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Barabanki News: सतरिख में सैयद सालार गाजी मजार का मेला रद्द, प्रशासन-कमेटी ने जारी किया वीडियो संदेश
Barabanki News: अपर पुलिस अधीक्षक अखिलेश नारायण सिंह ने बताया कि कस्बे में दरगाह की जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी।
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Barabanki News: जिले के सतरिख स्थित सैयद सालार साहू गाजी (बूढ़े बाबा) की मजार पर हर साल लगने वाला मेला (उर्स) इस बार नहीं लगेगा। प्रशासन और मेला प्रबन्धन कमेटी दोनों ने स्पष्ट कर दिया है कि 14 से 18 मई तक प्रस्तावित यह आयोजन रद्द कर दिया गया है। मेला कमेटी ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे इस वर्ष मेले में न आएं। कमेटी के सभी सदस्यों ने मजार परिसर में एक साथ खड़े होकर वीडियो संदेश जारी किया, जिसमें आयोजन स्थगित करने की बात कही गई।
अपर पुलिस अधीक्षक अखिलेश नारायण सिंह ने बताया कि कस्बे में दरगाह की जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर स्थानीय लोगों ने शिकायत की थी। इसी विवाद और संभावित कानून व्यवस्था की समस्या को देखते हुए इस बार मेले की अनुमति नहीं दी गई है। प्रशासन ने अन्य जिलों के पुलिस प्रशासन को पत्र भेजकर सूचित किया है कि मेले का आयोजन नहीं हो रहा, ताकि वहां से श्रद्धालु न आएं और भ्रम की स्थिति न बने। बताया जा रहा है कि विवाद की जड़ में सैयद सालार साहू गाजी का ऐतिहासिक किरदार है।
कुछ संगठनों का दावा है कि वह महमूद गजनवी की सेना के सेनापति था, जिन्होंने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण के साथ-साथ जबरन धर्मांतरण भी कराए। इन्हीं कारणों से उनका धार्मिक रूप में स्मरण और आयोजन पर सवाल उठाए जा रहे हैं। ज्ञापनों के माध्यम से प्रशासन से मांग की गई थी कि ऐसे व्यक्ति के नाम पर धार्मिक मेला नहीं होना चाहिए।
आरोप है कि इतिहास को तोड़-मरोड़कर उन्हें सूफी संत के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। वहीं हाल के थाना दिवस में स्थानीय लोगों ने दरगाह परिसर में अतिक्रमण की शिकायतें की थीं जिससे विवाद और गहरा गया। मेले की तैयारियां शुरू हो चुकी थीं, लेकिन 12 मई को प्रशासन ने अनुमति न देने की घोषणा की और दोपहर में मेला कमेटी ने भी वीडियो संदेश जारी कर आयोजन रद्द करने की पुष्टि की।
मेले से जुड़े दुकानदारों को जमीन आवंटन पर भी रोक लगा दी गई है। इस निर्णय से मेला कमेटी व दरगाह से जुड़े लोगों में मायूसी है। वर्षों से चली आ रही परंपरा के अचानक रुक जाने से असमंजस की स्थिति बनी हुई है। कुछ लोगों का मानना है कि अब समय आ गया है कि ऐतिहासिक तथ्यों की निष्पक्ष पुनर्समीक्षा हो और आस्था के नाम पर फैल रहे भ्रम पर विराम लगे।
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