Happy Teachers Day 2025: गुरु की महिमा और आज के समय में उनके कर्तव्य

Happy Teachers Day 2025: गुरु वह है जो शिष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाता है।

Shyamali Tripathi
Published on: 5 Sept 2025 11:00 AM IST
Teachers Day 2025
X

Teacher's Day 2025 (Image Credit-Social Media)

Happy Teachers Day 2025: ​भारतीय संस्कृति में गुरु का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा माना गया है। "गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः" कहकर उनकी महिमा का गुणगान किया गया है, जिसका अर्थ है कि गुरु ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान हैं। गुरु का शाब्दिक अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला"। 'गु' का अर्थ है अंधकार और 'रु' का अर्थ है प्रकाश। गुरु वह है जो शिष्य को अज्ञान के अंधकार से निकालकर ज्ञान के प्रकाश में लाता है।

​गुरु का पारंपरिक स्वरूप और उनकी महिमा

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, का के लागूं पांय।

बलिहारी गुरु आपके गोविंद दियो बताय।।

​प्राचीन काल से ही गुरु-शिष्य परंपरा हमारे समाज का अभिन्न अंग रही है। पहले गुरुकुल होते थे, जहाँ शिष्य अपने गुरु के पास रहकर शिक्षा ग्रहण करते थे। इस दौरान वे केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला, नैतिक मूल्य, संस्कार और अनुशासन भी सीखते थे। गुरु न केवल शिक्षक थे, बल्कि एक मार्गदर्शक, दार्शनिक और संरक्षक भी थे। वे शिष्य की कमजोरियों को पहचानकर उन्हें दूर करते थे और उसकी शक्तियों को निखारते थे।

​स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "गुरु वह है जो अपने शिष्य को अपनी तरह बना सके।" यह कथन गुरु की महिमा को दर्शाता है। एक सच्चा गुरु अपने शिष्य को आत्मनिर्भर बनाता है और उसे सही-गलत का निर्णय लेने की क्षमता देता है।

​गुरु की महिमा


​गुरु का महत्व केवल आध्यात्मिक या शैक्षिक नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू में व्याप्त है।

​ज्ञान का स्रोत: गुरु ज्ञान का भंडार होते हैं। वे अपने अनुभव और ज्ञान के माध्यम से शिष्य के जीवन को नई दिशा देते हैं।

​सही मार्गदर्शन: जीवन के हर मोड़ पर सही निर्णय लेना एक चुनौती है। गुरु इस चुनौती को आसान बनाते हैं। वे शिष्य को सही रास्ता दिखाते हैं।

​व्यक्तित्व का निर्माण: गुरु सिर्फ़ जानकारी नहीं देते, बल्कि वे शिष्य के चरित्र, नैतिकता और मूल्यों का निर्माण करते हैं। वे शिष्य को एक बेहतर इंसान बनने में मदद करते हैं।

​आध्यात्मिक जागृति: सच्चे गुरु शिष्य को आत्मज्ञान की ओर प्रेरित करते हैं और उसे अपने भीतर की शक्तियों को पहचानने में मदद करते हैं।

​आज की परिस्थितियाँ: चुनौतियाँ और बदलाव

​आज का समय बहुत बदल गया है। इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में जानकारी हर जगह उपलब्ध है। लोग आसानी से किसी भी विषय पर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ऐसे में गुरु की भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

आज की कुछ प्रमुख चुनौतियाँ हैं:

​जानकारी का अंबार: इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी की अधिकता से सही और गलत की पहचान करना मुश्किल हो गया है।

​डिजिटल गुरु: यूट्यूब, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर कई लोग ख़ुद को गुरु कहते हैं, लेकिन उनमें से कई सिर्फ़ व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए काम करते हैं।

​ज्ञान का व्यापारीकरण: कई शिक्षा संस्थान और शिक्षक ज्ञान को एक व्यवसाय के रूप में देखते हैं, जिससे गुरु-शिष्य संबंध का आध्यात्मिक और भावनात्मक पहलू कम होता जा रहा है।

​आस्था की कमी: आज की पीढ़ी में गुरुओं के प्रति पुरानी श्रद्धा कम होती जा रही है।

आज की परिस्थितियों में एक सच्चे गुरु के कर्तव्य


​इन चुनौतियों के बीच, एक सच्चे गुरु की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। उनका कर्तव्य सिर्फ़ ज्ञान देना नहीं, बल्कि शिष्य को सही राह दिखाना, उसे नैतिकता सिखाना और उसे जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार करना है।

​सच्चाई और ईमानदारी: आज के समय में सबसे पहला कर्तव्य है सच्चाई और ईमानदारी। एक गुरु को अपने ज्ञान, अनुभव और जीवनशैली में सच्चा और ईमानदार होना चाहिए।

​नैतिकता का ज्ञान: आज की पीढ़ी को नैतिक मूल्यों की बहुत ज़रूरत है। एक सच्चे गुरु को केवल किताबी ज्ञान ही नहीं, बल्कि नैतिकता, मानवता और करुणा का ज्ञान भी देना चाहिए।

​मार्गदर्शन: इंटरनेट पर उपलब्ध जानकारी से भ्रमित होने वाले छात्रों को सही मार्गदर्शन की ज़रूरत है। गुरु का कर्तव्य है कि वह शिष्य को सही-गलत के बीच का अंतर समझाएँ और उसे सही रास्ता दिखाएँ।

​प्रौद्योगिकी का उपयोग: आज के गुरु को प्रौद्योगिकी को अपनाना चाहिए। वे ऑनलाइन माध्यमों का उपयोग करके अपने ज्ञान को अधिक से अधिक लोगों तक पहुँचा सकते हैं।

​व्यक्तिगत विकास: गुरु का कर्तव्य है कि वह शिष्य के व्यक्तित्व के विकास पर ध्यान दें। उन्हें केवल पाठ्यक्रम पूरा करने पर ही नहीं, बल्कि शिष्य को एक आत्मनिर्भर, रचनात्मक और जिम्मेदार नागरिक बनाने पर भी ध्यान देना चाहिए।

​उदाहरण बनें: एक सच्चा गुरु उपदेश देने की बजाय उदाहरण प्रस्तुत करता है। उसका जीवन ही उसके शिष्यों के लिए प्रेरणा का स्रोत होता है।

​आत्मनिर्भरता: आज के गुरु का कर्तव्य है कि वे अपने शिष्यों को आत्मनिर्भर बनाएँ। उन्हें ऐसा ज्ञान दें, जिससे वे जीवन की चुनौतियों का ख़ुद सामना कर सकें।

​व्यापारीकरण से बचें: गुरु को ज्ञान को एक व्यवसाय के रूप में नहीं देखना चाहिए। उनकी प्राथमिकता अपने शिष्यों का कल्याण होना चाहिए, न कि धन कमाना।

​गुरु की महिमा शाश्वत है। समय भले ही बदल गया हो, लेकिन एक सच्चे गुरु की ज़रूरत हमेशा रहेगी। आज के गुरु का कर्तव्य है कि वे अपने पारंपरिक मूल्यों को आधुनिक आवश्यकताओं के साथ जोड़ें। उन्हें सिर्फ़ ज्ञान का सागर नहीं, बल्कि मानवता का प्रतीक बनना चाहिए।

​आज के समय में, एक सच्चा गुरु वही है जो अपने शिष्य को डिजिटल दुनिया के शोर-शराबे में भी शांति और सही दिशा दे सके। वही है जो उसे सच्चा ज्ञान देकर एक अच्छा इंसान बना सके।

​इस प्रकार, गुरु केवल एक शिक्षक नहीं, बल्कि एक मार्गदर्शक, दार्शनिक और जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

एक वास्तविक शिक्षक के लिए एक कविता में मेरे उद्गार-

मैं शिक्षक हूँ

मैं समाज निर्माता, मार्ग प्रवर्तक हूँ

मैं शिक्षक हूँ....

मुझमें है पिता-सी दृढ़ता, माँ सी कोमलता,

भाव मित्रवत् राह सत्य की दिखलाता,

श्रेष्ठ सखा नैतिकता पथ दिग्दर्शक हूँ।

मैं शिक्षक हूँ।।

मैं नहीं विदूषक, व्यापारी, चारण, न ही मैं चाटुकार,

न पहन मुखौटा कर पाऊँ अभिनेता सा दोहरा व्यवहार,

मैं सन्मार्गी, निश्छल हूँ, सत्य समर्थक हूँ।

मैं शिक्षक हूँ।।

ना जाति-धर्म, ना रंग-रूप का भेद करूँ,

कोमल मन बच्चों में मानवता धर्म भरूँ,

मैं समता, नैतिकता का परिवर्धक हूँ।

मैं शिक्षक हूँ।।

मत आंको मेरा मूल्य अर्थ-संसाधन से,

मैं स्वयं हुआ सम्पन्न ग्यान-संवर्धन से,

माँ सरस्वती का गौरवशाली साधक हूँ।

मैं शिक्षक हूँ।।

1 / 9
Your Score0/ 9
Admin 2

Admin 2

Next Story

AI Assistant

Online

👋 Welcome!

I'm your AI assistant. Feel free to ask me anything!