Sexual Addiction: सावधान! सेक्स की लत कोई मज़ाक नहीं, आज ही जान लें इसके भारी नुकसान

What Is Sexual Addiction: यह लेख हाइपरसेक्सुएलिटी यानी सेक्स की लत के कारणों, लक्षणों, प्रभावों और उपचारों को विस्तार से समझाते हुए इसके मानसिक स्वास्थ्य पक्ष को उजागर करता है।

Shivani Jawanjal
Published on: 29 July 2025 4:24 PM IST
What Is Sexual Addiction
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What Is Sexual Addiction

Sexual Addiction Kya Hai: मानव जीवन में यौन इच्छा एक सामान्य और स्वाभाविक भावना है जो व्यक्ति के भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी होती है। लेकिन जब यह इच्छा सामान्य सीमाओं को पार कर जाती है और व्यक्ति पर पूरी तरह से हावी हो जाती है, तो यह एक मानसिक विकार का रूप ले सकती है जिसे हाइपरसेक्सुएलिटी या सेक्स एडिक्शन (Sexual Addiction) कहा जाता है। यह स्थिति न केवल व्यक्ति के निजी जीवन को प्रभावित करती है बल्कि सामाजिक, व्यावसायिक और पारिवारिक जीवन में भी संकट खड़ा कर सकती है।

क्या है हाइपरसेक्सुएलिटी?


हाइपरसेक्सुएलिटी को हिंदी में 'अत्यधिक यौन इच्छा' या 'यौन लत' कहा जाता है। यह एक ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति की यौन इच्छाएँ असामान्य रूप से तीव्र और बार-बार होती हैं, जिससे वह खुद पर नियंत्रण नहीं रख यह प्रवृत्ति अक्सर बार-बार हस्तमैथुन, पोर्न देखने की लत, कई यौन साथियों से संबंध बनाने या जोखिमपूर्ण यौन गतिविधियों के रूप में दिखाई देती है। ऐसी आदतें धीरे-धीरे व्यक्ति के निजी रिश्तों, सामाजिक छवि और पेशेवर जीवन पर नकारात्मक असर डालने लगती हैं। चिकित्सा विज्ञान में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जैसे - ‘सेक्सुअल एडिक्शन’, ‘कंट्रोल रहित यौन व्यवहार’ या ‘हाइपरसेक्सुअल डिसऑर्डर’। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने भी इसे एक गंभीर मानसिक स्वास्थ्य विकार के रूप में मान्यता देते हुए अपने ICD-11 मैनुअल में 'Compulsive Sexual Behaviour Disorder' के रूप में सूचीबद्ध किया है।

हाइपरसेक्सुएलिटी के प्रमुख लक्षण

हाइपरसेक्सुएलिटी में व्यक्ति कुछ विशिष्ट और परेशान करने वाले लक्षणों का अनुभव करता है जो उसके मानसिक और सामाजिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालते हैं।

इसमें सबसे पहले अत्यधिक यौन कल्पनाएं और विचार शामिल हैं जिसमें व्यक्ति दिनभर यौन कल्पनाओं में खोया रहता है और इन्हें रोक पाना उसके लिए बेहद कठिन हो जाता है। इसके अलावा आवश्यकता से अधिक हस्तमैथुन करना भी एक प्रमुख लक्षण है। जिसमें व्यक्ति दिन में कई बार हस्तमैथुन करता है और इसे रोकने में असमर्थ रहता है।

पोर्नोग्राफी की लत भी इस विकार का संकेतक हो सकती है जिसमें व्यक्ति घंटों पोर्न देखने में व्यस्त रहता है और इसके लिए अन्य जरूरी कार्यों की उपेक्षा करता है। जोखिम भरे यौन संबंध बनाना जैसे बार-बार पार्टनर बदलना, बिना सुरक्षा के अजनबियों से संबंध बनाना भी इस स्थिति के खतरनाक पहलुओं में से हैं।

इस विकार में व्यक्ति का यौन व्यवहार अनियंत्रित हो जाता है और वह यौन गतिविधियों में नियंत्रण न रख पाने के कारण अपने काम, पारिवारिक जीवन और सामाजिक संबंधों को प्रभावित करता है। अंततः गिल्ट और शर्म के भाव भी लगातार बने रहते हैं। जहाँ व्यक्ति अपने व्यवहार के बाद अपराधबोध या शर्म महसूस करता है। लेकिन फिर भी वही क्रियाएं बार-बार दोहराता है। यह एक दुष्चक्र बन जाता है जिससे निकलना आसान नहीं होता।

हाइपरसेक्सुएलिटी के कारण

हाइपरसेक्सुएलिटी केवल एक व्यवहारिक समस्या नहीं बल्कि मानसिक, जैविक और सामाजिक कारणों का परिणाम होती है। खासकर मस्तिष्क में डोपामिन और सेरोटोनिन जैसे रसायनों का असंतुलन यौन उत्तेजना और संतुष्टि की जरूरत को असामान्य रूप से बढ़ा देता है। जिससे वह बार-बार यौन संतुष्टि की ओर आकर्षित होता है।

इसके अलावा बाल्यकाल में यौन शोषण या मानसिक आघात का भी गहरा असर होता है। ऐसे व्यक्ति जो बचपन में किसी यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा या भावनात्मक आघात का शिकार रहे हैं। वे वयस्क होने पर हाइपरसेक्सुएलिटी जैसी मानसिक अवस्था का अनुभव कर सकते हैं।

अकेलापन या अवसाद भी एक प्रमुख मनोवैज्ञानिक कारण है। जब व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक खालीपन, चिंता या अवसाद से गुजरता है तो वह यौन गतिविधियों के जरिए अस्थायी राहत पाने की कोशिश करता है, जो धीरे-धीरे लत में बदल सकती है।

वर्तमान डिजिटल युग में इंटरनेट और पोर्न की आसान उपलब्धता ने भी इस समस्या को बढ़ावा दिया है। स्मार्टफोन और इंटरनेट के माध्यम से पोर्नोग्राफी की हर समय पहुंच ने इसे और अधिक अनियंत्रित बना दिया है।

अंततः नशे या अन्य मानसिक विकारों के साथ सह-अस्तित्व जैसे बाइपोलर डिसऑर्डर, शराब या ड्रग्स की लत भी हाइपरसेक्सुएलिटी को जन्म दे सकती है। इन सभी परिस्थितियों का असर मस्तिष्क के रासायनिक संतुलन पर पड़ता है, जिससे व्यक्ति का यौन व्यवहार असंतुलित हो जाता है और उस पर नियंत्रण रखना मुश्किल हो जाता है।

हाइपरसेक्सुएलिटी के दुष्परिणाम

हाइपरसेक्सुएलिटी केवल व्यक्ति की निजी समस्या नहीं होती बल्कि इसके गंभीर दुष्परिणाम उसके रिश्तों, सामाजिक जीवन, आर्थिक स्थिति और मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ते हैं। सबसे पहले यह रिश्तों पर असर डालती है। जहां अनियंत्रित यौन व्यवहार के कारण साथी के साथ विश्वास टूट जाता है और कई बार विवाह-विच्छेद या संबंध-विच्छेद की नौबत आ जाती है। इसके अलावा व्यक्ति यौन गतिविधियों पर अत्यधिक खर्च करता है जैसे पोर्न साइट्स की सदस्यता, सेक्स वर्कर्स या यौन चैटिंग सेवाओं पर खर्च करना जिससे आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।

सामाजिक बदनामी भी एक बड़ा खतरा बन जाती है क्योंकि ऐसे व्यक्ति पर अश्लीलता या यौन उत्पीड़न जैसे आरोप लग सकते हैं। जिससे उनकी सार्वजनिक छवि धूमिल हो जाती है। इसके साथ ही असुरक्षित यौन संबंधों की प्रवृत्ति के चलते व्यक्ति HIV, STI जैसे यौन संचारित रोगों का शिकार भी हो सकता है।

इन सबके अलावा, इस विकार से पीड़ित व्यक्ति को भावनात्मक क्षति भी गहराई से प्रभावित करती है। शर्म, अपराधबोध, आत्मग्लानि और अवसाद जैसे भाव उसे भीतर से तोड़ सकते हैं। गंभीर स्थिति में यह मानसिक तनाव आत्महत्या की प्रवृत्ति तक ले जा सकता है जो इस मानसिक विकार की भयावहता को स्पष्ट करता है।

हाइपरसेक्सुएलिटी का उपचार

हाइपरसेक्सुएलिटी के प्रभावी उपचार के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाया जाता है जिसमें मानसिक, दवाइयों और व्यवहारिक पहलुओं को शामिल किया जाता है। सबसे पहले मनोचिकित्सा (Psychotherapy) की बात करें तो इसमें कॉग्निटिव बिहेवियरल थैरेपी (CBT) अत्यंत प्रभावी मानी जाती है। जो व्यक्ति की नकारात्मक सोच और व्यवहार में सकारात्मक बदलाव लाने में मदद करती है। वहीं साइकोडायनामिक थैरेपी अतीत के अनुभवों की गहराई से पड़ताल कर समस्या की जड़ को समझने का प्रयास करती है।

समूह चिकित्सा (Group Therapy) जैसे कि Sex Addicts Anonymous (SAA) में भाग लेना भी बेहद उपयोगी होता है। जहाँ व्यक्ति समान अनुभव साझा करने वाले अन्य लोगों से भावनात्मक समर्थन और प्रोत्साहन प्राप्त करता है।

इसके साथ ही दवा उपचार (Medication) में अवसाद रोधी, चिंता नाशक और हार्मोन नियामक दवाओं का प्रयोग किया जाता है जो मानसिक संतुलन बनाए रखने और यौन इच्छा को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं। कुछ मामलों में मूड स्टेबलाइजर्स और एंटी-एंड्रोजन दवाएं भी दी जा सकती हैं।

डिजिटल युग में डिजिटल डिटॉक्स भी एक आवश्यक उपाय बन गया है। जिसमें पोर्न ब्लॉकर ऐप्स और इंटरनेट की सीमित उपयोगिता व्यक्ति को यौन उत्तेजना से दूर रखने में मदद करती है। अंततः योग और मेडिटेशन जैसे पारंपरिक उपाय मानसिक शांति, आत्मनियंत्रण और आंतरिक ऊर्जा को सशक्त बनाते हैं। जिससे व्यक्ति अपनी यौन प्रवृत्तियों पर बेहतर नियंत्रण पा सकता है। यह समग्र उपचार व्यक्ति को संतुलित जीवन जीने की दिशा में प्रेरित करता है।

परिवार और समाज की भूमिका

हाइपरसेक्सुएलिटी से जूझ रहे व्यक्ति को शर्मिंदा करने या उपहास करने की बजाय, उन्हें समझने और सहयोग देने की जरूरत होती है। परिवार का सकारात्मक समर्थन, साथी की सहानुभूति और सामाजिक स्वीकार्यता इस बीमारी से उबरने में अहम भूमिका निभाते हैं।

सेक्स एडिक्शन गलत धारणाएं और सच्चाई

सेक्स एडिक्शन या हाइपरसेक्सुएलिटी को लेकर कई गलत धारणाएं प्रचलित हैं जिन्हें सच्चाई से अलग करना आवश्यक है। सबसे पहला मिथक यह है कि यह समस्या मजाक या बहाना है जबकि वास्तव में यह एक गंभीर मानसिक विकार है जिसे चिकित्सा और मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझा जाता है। दूसरा आम गलतफहमी यह है कि केवल पुरुष ही इस बीमारी से प्रभावित होते हैं। परंतु महिलाओं को भी यह समस्या हो सकती है हालांकि उनके लक्षण और प्रकृति थोड़ी भिन्न हो सकती है। इसके अलावा कई लोग मानते हैं कि यह समस्या केवल इच्छाशक्ति से ठीक हो जाती है। लेकिन यह एक जटिल विकार है जिसके उपचार के लिए पेशेवर चिकित्सा, मनोचिकित्सा और सहायक उपचार आवश्यक होते हैं। अंत में यह धारणा भी गलत है कि जो लोग ज्यादा सेक्स करते हैं वे बीमार होते हैं। वास्तव में समस्या यौन क्रियाकलापों की संख्या में नहीं बल्कि उनकी अनियंत्रित और आवश्यकता से अधिक प्रवृत्ति में है। इसलिए सेक्स एडिक्शन के संदर्भ में इन मिथकों को समझना और उनसे अलग होना जरूरी है ताकि उचित इलाज और सहायता प्राप्त की जा सके।

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