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तिरंगे की अनूठी यात्रा: एक ध्वज जो बना राष्ट्र की आत्मा
Bharat ke Tirange Ki Kahani: भारत का तिरंगा स्वतंत्रता के लिए लंबे संघर्ष, असंख्य बलिदानों और एक नए राष्ट्र के जन्म की गवाही देता गौरवपूर्ण प्रतीक है।
Unique Journey of the Tricolor Flag of India (Image Credit-Social Media)
Unique Journey of the Tricolor Flag of India: आज से एक महीने बाद जब हम भारतीय अपना स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे तब शायद ये लेख आप को और मूल्यवान लगे लेकिन आज भी अगर आप इसे पढ़ेंगे तो देश की और तिरंगे की यात्रा आपको अभिभूत कर देगी। भारत का राष्ट्रीय ध्वज, हमारा तिरंगा, केवल कपड़े का टुकड़ा नहीं है। यह स्वतंत्रता के लिए लंबे संघर्ष, असंख्य बलिदानों और एक नए राष्ट्र के जन्म की गवाही देता गौरवपूर्ण प्रतीक है। इसकी यात्रा उतनी ही समृद्ध और जटिल है, जितना स्वयं भारत का इतिहास। आइए, तथ्यों की कसौटी पर कसकर जानें इस पवित्र प्रतीक के विकास की कहानी:
1. प्रारंभिक प्रयास (1904-1906):
सबसे पहले ज्ञात "भारतीय" ध्वज का विचार सिस्टर निवेदिता (आयरिश-स्कॉटिश विचारक, स्वामी विवेकानंद की शिष्या) ने 1904 में रखा। इसमें लाल और पीले रंग थे, जिसमें वज्र (बौद्ध प्रतीक) और 'वन्दे मातरम्' लिखा था।
7 अगस्त, 1906 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के पारसी बागान चौक (ग्रीन पार्क) में फहराया गया ध्वज पहला ज्ञात सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित "राष्ट्रीय" ध्वज माना जाता है। इसमें हरी पट्टी (ऊपर), पीली (बीच में 'वन्दे मातरम्') और लाल (नीचे) थीं। इसे कलकत्ता ध्वज या लोटस ध्वज कहा गया।
2. सूर्य और चंद्र का युग (1907):
1907 में मैडम कामा और निर्वासित क्रांतिकारियों ने जर्मनी के स्टटगार्ट में एक अलग ध्वज फहराया। इसमें केसरिया (ऊपर), पीली (बीच में 'वन्दे मातरम्') और हरी (नीचे) पट्टियां थीं। ऊपरी पट्टी पर सूर्य और अर्धचंद्र बने थे। यह *मैडम भीकाजी कामा ध्वज* के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
3. होमरूल आंदोलन और एक नया प्रयास (1917):
डॉ. एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक के होमरूल आंदोलन के दौरान 1917 में एक नया ध्वज अपनाया गया। इसमें पांच लाल और चार हरी क्षैतिज पट्टियां थीं, ऊपरी बाएं कोने में यूनियन जैक था, दाईं ओर सप्तऋषि तारामंडल और एक किनारे पर अर्धचंद्र व तारा था। यह ब्रिटिश प्रभुत्व के प्रतीक यूनियन जैक के कारण व्यापक स्वीकृति नहीं पा सका।
4. गांधी जी का सुझाव और पिंगली वेंकय्या का योगदान (1921-1931):
1921 में महात्मा गांधी ने भारत के लिए एक ध्वज की आवश्यकता जताई। आंध्र प्रदेश के युवा पिंगली वेंकय्या ने इस चुनौती को स्वीकारा। उनका प्रारंभिक डिजाइन लाल (हिंदू) और हरे (मुस्लिम) रंग की दो पट्टियों वाला था।
गांधी जी के सुझाव पर अन्य समुदायों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बीच में एक सफेद पट्टी और देश की प्रगति के प्रतीक के रूप में चरखा जोड़ा गया। यह 1921 का ध्वज बना।
1931 में कराची कांग्रेस अधिवेशन में एक महत्वपूर्ण फैसला हुआ। एक झंडा समिति गठित की गई जिसमें पट्टियों का क्रम बदलकर केसरिया (ऊपर), सफेद (बीच में चरखा) और हरा (नीचे) कर दिया गया। यह स्वराज ध्वज आधिकारिक तौर पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का ध्वज घोषित किया गया। यही आज के तिरंगे का प्रत्यक्ष पूर्वज है।
5. स्वतंत्रता की पूर्व संध्या और अंतिम रूप (1947):
स्वतंत्रता निकट आते ही ध्वज के अंतिम स्वरूप पर विचार शुरू हुआ। जून 1947 में एक ध्वज समिति गठित की गई, जिसके अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद थे।
समिति ने मूल डिजाइन (केसरिया-सफेद-हरा और चरखा) को बरकरार रखने का फैसला किया, लेकिन चरखे के स्थान पर *अशोक चक्र* (सम्राट अशोक के सारनाथ स्तंभ से लिया गया धर्मचक्र) लगाने का प्रस्ताव रखा। यह चक्र कानून और धर्म के शाश्वत सिद्धांतों, गतिशीलता और प्रगति का प्रतीक है।
तथ्य: 22 जुलाई, 1947 को संविधान सभा ने इस डिजाइन को भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में औपचारिक रूप से अपनाया। यह स्वतंत्र भारत का ध्वज बना।
6. वर्तमान ध्वज और इसका गहरा अर्थ:
तथ्य (संवैधानिक): भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51A में यह नागरिकों का मौलिक कर्तव्य है कि वे संविधान का पालन करें, राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का आदर करें। 'फ्लैग कोड ऑफ इंडिया, 2002' ध्वज के प्रदर्शन और उपयोग को नियंत्रित करता है।
तथ्य (रंगों का अर्थ):
केसरिया (सबसे ऊपर): ताकत, साहस और निस्वार्थ बलिदान का प्रतीक।
सफेद (बीच में): शांति, सच्चाई और पवित्रता का प्रतीक।
हरा (सबसे नीचे): उर्वरता, वृद्धि, भूमि की पवित्रता और समृद्धि का प्रतीक।
तथ्य (अशोक चक्र): यह नीले रंग का 24 तीलियों वाला चक्र है, जो न्याय, नैतिकता और निरंतर प्रगति का प्रतीक है। यह "धर्मचक्रप्रवर्तन" (धर्म के पहिये को घुमाना) की अवधारणा का प्रतिनिधित्व करता है।
राष्ट्रभक्ति और तिरंगा:
तिरंगा हमारी एकता का सूत्र है। यह हमें याद दिलाता है कि विविधताओं से भरा हमारा देश एक अविभाज्य राष्ट्र है। यह उन लाखों वीरों के बलिदान का प्रतीक है, जिन्होंने इसकी आजादी के लिए अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया। जब तिरंगा लहराता है, तो हर भारतीय का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। यह हमारी संप्रभुता, हमारे लोकतंत्र और हमारे संविधान के मूल्यों का जीवंत प्रतिनिधित्व करता है।
तिरंगे की यात्रा 1906 के कलकत्ता ध्वज से लेकर 22 जुलाई 1947 को अपनाए गए वर्तमान गौरवशाली रूप तक, भारत के स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्र निर्माण का सार संक्षेप है। यह कोई साधारण कपड़ा नहीं, बल्कि हमारे इतिहास, हमारे संघर्ष, हमारी आशाओं और एक संपूर्ण राष्ट्र की आत्मा का प्रतीक है। इसका सम्मान करना, इसके प्रति निष्ठा रखना, प्रत्येक भारतीय का नैतिक दायित्व और अटूट राष्ट्रप्रेम की अभिव्यक्ति है। जय हिंद! जय भारत।
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