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US Tariff Hike to 50% on Indian Goods: रिकार्ड तोड़ बढ़ सकती है पेट्रोल डीजल कीमतें
US Tariff Hike to 50% on Indian Goods: ट्रम्प की स्ट्राइक पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का रुख सख्त दिये अमेरिकी दबाव में न आने के संकेत
Crude Oil Prices (Social Media)(Social Media)
Crude Oil Prices: 2025 टैरिफ, व्यापार युद्धों और तनावों का वर्ष साबित होने जा रहा है। और इस सबकी शुरुआत डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद से शुरू हुई है। जो कि अगस्त की शुरुआत होते ही भारत के लिए और भी गर्म हो गई है, क्योंकि अमेरिका ने भारत द्वारा रियायती दरों पर रूसी कच्चे तेल के बढ़ते आयात का हवाला देते हुए भारतीय वस्तुओं पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगा दिया है। यह कदम, कुछ शुल्कों को प्रभावी रूप से दोगुना करके 50% तक कर रहा है, जो अमेरिका-भारत व्यापार संबंधों में सबसे तीव्र गिरावट का संकेत दे रहा है। हाल फिलहाल तो पेट्रोल डीजल की कीमतों में कोई बड़ी वृद्धि नहीं दिखी है लेकिन आने वाले समय में इसमें भारी इजाफा हो सकता है। जिससे कीमतें भी प्रभावित होंगी और महंगाई भी बढ़ेगी।
आइए जानते हैं मुद्दा क्या है
मुद्दा है 50% का, जी हाँ, अब अधिकांश भारतीय वस्तुओं पर अमेरिका का टैरिफ 50% है। ट्रम्प ने भारत द्वारा रूसी तेल के निरंतर आयात के लिए "दंड" के रूप में अतिरिक्त 25% टैरिफ की घोषणा की, जो पहले लगाए गए 25% शुल्क के अतिरिक्त है। पहली 25% दर 7 अगस्त, 2025 से प्रभावी होगी, और अतिरिक्त 25% दर 21 दिन बाद लागू होगी, यानी पूरी 50% दर अगस्त 2025 के अंत में लागू होगी। ट्रम्प ने इसको यहीं विराम न देते हुए 500 प्रतिशत तक ले जाने की चेतावनी भी दी है।
ट्रम्प का यह रुख 2022 से भारत द्वारा रूस से तेल खरीद में उल्लेखनीय वृद्धि के बाद आया है। रूसी कच्चे तेल की ओर झुकाव तेज़ और व्यापक रहा है। 2024 में भारत के कुल कच्चे तेल के आयात में रूस का हिस्सा लगभग 36% था, जो यूक्रेन युद्ध (2022) से पहले केवल ~2% था। 2024 में एक समय, रूसी तेल भारत की मासिक कच्चे तेल आपूर्ति का 40% से अधिक था, जो एक ऐतिहासिक उच्च स्तर था।
भू-राजनीतिक तनाव कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि करते हैं, जिससे भारत के महत्वपूर्ण ईंधन आयात की लागत सीधे तौर पर बढ़ जाती है, जिससे घरेलू पेट्रोल और डीज़ल की कीमतें बढ़ जाती हैं, मुद्रास्फीति बढ़ती है और देश के राजकोषीय और चालू खाता शेष पर दबाव पड़ता है। हालाँकि निकट भविष्य की लागतों को वहन करने के सरकारी उपायों से प्रत्यक्ष मूल्य वृद्धि में देरी हो सकती है, लेकिन निरंतर मूल्य वृद्धि अंततः उपभोक्ताओं के लिए ईंधन की लागत और उद्योगों के लिए परिचालन लागत में वृद्धि का कारण बनती है।
जानते हैं तनाव कैसे भारतीय कीमतों को प्रभावित करेगा
आयात लागत में वृद्धि:
भारत अपने कच्चे तेल का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है, इसलिए जब वैश्विक तनाव के कारण कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो भारत का आयात बिल बढ़ जाता है क्योंकि उतनी ही मात्रा में तेल खरीदने के लिए अधिक विदेशी मुद्रा की आवश्यकता होती है। जिसका असर भारत के घरेलू बाजार पर पड़ना स्वाभाविक हो जाता है।
शोधन लागत बढ़ जाती है
कच्चे तेल को पेट्रोल, डीज़ल और अन्य उत्पादों में परिष्कृत किया जाता है। कच्चे तेल की बढ़ी हुई कीमतें इस शोधन प्रक्रिया की लागत को बढ़ा देती हैं, जिससे पंप पर कीमतें बढ़ जाएंगी और जनता के हित सीधे प्रभावित होंगे।
3. मुद्रा विनिमय दरें:
डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये के कमजोर होने से कच्चे तेल के आयात की लागत भी बढ़ जाएगी, क्योंकि उसी डॉलर-मूल्यवर्ग के कच्चे तेल को खरीदने के लिए अधिक रुपये की आवश्यकता होगी, जिससे ईंधन की कीमतों पर और दबाव बढ़ेगा।
सरकारी हस्तक्षेप और सब्सिडी:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करों (जैसे उत्पाद शुल्क या वैट) को कम करके या उपभोक्ताओं को सुरक्षा प्रदान करके कुछ मूल्य झटकों को सहन करने की शक्ति दे सकते हैं। लेकिन इन उपायों से सरकारी खर्च बढ़ेगा और राजकोषीय घाटा बढ़ सकता है।
मुद्रास्फीति का विस्फोट
परिवहन और विनिर्माण के लिए ईंधन की बढ़ती लागत आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को बढ़ा देगी जिससे मुद्रास्फीति की एक अकल्पनीय स्थिति पैदा हो सकती है। इसके अलावा ईंधन सब्सिडी पर बढ़ता खर्च और आयात बिल बढ़ने से सरकार का राजकोषीय घाटा बहुत अधिक है और भारत के चालू खाता शेष पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
पेट्रोल और डीजल की कीमतें बढ़ेंगी तो घरेलू बजट पर दबाव भी बढ़ेगा क्योंकि ईंधन कई परिवारों के मासिक खर्च का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जनता के लिए विकट स्थिति होगी जिसे सम्हालना कठिन हो जाएगा। प्रमुख उद्योगों को परिचालन और परिवहन लागत में वृद्धि के कारण मार्जिन लाभ पर दबाव का सामना करना पड़ेगा जिससे उनकी लाभप्रदता प्रभावित होगी।
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