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Gairsain Travel Guide: उत्तराखंड का खूबसूरत पहाड़ी कस्बा गैरसैंण, घूमने की पूरी गाइड
Uttarakhand Gairsain Travel Guide: इस लेख हम जानेंगे कि गैरसैंण क्यों इतना महत्वपूर्ण है और भविष्य में इसकी क्य
Uttarakhand Famous Gairsain: भारत का हर राज्य अपनी अलग पहचान, संस्कृति और भौगोलिक खूबसूरती के लिए मशहूर है। उत्तराखंड जिसे देवभूमि कहा जाता है अपने ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों, हरे-भरे जंगलों, पवित्र तीर्थस्थलों और प्राकृतिक सौंदर्य के लिए जाना जाता है। इसी उत्तराखंड में बसा है गैरसैंण - एक छोटा लेकिन बेहद खास कस्बा। गैरसैंण सिर्फ एक जगह नहीं बल्कि उत्तराखंड की राजनीतिक और सांस्कृतिक पहचान का अहम हिस्सा है।
यहाँ का नाम अक्सर इसलिए सुर्खियों में रहता है क्योंकि इसे राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है और लोग इसे स्थायी राजधानी बनाने की मांग भी कर रहे हैं। गैरसैंण का इतिहास, इसकी भौगोलिक स्थिति, यहाँ की संस्कृति और राजनीति सब मिलकर इसे खास बनाते हैं।
गैरसैंण का परिचय
गैरसैंण उत्तराखंड(Uttarakhand) के चमोली जिले में बसा एक शांत और खूबसूरत पहाड़ी कस्बा है। यह जगह गढ़वाल और कुमाऊं मंडलों के लगभग बीचों-बीच स्थित है, इसलिए इसे राज्य का भौगोलिक और सांस्कृतिक केंद्र माना जाता है। समुद्र तल से इसकी ऊँचाई लगभग 1,650 मीटर (करीब 5,400 फीट) है जिससे यहाँ का मौसम सालभर सुहावना रहता है। गैरसैंण के पास ही भराड़ीसैंण स्थित है जिसे उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया गया है। इसके नाम का अर्थ भी दिलचस्प है । 'गैर' का मतलब है गहरा मैदान और 'सैंण' का मतलब है उस मैदान में बसा गांव या बस्ती। यही वजह है कि गैरसैंण न सिर्फ भौगोलिक दृष्टि से खास है बल्कि सांस्कृतिक रूप से भी गढ़वाल और कुमाऊं को जोड़ने वाला पुल माना जाता है।
गैरसैंण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तराखंड 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर बना और शुरुआत में देहरादून को अस्थायी राजधानी घोषित किया गया। लेकिन पहाड़ों में रहने वाले लोगों और आंदोलनकारियों का हमेशा मानना था कि राजधानी पहाड़ों में ही होनी चाहिए, ताकि प्रशासन सीधे पहाड़ी इलाकों तक पहुँचे और वहाँ विकास की गति तेज हो। इसी वजह से गैरसैंण को राजधानी बनाने की मांग उठी क्योंकि यह गढ़वाल और कुमाऊं के बीच में है और दोनों क्षेत्रों के लोगों के लिए समान रूप से सुविधाजनक है। इस मांग को आगे बढ़ाने में इंद्रमणि बडोनी जैसे बड़े नेताओं ने अहम भूमिका निभाई। 1960 के दशक से चल रही यह मांग 1990 के दशक में तेज हो गई और कई बार लोगों ने प्रदर्शन, अनशन और रैलियाँ कीं। आखिरकार 2020 में गैरसैंण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित कर दिया गया, हालांकि मुख्य प्रशासन अब भी देहरादून में ही है। गैरसैंण आज भी उत्तराखंड राज्य आंदोलन की भावना और पहाड़ के विकास के सपने का प्रतीक माना जाता है।
भूगोल और जलवायु
गैरसैंण का मौसम पूरे साल सुहावना रहता है। गर्मियों में यहाँ का तापमान लगभग 20 से 25 डिग्री सेल्सियस रहता है जिससे यह जगह घूमने और रहने के लिए बेहद आरामदायक बनती है। सर्दियों में यहाँ ठंड बढ़ जाती है और कई बार बर्फबारी भी होती है, जो इसे और भी खूबसूरत बना देती है। यह कस्बा चारों तरफ से हरे-भरे जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ है। यहाँ चीड़, देवदार और बुरांश जैसे पेड़-पौधे पाए जाते हैं जो इसकी प्राकृतिक सुंदरता को खास बनाते हैं। गैरसैंण के पास भराड़ीसैंण में विधानसभा परिसर है जहाँ गर्मियों में विधानसभा सत्र आयोजित किए जाते हैं। यह जगह न सिर्फ प्राकृतिक रूप से सुंदर है बल्कि राजनीतिक रूप से भी बहुत महत्वपूर्ण है।
गैरसैंण का राजनीतिक महत्व
गैरसैंण को 2014 में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित किया था और तब से यहाँ राज्य विधानसभा का बजट सत्र आयोजित होने लगा। बाद में 2020 में मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को औपचारिक रूप से ग्रीष्मकालीन राजधानी का दर्जा दिया। आज भी इसे स्थायी राजधानी बनाने की मांग जारी है। लोगों का कहना है कि राजधानी देहरादून में होने से पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं का सही समाधान नहीं हो पाता और विकास असंतुलित रह जाता है। पहाड़ों से पलायन लगातार बढ़ रहा है क्योंकि लोग रोज़गार और बेहतर सुविधाओं के लिए मैदानों की ओर जा रहे हैं। राजधानी को पहाड़ में करने से विकास संतुलित होगा और पर्यटन, शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा मिलेगा। हालांकि हाल के वर्षों में कुछ बजट सत्र देहरादून में भी आयोजित किए गए हैं। जैसे 2025 का बजट सत्र जो गैरसैंण विधानसभा परिसर के निर्माण संबंधी कारणों से देहरादून में हुआ। इसके बावजूद गैरसैंण के ग्रीष्मकालीन राजधानी के दर्जे और स्थायी राजधानी की मांग को जनता और कई राजनीतिक नेताओं का पूरा समर्थन मिलता रहा है।
सामाजिक और आर्थिक पहलू
गैरसैंण को राजधानी बनाने से यहाँ रोजगार के कई नए अवसर पैदा होंगे। स्थानीय लोगों को छोटे व्यवसाय शुरू करने और होटल, दुकानें, सड़कें और बाजार जैसी सुविधाएं बढ़ाने का मौका मिलेगा। इससे शिक्षा और अन्य सेवाओं का विकास भी होगा। राजधानी पहाड़ में होने से पलायन रुकने में मदद मिलेगी क्योंकि लोग अपने ही गांवों में रहकर काम कर पाएंगे और बेहतर जीवन जी सकेंगे। यह न केवल आर्थिक विकास को संतुलित करेगा बल्कि समाज में स्थिरता भी लाएगा। राज्य सरकार ने गैरसैंण और आसपास के क्षेत्र के विकास के लिए 350 करोड़ रुपये का बजट रखा है। जिसमें पानी की आपूर्ति, सड़क निर्माण, सचिवालय और विधानसभा भवन बनाने जैसे बड़े काम शामिल हैं।
पर्यटन में गैरसैंण का महत्व
गैरसैंण के आसपास कई खूबसूरत और धार्मिक स्थल हैं जो पर्यटकों को अपनी ओर खींचते हैं। यहाँ ढूंढा देवी मंदिर, पांडवखोली, गैरसैंण घाटी और बिनसर महादेव मंदिर जैसे प्रमुख स्थान हैं जहाँ से हिमालय की अद्भुत सुंदरता और स्थानीय संस्कृति का अनुभव किया जा सकता है। वसंत ऋतु में आसपास के जंगल बुरांश के लाल फूलों से सज जाते हैं, जिससे पूरा इलाका मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है। यदि यहाँ पर्यटन को बढ़ावा दिया जाए तो यह न केवल राज्य की अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा बल्कि स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी देगा। इससे पूरे क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक विकास को गति मिलेगी।
गैरसैंण के पास घूमने लायक प्रमुख पर्यटन स्थल
ढूंढा देवी मंदिर - यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 2,400 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और यहाँ से हिमालय की चोटियों का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है।
पांडवखोली - यह स्थान पौराणिक कथाओं के अनुसार पांडवों के अज्ञातवास से जुड़ा हुआ माना जाता है और ट्रेकिंग के लिए एक आदर्श स्थल है। इसे पर्यटक खूब पसंद करते हैं।
बिनसर महादेव मंदिर - यह प्राचीन शिव मंदिर घने जंगलों के बीच स्थित है और अपनी नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है।
सानीउडियार और देवपानी - ये जगहें प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जानी जाती हैं, जहां पर्यटक पिकनिक और फोटोग्राफी का आनंद ले सकते हैं।
गैरसैंण घाटी - यह घाटी हरे-भरे खेतों और पहाड़ी जीवन की झलक को दिखाती है और पर्यटकों को आकर्षित करती है।
चुनौतियाँ
गैरसैंण को राजधानी बनाने में कई चुनौतियाँ भी हैं। यह इलाका पहाड़ी और भूकंपीय दृष्टि से संवेदनशील है जिससे बड़े पैमाने पर निर्माण कार्य करना कठिन हो जाता है। यहाँ की ज्यादातर जमीन जंगलों और संवेदनशील पारिस्थितिकी क्षेत्र में आती है। इसलिए नई इमारतों और सड़कों के लिए जमीन उपलब्ध कराना आसान नहीं है। इसके अलावा स्वास्थ्य सुविधाएं, उच्च शिक्षा संस्थान और बेहतर परिवहन अभी पूरी तरह विकसित नहीं हैं। मिनी सचिवालय और अन्य सरकारी ढांचे भी शुरुआती स्तर पर हैं जिससे प्रशासनिक कामकाज में दिक्कतें आती हैं। नई राजधानी को पूरी तरह विकसित करने के लिए राज्य को पानी, सड़क, आवास और सरकारी कार्यालयों के लिए बहुत बड़ा खर्च करना पड़ेगा, जो राज्य की आर्थिक स्थिति पर अतिरिक्त बोझ डाल सकता है।
कैसे पहुंचे गैरसैंण
सड़क मार्ग से दूरी - देहरादून से गैरसैंण की दूरी लगभग 260 किलोमीटर है। यात्रा का समय 8-9 घंटे तक भी लग सकता है क्योंकि रास्ता पहाड़ी है। ऋषिकेश से दूरी लगभग 220 किलोमीटर है यात्रा में करीब 7-8 घंटे लग सकते हैं। नैनीताल से दूरी लगभग 142 किलोमीटर है,यात्रा का समय लगभग 4.5 से 5 घंटे होता है। उत्तराखंड परिवहन निगम की बसें ऋषिकेश, देहरादून, कोटद्वार, हल्द्वानी आदि स्थानों से गैरसैंण के लिए नियमित चलती हैं। साथ ही टैक्सी और निजी वाहन से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
रेल मार्ग से निकटतम स्टेशन - रामनगर रेलवे स्टेशन (लगभग 150 किमी), रानीखेत रेलवे स्टेशन (लगभग 85 किमी), कोटद्वार रेलवे स्टेशन (लगभग 245-250 किमी) इन स्टेशनों से टैक्सी या बस द्वारा गैरसैंण पहुंचा जा सकता है।
वायु मार्ग से निकटतम एयरपोर्ट - जॉली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (लगभग 260 किमी) , पंतनगर एयरपोर्ट (लगभग 200 किमी) हवाई अड्डों से टैक्सी और बस सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
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