Chandauli News: आस्था का महापर्व: खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का अलौकिक निर्जला व्रत

Chandauli News : चंदौली में छठ महापर्व: खरना पूजन के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का अलौकिक निर्जला व्रत, श्रद्धा और आस्था का अद्भुत उत्सव

Sunil Kumar
Published on: 26 Oct 2025 12:38 PM IST
Chandauli News: आस्था का महापर्व: खरना के साथ शुरू हुआ 36 घंटे का अलौकिक निर्जला व्रत
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Chandauli News: लोक आस्था और सूर्य उपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ आज 'खरना' के साथ अपने दूसरे चरण में प्रवेश कर गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर होने वाला यह पूजन, न केवल शारीरिक शुद्धि का प्रतीक है, बल्कि 36 घंटे के कठोर निर्जला व्रत की अलौकिक यात्रा का शुभारंभ भी है। कल नहाय-खाय के पावन संकल्प के बाद, आज व्रती महिलाएं और पुरुष पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ छठी मैया के आगमन और उनकी विशेष पूजा के लिए तैयार हैं। यह व्रत संतान के सुख, परिवार की समृद्धि और आरोग्य की कामना के लिए रखा जाता है, जिसकी कठोरता ही इसकी महत्ता को और बढ़ा देती है। खरना के प्रसाद को ग्रहण करने के बाद व्रतियों का कठिन उपवास प्रारंभ हो जाता है, जो अगले दो दिन तक चलता है।

खरना का आध्यात्मिक महत्व

हिंदू धर्म में, सूर्य देव (प्रत्यक्ष देवता) और उनकी बहन षष्ठी देवी, जिन्हें छठी मैया के नाम से पूजा जाता है, को समर्पित यह पर्व अत्यंत धार्मिक महत्व रखता है। 'खरना' शब्द शुद्धता और पवित्रता को दर्शाता है। यह वह दिन है जब व्रती स्वयं को मन, वचन और कर्म से शुद्ध करते हैं, ताकि वे आने वाले कठोर निर्जला व्रत को पूर्ण कर सकें। ऐसी मान्यता है कि आज के दिन ही सूर्य की शक्ति और संतान सुख की अधिष्ठात्री देवी, छठी माता का आगमन होता है, जिनकी पूजा कर उनका आह्वान किया जाता है। यह पूजन आत्मसंयम और आत्मशुद्धि का अनुपम उदाहरण है।

शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि

पंचांग के अनुसार, आज कार्तिक शुक्ल पंचमी तिथि है। सूर्योदय प्रातः 06:29 बजे हुआ और सूर्यास्त सायंकाल 05:41 बजे होगा। छठ व्रती सूर्यास्त के उपरांत, अर्थात् 05:41 बजे के बाद, खरना पूजन आरंभ कर सकेंगे।

खरना पूजन की पवित्र प्रक्रिया:

आज के दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं।

सायंकाल में, दोबारा स्नान-ध्यान कर पूर्णतः शुद्ध और नए वस्त्र धारण किए जाते हैं।पूजा स्थल को स्वच्छ कर, मिट्टी के नए चूल्हे पर आम की लकड़ी से अत्यंत पवित्रता के साथ भोग प्रसाद तैयार किया जाता है।खरना के भोग में गुड़ की खीर (जिसे 'रसियाव' भी कहते हैं) और घी चुपड़ी रोटी बनाई जाती है। इस प्रसाद में नमक या चीनी का प्रयोग वर्जित होता है।यह प्रसाद सबसे पहले छठी मैया और भगवान भास्कर को अर्पित किया जाता है।इसके बाद, व्रती स्वयं यह प्रसाद ग्रहण कर अपने 36 घंटे के निर्जला व्रत का श्रीगणेश करते हैं।

36 घंटे का निर्जला संकल्प

खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही व्रतियों का यह महाव्रत शुरू हो जाता है। अगले 36 घंटे तक व्रती एक बूंद जल भी ग्रहण नहीं करते हैं। यह व्रत बताता है कि कैसे आस्था और श्रद्धा के बल पर मनुष्य कठिन से कठिन तपस्या को भी सहजता से पूर्ण कर सकता है। इस महाव्रत के तीसरे दिन, सोमवार, 27 अक्टूबर को डूबते सूर्य को संध्या अर्घ्य दिया जाएगा, और मंगलवार, 28 अक्टूबर को उगते सूर्य को प्रातः अर्घ्य देने के उपरांत व्रत का पारण किया जाएगा।

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