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World Zoonosis Day 2025: विश्व जूनोसिस दिवस की शुरुआत कब हुई, क्या था इसे मनाने का उद्देश्य, इसे जानें और अपनी जान बचाएं
World Zoonosis Day: क्या आप जानते हैं कि विश्व जूनोसिस दिवस क्यों मनाया जाता है और इसका इतिहास और महत्त्व क्या है? आइये विस्तार से जानते हैं।
World Zoonosis Day (Image Credit-Social Media)
World Zoonosis Day : विश्व जूनोसिस दिवस हर साल 6 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिन जूनोटिक बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने और इनके खतरे से बचाव के उपायों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है। जूनोसिस ऐसी बीमारियां हैं जो जानवरों से इंसानों में और कभी-कभी इंसानों से जानवरों में फैलती हैं। ये बीमारियां वायरस बैक्टीरिया परजीवी या कवक के कारण हो सकती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 60 प्रतिशत से अधिक मानव रोग जूनोटिक हैं और ये विश्व भर में स्वास्थ्य के लिए एक बड़ा खतरा हैं। 2025 में विश्व जूनोसिस दिवस का महत्व और बढ़ गया है क्योंकि हाल के वर्षों में कोविड-19 जैसी महामारियों ने जूनोटिक बीमारियों के प्रति लोगों का ध्यान खींचा है।
जूनोसिस का अर्थ और महत्व
जूनोसिस शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है जिसमें जून का अर्थ है जानवर और नोसोस का अर्थ है बीमारी। इसका मतलब ऐसी बीमारियां हैं जो जानवरों से इंसानों में फैलती हैं। ये बीमारियां सीधे संपर्क जैसे जानवर के काटने लार रक्त मूत्र या मल के माध्यम से फैल सकती हैं। इसके अलावा अप्रत्यक्ष रूप से दूषित भोजन पानी या पर्यावरण के जरिए भी ये फैलती हैं। कुछ बीमारियां मच्छर पिस्सू या टिक जैसे कीड़ों के काटने से भी फैलती हैं। विश्व जूनोसिस दिवस का उद्देश्य इन बीमारियों के बारे में लोगों को शिक्षित करना और इनके रोकथाम के उपायों को बढ़ावा देना है।
जूनोसिस का महत्व इसलिए भी है क्योंकि ये मानव स्वास्थ्य पशु स्वास्थ्य और पर्यावरण को प्रभावित करती हैं। ये बीमारियां खेती पशुपालन और खाद्य उत्पादन पर भी असर डालती हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई जूनोटिक बीमारी फैलती है तो पशु उत्पादों का व्यापार रुक सकता है जिससे आर्थिक नुकसान होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल लगभग 10 लाख लोग जूनोटिक बीमारियों के कारण अपनी जान गंवाते हैं खासकर निम्न और मध्यम आय वाले देशों में। 2025 में यह दिन और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वैश्विक स्वास्थ्य संकटों ने हमें एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण की जरूरत को उजागर किया है जिसमें मानव पशु और पर्यावरण का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है।
विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास
विश्व जूनोसिस दिवस का इतिहास 6 जुलाई 1885 से शुरू होता है जब फ्रांसीसी जीवविज्ञानी लुई पाश्चर ने रेबीज के खिलाफ पहला टीका सफलतापूर्वक लगाया। रेबीज एक खतरनाक जूनोटिक बीमारी है जो मुख्य रूप से कुत्तों के काटने से फैलती है। लुई पाश्चर ने एक नौ साल के लड़के जोसेफ मीस्टर को रेबीज का टीका लगाकर उसकी जान बचाई। यह घटना चिकित्सा इतिहास में एक मील का पत्थर थी क्योंकि इसने जूनोटिक बीमारियों के खिलाफ लड़ाई की शुरुआत की। इस उपलब्धि की याद में 2007 से हर साल 6 जुलाई को विश्व जूनोसिस दिवस मनाया जाता है।
यह दिवस न केवल लुई पाश्चर के योगदान को सम्मानित करता है बल्कि जूनोटिक बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाने और अनुसंधान को प्रोत्साहित करने का अवसर भी देता है। 2025 में विश्व जूनोसिस दिवस की थीम एक विश्व एक स्वास्थ्य जूनोसिस की रोकथाम है। यह थीम मानव पशु और पर्यावरण के बीच सहयोग पर जोर देती है ताकि जूनोटिक बीमारियों को नियंत्रित किया जा सके। इस थीम ने वैश्विक समुदाय को यह समझने के लिए प्रेरित किया कि बीमारियों का मुकाबला करने के लिए सभी क्षेत्रों का एक साथ काम करना जरूरी है।
जूनोटिक बीमारियों के प्रकार
जूनोटिक बीमारियां कई प्रकार की होती हैं जो उनके रोगजनकों के आधार पर वर्गीकृत की जाती हैं। इनमें शामिल हैं।
- वायरल जूनोसिस ये बीमारियां वायरस के कारण होती हैं। उदाहरण के लिए रेबीज इबोला स्वाइन फ्लू बर्ड फ्लू निपाह वायरस और कोविड-19। कोविड-19 को चमगादड़ से इंसानों में फैलने वाली बीमारी माना जाता है जिसने 2020 में विश्व स्तर पर महामारी का रूप लिया।
- बैक्टीरियल जूनोसिस ये बैक्टीरिया के कारण होती हैं जैसे एंथ्रेक्स ब्रूसेलोसिस और साल्मोनेलोसिस। ब्रूसेलोसिस गाय भेड़ और कुत्तों से इंसानों में फैलता है और इससे बुखार कमजोरी और बदन दर्द जैसे लक्षण होते हैं।
- फंगल जूनोसिस कवक के कारण होने वाली बीमारियां जैसे दाद जो जानवरों से इंसानों में फैलती है।
- परजीवी जूनोसिस परजीवियों के कारण होने वाली बीमारियां जैसे टोक्सोप्लासमोसिस जो बिल्लियों से इंसानों में फैल सकता है।
इनके अलावा कुछ बीमारियां मच्छरों टिक या पिस्सू जैसे कीड़ों के माध्यम से फैलती हैं जैसे डेंगू चिकुनगुनिया और जीका वायरस। भारत में रेबीज स्केबीज स्वाइन फ्लू डेंगू और निपाह जैसी जूनोटिक बीमारियां आम हैं।
जूनोसिस के फैलने के तरीके
जूनोटिक बीमारियां कई तरीकों से फैलती हैं। इनमें शामिल हैं।
- सीधा संपर्क संक्रमित जानवर की लार रक्त मूत्र मल या अन्य शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क से। उदाहरण के लिए रेबीज कुत्ते के काटने से फैलता है।
- अप्रत्यक्ष संपर्क दूषित सतहों भोजन या पानी के माध्यम से। उदाहरण के लिए साल्मोनेलोसिस दूषित अंडे या मांस खाने से हो सकता है।
- वेक्टर जनन कीड़े जैसे मच्छर टिक या पिस्सू के काटने से। डेंगू और मलेरिया इसके उदाहरण हैं।
- हवा के माध्यम से कुछ बीमारियां जैसे बर्ड फ्लू हवा के जरिए फैल सकती हैं।
जूनोटिक बीमारियां पालतू जानवरों जंगली जानवरों या खेती में इस्तेमाल होने वाले जानवरों से फैल सकती हैं। इसके अलावा रिवर्स जूनोसिस भी संभव है जिसमें बीमारी इंसानों से जानवरों में फैलती है। उदाहरण के लिए कोविड-19 का कुछ मामलों में इंसानों से पालतू जानवरों में फैलना देखा गया है।
विश्व जूनोसिस दिवस का उद्देश्य
विश्व जूनोसिस दिवस का मुख्य उद्देश्य जूनोटिक बीमारियों के खतरे के बारे में जागरूकता फैलाना है। यह दिन लोगों को इन बीमारियों के कारण लक्षण और बचाव के तरीकों के बारे में शिक्षित करता है। इसके अलावा यह अनुसंधान और सहयोग को बढ़ावा देता है ताकि नई जूनोटिक बीमारियों को रोका जा सके। यह दिवस एक स्वास्थ्य दृष्टिकोण को अपनाने पर जोर देता है जिसमें मानव पशु और पर्यावरण का स्वास्थ्य एक साथ देखा जाता है।
2025 में इस दिवस पर विश्व भर में कई जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। भारत में मत्स्यपालन पशुपालन और डेयरी मंत्रालय ने जूनोटिक रोगों पर जागरूकता अभियान चलाने की योजना बनाई है। इन कार्यक्रमों में टीकाकरण स्वच्छता और पशु स्वास्थ्य की जांच पर जोर दिया जाएगा। इसके अलावा गैर-सरकारी संगठन और स्थानीय समुदाय भी इन अभियानों में हिस्सा लेंगे।
जूनोसिस से बचाव के उपाय
जूनोटिक बीमारियों से बचने के लिए कुछ सावधानियां जरूरी हैं।
- स्वच्छता बनाए रखें जानवरों को छूने या उनके साथ खेलने के बाद हाथ साबुन और पानी से धोएं।
- टीकाकरण पालतू जानवरों को नियमित रूप से टीके लगवाएं खासकर रेबीज के लिए।
- दूषित भोजन और पानी से बचें बिना पका हुआ मांस या दूषित पानी का सेवन न करें।
- कीड़ों से बचाव मच्छरों और टिक से बचने के लिए मच्छरदानी और कीट नाशक का उपयोग करें।
- जंगली जानवरों से दूरी जंगलों में जाने पर शरीर को ढकने वाले कपड़े पहनें और जानवरों के रहने की जगहों से सावधान रहें।
- पशु स्वास्थ्य की जांच पालतू या खेती के जानवरों की नियमित जांच करवाएं।
- इन उपायों को अपनाकर जूनोटिक बीमारियों के खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
जूनोसिस का वैश्विक और भारतीय परिदृश्य
विश्व स्तर पर जूनोटिक बीमारियां एक बड़ी चुनौती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 75 प्रतिशत नई उभरती बीमारियां जूनोटिक हैं। कोविड-19 इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसने विश्व अर्थव्यवस्था और स्वास्थ्य को प्रभावित किया। 2020 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम और अंतरराष्ट्रीय पशुधन अनुसंधान संस्थान की एक रिपोर्ट में कहा गया कि 70 प्रतिशत जूनोटिक बीमारियां अभी तक अज्ञात हैं।
भारत में जूनोटिक बीमारियां एक प्रमुख सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या हैं। रेबीज भारत में सबसे आम जूनोटिक बीमारी है जो हर साल हजारों लोगों की जान लेती है। इसके अलावा डेंगू मलेरिया निपाह और स्वाइन फ्लू जैसे रोग भी भारत में फैलते हैं। भारत की घनी जनसंख्या और पशुपालन पर निर्भरता के कारण जूनोटिक बीमारियों का खतरा अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों में जहां लोग जानवरों के साथ निकट संपर्क में रहते हैं वहां ये बीमारियां तेजी से फैल सकती हैं।
विश्व जूनोसिस दिवस 2025 की गतिविधियां
2025 में विश्व जूनोसिस दिवस पर विश्व भर में जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे। भारत में सरकार और गैर-सरकारी संगठनों ने मिलकर टीकाकरण शिविर स्वच्छता अभियान और शैक्षिक कार्यक्रम आयोजित करने की योजना बनाई है। इन कार्यक्रमों में पशु चिकित्सकों डॉक्टरों और पर्यावरण विशेषज्ञों की भागीदारी होगी। थीम एक विश्व एक स्वास्थ्य के तहत यह जोर दिया जाएगा कि मानव पशु और पर्यावरण का स्वास्थ्य आपस में जुड़ा हुआ है। इसके अलावा सोशल मीडिया पर जागरूकता अभियान चलाए जाएंगे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग जूनोटिक बीमारियों के बारे में जान सकें।
विश्व जूनोसिस दिवस 2025 जूनोटिक बीमारियों के प्रति जागरूकता फैलाने और उनके रोकथाम के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। यह दिन लुई पाश्चर की ऐतिहासिक उपलब्धि को याद करता है और हमें स्वास्थ्य पर्यावरण और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाए रखने की प्रेरणा देता है। रामपुर की खड़ी कब्र और छेद वाला सिंहासन जैसे प्रतीक हमें सावधानी और जिम्मेदारी की याद दिलाते हैं। जूनोटिक बीमारियां एक वैश्विक चुनौती हैं और इन्हें रोकने के लिए सामूहिक प्रयास जरूरी हैं। स्वच्छता टीकाकरण और अनुसंधान के जरिए हम इन बीमारियों को नियंत्रित कर सकते हैं और एक स्वस्थ विश्व का निर्माण कर सकते हैं।
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