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Student Union: छात्र संघ जरूरी क्यों, आरंभ प्रचंड, सार्थक और गंभीर हस्तक्षेप
Student Union: गोरखपुर की जुटान का निष्कर्ष क्या होगा वह अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन इसमें कई भाव और तथ्य उभर कर अवश्य आएंगे।
Why is Student Union Necessary
Student Union: रविवार को गोरखपुर में छात्र नेताओं की बड़ी जुटान हो रही है। इसमें वे सभी जुट रहे हैं जिन्होंने छात्र राजनीति से सफर शुरू कर विधायिका में सार्थक और गंभीर हस्तक्षेप किया है। चर्चा गंभीर होनी है। यह आरंभ , मुझे तो प्रचंड दिख रहा है। चर्चा का विषय है परिसरों में छात्रसंघों की बहाली। चर्चा इसलिए क्योंकि वर्षों से परिसर केवल कार्यपालिका, न्याय पालिका और कुछ अन्य पाल्यों को तो पैदा कर रहे हैं लेकिन परिसरों से विधायिका के लिए सक्षम नेतृत्व का उत्पादन ठप है।
ऐसा इसलिए क्योंकि व्यवस्था ने यह कहते हुए इसे रोक दिया कि छात्र नेता केवल सामाजिक अराजकता के कारण होते हैं। पढ़ाई बाधित होती है। धरना, प्रदर्शन , आंदोलन कर के समय खराब करते हैं और किसी न किसी राजनीतिक स्तंभ के लिए काम करते हैं। यह विडंबना ही है कि अपराध, व्यापार, न्यायिक और नौकरशाही की विधाओं के लोगों के हाथ विधायिका सौंपी जा रही लेकिन छात्र और युवा ऊर्जा के रस्ते बंद कर दिए गए हैं।
गोरखपुर की जुटान का निष्कर्ष क्या होगा वह अभी से नहीं कहा जा सकता लेकिन इसमें कई भाव और तथ्य उभर कर अवश्य आएंगे। मसलन व्यवस्था के दो महत्वपूर्ण अंग नौकरशाही और न्यायपालिका के तत्व तो इन्हीं परिसरो से निकल रहे हैं। आखिर विधायिका के तत्वों को यहां से निकलने पर रोक क्यों? क्या विधायिका के लिए केवल वे ही उपयुक्त हैं जो समाज के बाहरी हिस्सों से आ रहे हैं? क्या छात्र संघों को रोक देने के बाद पूरी राजनीति सात्विक हो गई? क्या अब समाज अपराध से मुक्त है? क्या अब कार्य पालिका और न्याय पालिका पूरी तरह से पवित्र हो चुकी हैं? क्या अब सभी परिसर केवल नैतिक और ईमानदार चरित्र गढ़ रहे हैं? क्या सभी कुलपति निहायत नैतिक और ईमानदार हैं? क्या अब सभी परिसर शुचिता और नैतिकता से परिपूर्ण हैं? क्या सभी परिसरों में छात्रों की कोई समस्या शेष नहीं रह गई? क्या अब परिसर केवल राम और कृष्ण हो उत्पादित कर रहे?
अनगिनत प्रश्न हैं। मुझे याद है , एक समय था जब संसद और विधानसभाओं में परिसरों के निकले नेतृत्व के कारण एक अलग प्रकार को माहौल और चर्चा हुआ करती थी। सैकड़ों नाम लिख सकता हूँ लेकिन यहां किसी नाम से कोई बात कहना उचित नहीं। आज यह विषय इसलिए मन में आ गया क्योंकि छात्र राजनीति को लेकर ऐसी पहल गोरखपुर जैसी जगह से हो रही है। उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी अपना नगर है। स्वाभाविक है कि इस बैठक और इसके प्रस्ताव मुख्यमंत्री जी तक अवश्य पहुंचेंगे। इसलिए इस बैठक को एक उम्मीदपूर्ण पहल के रूप में देखा जाना उचित होगा।
छात्र राजनीति के अच्छे बुरे सभी परिणाम हो सकते हैं लेकिन कुछ कमी के कारण नए सक्षम नेतृत्व से व्यवस्था और समाज को वंचित करना उचित नहीं। कोई माने या न माने, परिसरों में छात्र राजनीति की समाप्ति के बाद से एक अलग प्रकार की निरंकुशता का अनुभव सभी कर रहे हैं। कोई कुछ बोलता इसलिए नहीं क्योंकि सभी के अपने अपने स्वार्थ हैं। समाज ऐसा है कि उसे केवल अपने बच्चों को पढ़ाने और डिग्री दिलाने भर की इच्छा है। यह अलग बात है कि प्रत्येक परिवार की इज्जत और प्रतिष्ठा इन परिसरों में ही होती है, सभी के बच्चों का सबसे महत्वपूर्ण समय यहीं बीतता है। फिर भी परिसर की हर बीमारी को समाज नजरअंदाज कर देता है। परिसर की बीमारी पर छात्रसंघ अंकुश रखते थे। हर मनमानी और हर अनदेखी पर छात्र नेता मुखर होते थे। छात्रों का शोषण रुकता था।
अब यह वास्तव में गंभीर चिंतन का विषय है। छात्र राजनीति को प्रशिक्षण से गुजारने के लिए परिसरों को मुक्त होना ही चाहिए। यह देख कर दुख होता है कि लगभग सभी विश्वविद्यालयों के छात्र संघ भवन खंडहर की तरह वीरान दिखते हैं। उन भवनों का बेमतलब प्रयोग प्रशासन अपने मन से कर रहा है। छात्र राजनीति के लिए जगह नहीं रखी गई है। परिसर के बाहर से विधायिका में आने वालों को भी मूल्यांकन किया जाना चाहिए। अब देश यदि बदल रहा है तो परिसरों को भी बदलने की प्रक्रिया होनी चाहिए। इस गोरखपुर समागम से व्यवस्था का क्या इस विषय पर जरूर जाएगा, ऐसा भरोसा है।
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