर्यात मूल्य $86.5 बिलियन से घटकर करीब $60.6 बिलियन रह जाएगा और विदेशी मुद्रा आय पर सीधा असर होगा। टेक्सटाइल, ज्वेलरी, मैन्युफैक्चरिंग और लेदर जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में लाखों नौकरियों पर संकट मंडरा रहा है, क्योंकि इन क्षेत्रों में करोड़ों लोग प्रत्यक्ष रूप से कार्यरत हैं। इसके साथ ही, विदेशी निवेशक विशेषकर अमेरिका से जुड़े है भारत में अपने निवेश फैसलों पर पुनर्विचार कर सकते हैं, जिससे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की विकास की गति धीमी पड़ सकती है। आर्थिक मोर्चे पर गोल्डमैन सैक्स, मूडीज़ और UBS जैसी वैश्विक एजेंसियां चेतावनी दे चुकी हैं कि इन टैरिफ का असर भारत की GDP ग्रोथ दर को 0.3% से 0.5% तक नीचे खींच सकता है। जिसके चलते लगभग 23 अरब डॉलर आर्थिक नुकसान की आशंका जताई गई है ।

विश्वव्यापी प्रभाव

अमेरिकी टैरिफ में भारी बढ़ोतरी के चलते भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में बड़े बदलाव की संभावना बन रही है। अमेरिकी आयातकर्ता अब भारत से महंगे पड़ने वाले उत्पादों की जगह वियतनाम, बांग्लादेश, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे वैकल्पिक देशों की ओर रुख कर रहे हैं, जिससे आपूर्ति श्रृंखला का पुनर्गठन तेज़ हो सकता है । यह बदलाव एशियाई देशों में प्रतिस्पर्धा को और बढ़ा देगा क्योंकि ये देश अमेरिकी बाजार में भारत की जगह अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए सक्रिय रूप से प्रयासरत रहेंगे । दूसरी ओर भारत ने इस टैरिफ को अनुचित करार देते हुए WTO में शिकायत दर्ज कराने की संभावना जताई है। अगर अमेरिका और भारत दोनों ही जवाबी कदम उठाते हैं, तो व्यापारिक तनाव गहराकर वैश्विक व्यापार संघर्ष का खतरा पैदा हो सकता है। जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार की स्थिरता में भारी बाधा आ सकती है।

भारत के पास पर्याय

अमेरिका द्वारा लगाए गए ऊंचे टैरिफ के बीच भारत राजनीतिक, आर्थिक और कानूनी सभी मोर्चों पर युक्ति बना रहा है। फ़िलहाल टैरिफ में छूट के लिए अमेरिका से बातचीत ठप है लेकिन भारत, नए बाजार जैसे यूरोप, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका में निर्यात बढ़ाकर निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहा है। साथ ही, घरेलू उपभोग को प्रोत्साहित कर निर्यात-निर्भर क्षेत्रों को सहारा देने की भी योजना है। इसके अलावा, भारत अमेरिकी टैरिफ को WTO में चुनौती देने पर भी विचार कर रहा है, ताकि अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने हितों की रक्षा कर सके ।

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