Healthcare Doctors: चिकित्सीय क्षेत्र और डॉक्टरों तथा नर्सिंग स्टाफ के ईमानदार प्रयास

Healthcare Doctors : एक रोगी अपने डॉक्टर पर पूरा विश्वास करता है और उससे अपनी व्यक्तिगत स्थिति भी साझा करता है।

Anshu Sarda Anvi
Published on: 9 Sept 2025 4:05 PM IST
Healthcare in India
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Healthcare in India (Image Credit-Social Media)

Healthcare in India: एक अस्पताल, बहुत से मरीजों और उस से कहीं अधिक उनको संभालने वाले या उनके साथ आए हुए लोगों, अलग-अलग रोगों के विशेषज्ञ डॉक्टरों, नर्सिंग स्टाफ व प्रबंधन अमला, विभिन्न जांचों की मशीनें और सबसे बढ़कर एक भाव 'स्वास्थ्य ही जीवन है' से बनता है। एक आई सी यू के बाहर बैठे रोगी के परिजन अपने संबंधी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित होते हैं। कहीं निराशा, कहीं आशा, कहीं खुशी और कहीं अचानक जोर से रोने की आई आवाज यह बता देती है कि कुछ ऐसा घटित हो चुका है जो कि अच्छा नहीं है। जब तक सांस चल रही होती है तब तक रोगी के संबंधियों को यह आशा होती है कि उनका संबंधी ठीक होकर ही आएगा, लेकिन जहां सीधी रेखा आ जाए, सब कुछ शांत हो जाए तो यह एक अशांति का कारण बन जाता है। ऐसे में सबकी नज़रें उस ओर घूम जाती हैं , जहां से यह रोने की आवाज आ रही है। ऐसे में हर संबंधी का दिल अपने रोगी के कुशल मंगल की कामना की प्रार्थना करता है।

एक अस्पताल का सबसे महत्वपूर्ण अंग होता है एक डॉक्टर। एक डॉक्टर के पास जब मरीज जाता है तो वह इसी आशा के साथ जाता है कि भले ही भगवान को उसने नहीं देखा पर इस धरती पर अगर कोई भगवान है जो कि उसको व्याधि मुक्त कर सकता है तो वह एक डॉक्टर ही है। वह अपने डॉक्टर के ऊपर पूरा भरोसा रखता है, करता है। एक डॉक्टर और उसके नर्सिंग स्टाफ के व्यवहार पर ही किसी रोगी का स्वास्थ्य लाभ टिका होता है। एक रोगी अपने डॉक्टर पर पूरा विश्वास करता है और उससे अपनी व्यक्तिगत स्थिति भी साझा करता है। यह डॉक्टर का कर्तव्य है कि वह उसकी व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक न करें और उसका सम्मान बनाए रखें। लेकिन यह देखने में आता है कि कहीं -कहीं डॉक्टरों का एक प्रतिशत ऐसा भी होता है जिनके लिए रोगी एक प्रोडक्ट की मानिंद होते हैं, जिनसे वह जितना ज्यादा पैसा निकाल सकता है, निकालना चाहता है, एक दूध देने वाली गाय। क्या एक डाक्टर को अपने मरीजों के प्रति व्यवहार में संतुलित नहीं होना चाहिए? किसी भी डॉक्टर के अपने मरीज के प्रति अनेक कर्तव्य होते हैं जिनको वे स्वयं मरीजों से बात करके, अपने नर्सिंग स्टाफ, सहायक रेजिडेंट डॉक्टरों आदि के साथ एक टीम के जैसे काम करके पूरा करते हैं। हर डॉक्टर अपने क्षेत्र का विशेषज्ञ होता है, इस नाते उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह अपने मरीज को वे सभी साधन उपलब्ध कराए जो कि उसके रोग के सही निदान करने व उसके उपचार में सहायक हो सके। इस संदर्भ में उससे यही अपेक्षा की जाती है कि वह मरीज के स्वास्थ्य की प्रगति पर बराबर नजर बनाए रखें और उसकी बेहतरी के लिए उचित कदम उठाए। उनके पास आने वाला हर मरीज या उसके परिचायक यह आवश्यक नहीं कि मेडिकल शब्दावली को समझ सकें। ऐसे में बजाय उनके साथ जानकारियां छुपाने के या इस बात का गलत फायदा उठाकर उनसे अनेकों प्रकार की टेस्टिंग करवाते जाने के कि वह खुद परेशान हो उठे कि अब बस करो हम अपने रोगी की परेशानी से ज्यादा डाक्टर द्वारा परेशान के जाने से अधिक परेशान हैं।

किसी भी डॉक्टर की ईमानदार कोशिशें और नर्सिंग स्टाफ का ध्यानपूर्वक, सेवा भाव से किया गया अपना काम किसी भी मरीज के लिए जादुई रामबाण का काम करता है। जहां धन के लालच की प्रधानता होती है, वहां मरीज का स्वास्थ्य नीचे पायदान पर खिसक जाता है। यह एक जानी हुई बात है कि एक डॉक्टर बनना बिल्कुल भी आसान नहीं होता। मेडिकल में प्रवेश के लिए पहले प्रवेश परीक्षा की जरूरत है, फिर एक लंबी, कठिन पढ़ाई का दौर। उसके बाद उबाऊ रेजिडेंट इंटर्नशिप। उसके बाद भी किसी एक रोग के विशेषज्ञ बनने की फिर से पढ़ाई। एक लंबी प्रक्रिया की भट्टी में तपकर निकलता है एक डॉक्टर। एक परिवार के लिए गर्व और गौरव का क्षण होता है जब उनके परिवार का एक मेडिकल छात्र अपनी मेडिकल की पढ़ाई पूरी करके एक अत्यंत प्रतिष्ठित डॉक्टर की डिग्री अपने नाम के आगे लगाकर, उस डिग्री की गरिमा को बनाए रखने की शपथ लेता है। वह शपथ लेता है कि वह मानवता की सेवा के लिए अपना जीवन समर्पित करेगा और उसे शपथ लेनी होती हैं कि वह धर्म, राष्ट्रीयता, जाति, दलगत राजनीति या सामाजिक प्रतिष्ठा के विचारों को अपने कर्तव्यों के बीच हस्तक्षेप नहीं करने देगा और अपनी सामर्थ्य शक्ति के अनुसार हर संभव तरीके से अपने चिकित्सीय पेशे के सम्मान और उत्कृष्ट परंपरा को बनाए रखेगा और साथ ही में भारतीय चिकित्सा परिषद (व्यावसायिक आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनिमय 2002 में उल्लेखित चिकित्सा नैतिकता संहिता का पालन करने की भी शपथ लेता है।

एक नर्सिंग स्टाफ के मुख्य कर्तव्यों में रोगियों को उच्च-गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करना, उनकी स्थिति की निगरानी करना, दवाओं और उपचारों का प्रबंधन करना, डॉक्टर और अन्य चिकित्सा पेशेवरों के साथ सहयोग करना, रोगियों की सहानुभूतिपूर्वक सहायता करना तथा सभी चिकित्सीय रिकॉर्ड बनाए रखना शामिल हैं। रोगियों को व्यक्तिगत देखभाल प्रदान करना, जिसमें नहलाना, साफ रखना भी शामिल है। डॉक्टर के आदेशानुसार दवाइयों और अन्य उपचारों को सही समय पर देना और आपातकालीन स्थितियों में आवश्यक तैयारी और मदद करना भी उनके कर्तव्यों में आता है। उन्हें रोगियों की स्थिति, परीक्षणों के परिणाम और देखभाल संबंधी अन्य जानकारी को टीम के अन्य सदस्यों के साथ साझा करना चाहिए। रोगियों को मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक सहारा देना, खासकर गंभीर और जीवन के अंतिम पड़ाव वाले रोगियों के लिए उनका कर्तव्य होता है। अगर कोई नर्सिंग स्टाफ इन सब से इतर रोगी या रोगी के परिजनों को यह जवाब देता है कि वह यह काम नहीं कर सकता या नहीं कर सकती और वे यह खुद कर लें तो यह उनके कर्तव्यों का उल्लंघन माना जाना चाहिए। लेकिन यह देखने में आता है कि सरकारी अस्पतालों के साथ-साथ निजी अस्पतालों में भी नर्सिंग स्टाफ कई जगह बड़ी अभद्रता के साथ पेश आते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि बतौर एक नर्सिंग स्टाफ उनकी क्या जिम्मेदारियां होनी चाहिए। या यूं कहें कि वे रोगी और उनके तीमारदारों के लिए यह सोचते हैं कि वे उनके साथ कैसा भी व्यवहार कर सकते हैं क्योंकि यह उनके परिजनों की मजबूरी है कि उन्हें वहां रहना है।

किसी भी निजी अस्पताल को चलाना कोई हंसी-खेल का काम नहीं है। पिछले 10 दशकों में निजी स्वास्थ्य सेवाओं का आकार बड़ा है और निजी स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च भी बढ़ गया है। आंकड़े बताते हैं कि पूरे भारत देश में 43,486 निजी अस्पताल हैं और 1.18 करोड़ बेड और 59,264 आईसीयू एवं 29, 631 वेंटीलेटर हैं । इस तरह से निजी स्वास्थ्य सेवाएं देश के पूरे स्वास्थ्य इंफ्रास्ट्रक्चर का 62% कवर करते हैं। जबकि सार्वजनिक क्षेत्र में 25,778 अस्पताल हैं जिनमें 7,13,986 बेड हैं। जबकि आईसीयू की संख्या 35,700 और वेंटीलेटर की संख्या 17,850 है। कोई भी व्यवसाय तभी चलता है जब वह अपने आप को खड़ा कर पाने वाली स्थिति के लायक काम करता है और यही वजह है कि एक निजी अस्पताल को चलाने के लिए उन लोगों को इतना धनोपार्जन करना आवश्यक है कि वे उसे सुविधाजनक तरीके से चला सकें। सन् 2018 में 'आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना' (पीएम-जेएवाई) प्रारम्भ की गई थी, तो इसे दुनिया की सबसे बड़ी सरकारी वित्त पोषित स्वास्थ्य बीमा योजना बताया गया था, जिसमें 50 करोड़ से ज़्यादा वंचित भारतीयों को वार्षिक 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य बीमा देने का वादा किया गया , जिसका उद्देश्य 12 करोड़ से अधिक गरीब और कमजोर परिवारों (लगभग 55 करोड़ लाभार्थी) को माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती के लिए प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये का स्वास्थ्य कवर प्रदान करना है, जो देश के निचले 40% हिस्से का गठन करते हैं। जब किसी भी निजी अस्पताल में एक आयुष्मान योजना प्राप्त रोगी जाता है तब उस निजी अस्पताल के लिए जो कि 'आयुष्मान योजना' के अन्तर्गत आता है, को उस रोगी से अपने खर्चे निकलवाने के लिए भी उपक्रम करना पड़ता है। 'आयुष्मान योजना' जहां रोगियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है वहीं अस्पतालों को मरीज तो उपलब्ध कराती है पर उसके दैनिक व्यय पर असर डालती है।

सच तो यही है कि आज जब हमारी पीढ़ी चिकित्सा के क्षेत्र में जा रही है और एक डॉक्टर या विशेषज्ञ की डिग्री हासिल करती है तब हम बड़े ही खुश होते हैं। लेकिन जैसे कि एक गंदी मछली सारे तालाब को गंदा करती है, उसी तरह से कुछ डॉक्टरों के लालच और खराब मानसिकता के कारण पूरे चिकित्सा क्षेत्र को सफर करना पड़ता है। इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि कोई भी डॉक्टर जिसने अपनी डिग्री प्राप्त करते हुए शपथ ली है वह अपने पेशे के प्रति ईमानदार होकर काम करेगा। ऐसे बहुत से उदाहरण हमारे सामने हैं जहां डॉक्टर अपने मरीज को मौत के मुंह से वापिस लाया है। बहुत से डॉक्टरों ने निःस्वार्थ भाव से मरीजों के स्वास्थ्य के लिए काम किया है, कर रहें हैं। डॉक्टर इस धरती पर भगवान का ही एक रूप माने जाते हैं इसीलिए उनसे आरोग्य के साथ-साथ नैतिकता और ईमानदार प्रयासों की भी उम्मीद की जाती है।

( लेखिका प्रख्यात स्तंभकार हैं।)

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