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World Senior Citizens Day: जो बुर्जुगों की दुआ पाता है, है फकीरी में भी कलन्दर वो
World Senior Citizens Day: 21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। इसको मनाने की आवश्यकता क्यों पड़ी यह एक विचारणीय विषय है।
World Senior Citizens Day (Image Credit-Social Media)
धूल माथे पे लगा लूं जो चरण छू उनके
मुझपे दुनिया करें निछावर वो
जो बुर्जुगों की दुआ पाता है
है फकीरी में भी कलन्दर वो।।
एक सर्वे के अनुसार फिनलैंड के बुजुर्ग सर्वाधिक खुश माने जाते हैं, दूसरा स्थान डेनमार्क, तीसरा नॉर्वे का आता है। हमारा भारत देश 147 देशों में से 118 वें स्थान पर है बुजुर्गों का खुशहाली में। सन् 2011 में की गई जनगणना के अनुसार भारत में लगभग 103.8 मिलियन वरिष्ठ नागरिक हैं। क्या यह हमारे लिए चिंता का विषय नहीं होना चाहिए की वरिष्ठ नागरिकों की खुशहाली में हम इतने पिछड़े हुए क्यों हैं? कड़वी लगेगी मगर सत्य बात यह ही है कि हमारे देश में बढ़ता हुआ वृद्धाश्रम का चलन आज के युवाओं की जिम्मेदारियों के प्रति उदासीनता का कारण है। हम वह पीढ़ी हो चुके हैं जो कभी इन्हीं बुजुर्गों की जिम्मेदारी थे। किंतु आज उनकी जिम्मेदारी उठाने से हम कतरा रहे हैं। हम इन्हीं बुजुर्गों की संताने हैं जिन्होंने अपना खून पसीना एक करके, अपने सपनों की बलि दे कर हमारे सुनहरे भविष्य की मजबूत नींव रखी। लेकिन हम उनके प्रति इतने कृतघ्न हो चुके हैं कि उनके बुढ़ापे की लाठी बनने के बजाय, भावनात्मक रूप से उनके संबल बनने के बजाय उनके मानसिक और शारीरिक कष्टों का कारण बन जाते हैं।
एक उम्र तक जीवन भर जिम्मेदारियों का बोझ उठाते हुए, अक्सर अपनी उम्र को नकारते हुए, अपने मस्तिष्क और मांसपेशियों का भरपूर या यूं कहें अत्यधिक उपयोग करने के बाद एक समय आता है जब ये कंधे झुकने लगते हैं, मस्तिष्क और मांसपेशियां थकने लगती हैं। यही समय उनके रिटायरमेंट का भी होता है, जो उनके हृदय को व्यथित कर रहा होता है। इस समय उन्हें कई सारी चिंताएं घेरे होती हैं जैसे आर्थिक समस्याएं, खालीपन का डर, अपनी और अपने साथी की स्वास्थ्य समस्याएं इत्यादि। ये वो समय होता है जब उनकी अपनी संतानें रोजगार के सिलसिले में विदेश या कहीं महानगर जा चुकी होती हैं या साथ भी रहते हैं तो भी अनजाने ही सही इन नए नए रिटायर हुए माता पिता की तरफ से उदासीन हो जाते हैं। कई संतानें पैसे भेज कर अपने कर्तव्यों की इति श्री कर लेते हैं। हमें लगता है कि उनकी आर्थिक जरूरतों को पूरा करना ही काफी है । लेकिन इस समय इन्हें सबसे ज्यादा आवश्यकता होती है - प्यार, अपनेपन एवं परवाह की और इसी का अभाव उन्हें व्यथित करने लगता है। वे अकेले एवं असहाय महसूस करने लगते हैं।
हमारे देश की सरकारों ने उनकी समस्याओं को ध्यान में रखते हुए कई योजनाएं शुरू की है इनमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना (IGNOAPS) वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (SCSS), राष्ट्रीय वयोश्री योजना (RVY) माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों का भरण पोषण एवं कल्याण अधिनियम 2007, आयुष्मान भारत योजना इत्यादि शामिल हैं जो वरिष्ठ नागरिकों के अधिकारों एवं कल्याण में सहभागिता सुनिश्चित करते हैं।
सरकारों के सहयोग ने निस्संदेह उनकी चिंताएं कुछ कम तो की हैं लेकिन क्या ये सचमुच काफी हैं?
वास्तव में उन्हें जरूरत है प्यार की, सद्भाव की, सम्मान की और देखभाल की। आवश्यकता है उन्हें सुनने की, उनके साथ समय बिताने की, उन्हें यह जताने की कि हमारे लिए उनका होना कितना महत्वपूर्ण है। हमें सम्मान करना होगा उनकी अपनी सोच का, उनकी रुचियों का, उनकी इच्छाओं का। जो शौक व्यस्तताओं के कारण उनसे दूर हो गए थे, उन्हें यदि फिर से करने का मौका मिले तो ये हमारे बुजुर्गों में नए प्राण फूंकने का काम करेंगे। उन्हें महसूस करना होगा कि वे कोई बेजान फर्नीचर नहीं हैं जो स्थिर हो जाएं, वे चाहें तो अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी कर सकते हैं। हमें समझना होगा कि उनके जीवन के विभिन्न अनुभव हमारा पथ प्रदर्शन कर सकते हैं, हम उनसे सीख कर, उनके सानिध्य से अपने बच्चों को बेहतर संस्कार दे सकते हैं, जिससे कि हमारी आनेवाली पीढ़ी अच्छे इंसानों में शुमार हो। समय है कि हम ये समझ लें कि हमारे बुज़ुर्ग यदि खुश रहेंगे तो उसके कारण हमारा अपना जीवन भी खुशहाल होगा।
मुनव्वर राणा ने मां के लिए कहा है -
‘ये ऐसा कर्ज है जो मैं अदा कर ही नहीं सकता
मैं जब तक घर न लौट हूं मेरी मां सजदे में रहती है।’
इसी प्रकार अज्ञात ने पिता के लिए कहा है -
‘उनके होने से बख़्त होते हैं
बाप घर के दरख़्त होते हैं।
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