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Jagannatha Puri Mandir Pratha: क्या आप जानते हैं गहना बीजे की अनोखी परंपरा? जब पुरी की रानी बनती हैं भगवान की विनम्र सेविका

Jagannatha Puri Mandir Ki Anokhi Pratha: 'गहना बीजे' परंपरा ओड़िशा की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा में दशकों से मौखिक और सांस्कृतिक परंपरा के रूप में चली आ रही है।

Shivani Jawanjal
Published on: 17 July 2025 9:18 AM IST
Jagannatha Puri Mandir Pratha: क्या आप जानते हैं गहना बीजे की अनोखी परंपरा? जब पुरी की रानी बनती हैं भगवान की विनम्र सेविका
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Jagannatha Puri Mandir Ki Anokhi Pratha: भारत की आध्यात्मिक और सांस्कृतिक परंपराएं इतनी समृद्ध और अनूठी हैं कि वे न केवल धर्म के उच्च आदर्शों को दर्शाती हैं बल्कि समाज में समभाव, सेवा और भक्ति का अद्वितीय संदेश भी देती हैं। ओडिशा(Oddisa) स्थित जगन्नाथ पुरी(Shree Jagannatha Temple Puri) का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है और इस मंदिर से जुड़ी कई रहस्यमयी परंपराएं आज भी लोगों को हैरान करती हैं। ऐसी ही एक परंपरा है, गहना बीजे (Gahana Bije)। यह वह अवसर होता है जब पुरी की गजपति महारानी यानी रानी स्वयं भगवान जगन्नाथ की सेवा करती हैं। यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि आध्यात्मिक समानता और विनम्रता का सजीव उदाहरण भी है।

आइये जानते है इस परंपरा का इतिहास!

गहना बीजे क्या है?

गहना बीजे एक पुरातन परंपरा है जो पुरी के गजपति राजपरिवार(Gajapati Royal Family) से जुड़ी हुई है। यह पुरी के गजपति राजपरिवार से जुड़ी एक अत्यंत दुर्लभ और गोपनीय धार्मिक परंपरा है, जिसमें गजपति महारानी हर नौ वर्षों में भगवान जगन्नाथ की सेवा एक सामान्य सेविका के रूप में करती हैं। इस विशेष अवसर पर वे राजसी वस्त्र, आभूषण और पहचान छोड़कर मंदिर में प्रवेश करती हैं और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान को वस्त्र अर्पित करने, झाड़ू लगाने और परिसर की सफाई जैसे कार्यों में भाग लेती हैं। यह सेवा पूरी तरह गोपनीय होती है और इसकी जानकारी आम लोगों को बाद में ही मिलती है। यह परंपरा न केवल गजपति राजपरिवार की गहरी धार्मिक आस्था को दर्शाती है बल्कि जगन्नाथ संस्कृति की सेवा भावना और विनम्रता के मूल सिद्धांतों को भी उजागर करती है।

गहना बीजे का शाब्दिक अर्थ और महत्व

पुरी के गजपति राजवंश से जुड़ी एक अत्यंत विशिष्ट, रहस्यमयी और भावनात्मक धार्मिक परंपरा है, जिसे ‘गहना बीजे’ कहा जाता है। इस शब्द का गूढ़ अर्थ बहुत गहराई लिए हुए है जहाँ ‘गहना’ का अर्थ होता है आभूषण या वैभव, वहीं ‘बीजे’ का तात्पर्य है आगमन या उपस्थिति। लेकिन इस परंपरा में इन शब्दों से कहीं अधिक आध्यात्मिक संदेश निहित है यह कि भगवान के समक्ष भौतिक आभूषण, सामाजिक पद या शाही वैभव का कोई महत्व नहीं होता।

गहना बीजे परंपरा के अंतर्गत गजपति महारानी हर नौ वर्षों में अत्यंत गोपनीय रूप से जगन्नाथ मंदिर में सेवा देती हैं। वे इस दौरान राजसी ठाठ-बाट, आभूषण या किसी भी शाही पहचान को त्यागकर, सिर ढँककर और दृष्टि झुकाकर मंदिर में प्रवेश करती हैं। वहाँ वे भगवान जगन्नाथ को वस्त्र अर्पित करती हैं तथा एक सामान्य सेविका की तरह मंदिर परिसर की सफाई करती हैं और झाड़ू लगाती हैं । इस समर्पित सेवा का आयोजन पूर्णतः गोपनीय होता है जिसकी जानकारी आम जनता को बाद में ही मिलती है।

यह परंपरा न केवल गजपति राजपरिवार की गहन भक्ति भावना और व्यक्तिगत विनम्रता को दर्शाती है बल्कि हिंदू धर्म की उस मूल अवधारणा को भी जीवंत करती है कि ईश्वर के सामने सभी समान हैं चाहे वे राजा हों या रंक।

इतिहास और पौराणिक आधार

गहना बीजे की परंपरा गजपति राजवंश के समय से ही चली आ रही है। ओडिशा के इतिहास में गजपति राजा को भगवान जगन्नाथ का प्रथम सेवक (अधिपति सेवक) माना जाता है। इसीलिए उनके परिवार को मंदिर से जुड़े सभी धार्मिक कार्यों में विशेष स्थान प्राप्त है।गजपति राजपरिवार का जगन्नाथ मंदिर के सभी प्रमुख धार्मिक अनुष्ठानों और आयोजनों में एक केंद्रीय और गरिमामय भूमिका होती है। यह परंपरा न केवल उनकी धार्मिक निष्ठा को दर्शाती है बल्कि यह गजपति वंश के उन विशेष अधिकारों और मान्यताओं का भी हिस्सा है। जो सदियों से पुरी की परंपरा में प्रतिष्ठित हैं। विशेष अवसरों पर गजपति राजा और उनका परिवार मंदिर की सेवा और अनुष्ठानों में भाग लेते हैं। जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनका संबंध केवल राजकीय नहीं बल्कि गहरी आध्यात्मिक जिम्मेदारियों से भी जुड़ा हुआ है।

गहना बीजे की प्रक्रिया

गुप्त आगमन - गहना बीजे की परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है गजपति महारानी का मंदिर में अत्यंत गुप्त रूप से आगमन। यह आगमन आमतौर पर रात्रि के समय या भोर में होता है जब मंदिर के द्वार आम श्रद्धालुओं के लिए बंद रहते हैं। उनके साथ केवल विश्वस्त पुजारी और मंदिर सेवक होते हैं और प्रशासन विशेष सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करता है।

विनम्र वेशभूषा - इस अनूठी सेवा में गजपति महारानी कोई राजसी वस्त्र, आभूषण या शाही चिह्न धारण नहीं करतीं। वे सामान्य सादे वस्त्र पहनती हैं जिससे उनकी पहचान छिपी रहती है।

मंदिर की सफाई और सेवा - मंदिर पहुंचने के बाद महारानी सबसे पहले झाड़ू लगाकर और फर्श धोकर भगवान के घर की सफाई करती हैं। इसके बाद वे भगवान को वस्त्र अर्पित करती हैं और स्वयं भोग चढ़ाती हैं। ये सभी कार्य अत्यंत मौन और भक्ति भाव से किए जाते हैं, बिना किसी दिखावे या बाहरी आडंबर के।

भगवान को नमन और प्रार्थना - सेवा के समापन पर गजपति महारानी भगवान जगन्नाथ के समक्ष मौन ध्यान करती हैं। वे अपने राज्य, प्रजा, परिवार और धर्म के कल्याण की प्रार्थना करती हैं। यह ध्यान व्यक्तिगत समर्पण और भक्ति की चरम अवस्था मानी जाती है। जहाँ वे अपने शाही अस्तित्व से परे, एक भक्त के रूप में भगवान के चरणों में लीन हो जाती हैं।

सांस्कृतिक प्रमाण और विरासत - गजपति राजवंश की यह रहस्यमयी परंपरा विशेषकर राजघराने की महिलाओं की गुप्त और आध्यात्मिक भूमिका, ओड़िशा की धार्मिक परंपरा में गहराई से समाई हुई है। ‘गहना बीजे’ को आज भी लोककथाओं और मौखिक परंपराओं के माध्यम से जाना जाता है क्योंकि इसे कभी सार्वजनिक रूप से नहीं मनाया जाता। ओड़िशा की सांस्कृतिक और नृवंशीय (ethnographic) शोधों में इस परंपरा को “a secret ritual of feminine devotion in Jagannath cult” के रूप में उल्लेखित किया गया है। जो इसकी आध्यात्मिक गंभीरता और सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाता है।

सामाजिक और आध्यात्मिक संदेश

गहना बीजे परंपरा यह बताती है कि भक्ति और सेवा में कोई भेदभाव नहीं होता। चाहे वह एक रानी हो या आम भक्त, ईश्वर के सामने सभी समान हैं। रानी का झाड़ू लगाना, सफाई करना यह दर्शाता है कि मानव सेवा ही भगवान सेवा है। यह परंपरा यह भी सिखाती है कि यदि जीवन में अहंकार और दिखावे को त्याग कर सच्चे मन से सेवा की जाए तो भगवान स्वयं प्रसन्न होते हैं।

अन्य रोचक तथ्य

गहना बीजे परंपरा को लेकर यह व्यापक रूप से माना जाता है कि यह अनुष्ठान आमतौर पर नवकलेवर के बाद किया जाता है । जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, सुभद्रा और सुदर्शन की मूर्तियों का कायांतरण होता है। नवकलेवर जो लगभग हर 12 से 19 वर्षों में संपन्न होता है, स्वयं एक अत्यंत पवित्र और गुप्त प्रक्रिया है। जिसमें कई विशेष अनुष्ठान होते हैं और गजपति राजपरिवार की सक्रिय भागीदारी भी देखी जाती है। हालांकि 'गहना बीजे' को नवकलेवर के बाद किए जाने का कोई स्पष्ट ऐतिहासिक या दस्तावेज़ी प्रमाण नहीं है लेकिन यह मान्यता लोक परंपरा और मौखिक विरासत के आधार पर प्रचलित है। यह अनुष्ठान विशेष रूप से पुरी जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है और इसकी पवित्रता और ख्याति ओडिशा के अन्य हिस्सों में भी श्रद्धा से जानी जाती है। मंदिर प्रशासन गहना बीजे सहित ऐसे कई धार्मिक अनुष्ठानों को पूरी गोपनीयता के साथ आयोजित करता है और आम जनता को इसकी जानकारी केवल सीमित रूप में या बाद में दी जाती है। ताकि इसकी आध्यात्मिक गरिमा और पारंपरिक पवित्रता बनी रहे।

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