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Bahraich News: प्रतिबंध के बाद भी यहां पर हो रहा है यह काम, लोगों की जिंदगी के साथ हो रहा है खिलवाड़
Bahraich News: बहराइच जिले के शंकरपुर, मटेरा बाजारों में धड़ल्ले से बिक रही प्रतिबंधित थाई, मांगुर मछलियां लोगों में बीमारी परोसने का काम कर रही हैं।
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Bahraich News: बहराइच जनपद के मटेरा थाना क्षेत्र के शंकरपुर में जिला बदर अपराधी कलीम के द्वारा प्रतिबंधित मछली बेची व इलाके में सप्लाई करवाई जा रही है। इस कारोबारियों में अपराधी के गुर्गे भी शामिल हैं। सावन के पवित्र महीने में खुलेआम धड़ल्ले से प्रतिबंधित थाई मांगुर मछलियां बेची जा रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ के निर्देशों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं।
बहराइच जिले के शंकरपुर, मटेरा बाजारों में धड़ल्ले से बिक रही प्रतिबंधित थाई, मांगुर मछलियां लोगों में बीमारी परोसने का काम कर रही हैं। जिले के जिम्मेदार हैं कि बाजारों में बेखौफ बेजी जा रही बीमारी परोसने वाली मछलियों को लेकर तनिक भी संजीदा नहीं है। सस्ती होने के कारण मछलियों का सेवन गरीब तबका भारी संख्या में कर रहा है। इससे उसमें कैंसर जैसी गम्भीर बीमारियों के होने का खतरा बढ़ रहा है। थाई, मांगुर मछली की बिक्री पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल व भारत सरकार ने 24 वर्ष पहले सन् 2000 में पालन व बिक्री पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया था। एनजीटी का मानना है कि दूषित से दूषित पानी व कीचड़ में भी रहकर यह मछली जी लेती है।
इसके अलावा यह जमीन पर भी चल लेती है। जबकि दूषित पानी व ऑक्सीजन की कमी से अन्य मछलियां मर जाती है। इस मछली में आयरन और लेड की मात्रा अधिक होती है। इसलिए यह मानव समाज एवं जलीय वातावरण दोनों के लिए खतरनाक है। इतना ही नहीं मात्र तीन से चार महीने में ही इस मछली का वजन आधा किलो से एक किलो तक हो जाता है। लंबाई भी तीन से पांच फीट तक हो सकती है। जबकि अन्य मछलियों को इस वजन में आने के लिए सात से आठ महीने लगते हैं। इसके अलावा मछली मांसाहारी होती है।
यह इंसानों का मांस भी खा जाती है एवं जिस तालाब में पाली जाती है उस तालाब की छोटे मछलियों एवं जलीय कीड़ों को खाकर तालाब का वातावरण खराब कर देती है। इसकी बिक्री पर सबसे पहले 1998 में केरल में बैन किया गया था। विनाशकारी परिणाम को देखते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और भारत सरकार ने भी प्रतिबंध लगा रखा है। बावजूद इसके बहराइच जिले के अलग-अलग बाजारों में प्रतिबंधित मछलियां धड़ल्ले से बेची व खरीदी जा रही हैं। विभागीय जिम्मेदार हैं कि उन्हें इस पर रोक लगाने की तनिक भी फुरसत नहीं मिल रही है।
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