Chandauli News : काशी वन्य जीव प्रभाग में बाघ की वापसी: नौगढ़ वनांचल में रोमांच और सतर्कता

Chandauli News : नौगढ़ वनांचल में बाघ की वापसी से वन्य जीव संरक्षण और मानव-संघर्ष में नई चुनौती उत्पन्न

Sunil Kumar
Published on: 6 Nov 2025 2:47 PM IST
Chandauli News : काशी वन्य जीव प्रभाग में बाघ की वापसी: नौगढ़ वनांचल में रोमांच और सतर्कता
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Chandauli News ( Image From Social Media )

Chandauli News: उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद के विंध्य-कैमूर पर्वत श्रृंखला के हृदय स्थल, काशी वन्य जीव प्रभाग के चन्द्रप्रभा वन्य जीव अभ्यारण्य अंतर्गत नौगढ़ वनांचल क्षेत्र में वर्षों के अंतराल के पश्चात् महामृगों के संहारक,वन के अधिष्ठाता "बाघ" (Panthera tigris) के दर्शन ने वन क्षेत्र के निवासियों और वन विभाग दोनों के मध्य कौतूहल और गहन मंथन को जन्म दिया है। यह घटना वन्य जीव संरक्षण के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है, जो न केवल वन्य जीव प्रभाग की पारिस्थितिकी में सुधार का संकेत है, बल्कि मानव-वन्य जीव संघर्ष की चुनौती के प्रति सघन सतर्कता की मांग भी करती है। हाल ही में, सपहर के सघन वन क्षेत्र के आस-पास विचरण करने वाले स्थानीय चरवाहों और राहगीरों ने इस गौरवशाली वन्य जीव को पथ पार करते हुए देखा, जिससे ग्रामीण परिवेश में भय के साथ-साथ एक अद्भुत रोमांच का संचार हुआ है।

ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: वन्य जीवन का उद्भव

यह विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र, जो वर्तमान में 78 वर्ग किलोमीटर के विस्तृत क्षेत्रफल में फैला है, 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में बनारस के तत्कालीन शासकों हेतु एक प्रतिष्ठित 'आखेट क्षेत्र' (शिकारगाह) के रूप में विख्यात था। काशी स्टेट के विखंडन के उपरांत, इस भूभाग को मई 1957 में विधिवत रूप से इस क्षेत्र को वन्य जीव अभ्यारण्य के रूप में स्थापित किया गया।

विलुप्ति और पुनर्जीवन का प्रयास

इस अभ्यारण्य का इतिहास एशियाई शेरों के पुनर्स्थापन (Reintroduction) के एक अनूठे प्रयोग का साक्षी रहा है। वर्ष 1958 में, यहाँ तीन एशियाई सिंहों को लाया गया था। यह संरक्षण प्रयास आरंभ में अत्यंत सफल रहा, और वर्ष 1969 तक इनकी संख्या ग्यारह (11) तक पहुँच गई। तथापि, एक रहस्यमय घटनाक्रम में, अगले ही वर्ष समस्त सिंह इस क्षेत्र से विलुप्त हो गए। वर्ष 1993 में इस पुनर्वास योजना को पुनः कार्यान्वित करने का प्रस्ताव भारत सरकार के समक्ष रखा गया, जिस पर अभी भी अंतिम निर्णय प्रतीक्षित है।

नौगढ़ की नैसर्गिक छटा एवं जल स्रोतों की महत्ता

यह अभ्यारण्य विंध्याचल एवं कैमूर पर्वतमालाओं के सुरम्य संगम पर स्थित है, जो इसे अद्वितीय जैव विविधता प्रदान करता है। गंगा की प्रमुख सहायक नदी कर्मनाशा, जिसकी सहायक नदी चन्द्रप्रभा है, इस अभ्यारण्य के हृदय से होकर प्रवाहित होती है। ये नदी, झीलें, तथा जलप्रपात जैसे - चन्द्रप्रभा बांध, राजदरी-देवदरी, नौगढ़ बांध, बड़ी दरी, छानपातर दरी और टपका दरी - न केवल इस क्षेत्र के पारिस्थितिक तंत्र को जीवन प्रदान करते हैं, बल्कि वन्य जीवों के निर्बाध विचरण के लिए भी आवश्यक हैं। बाघ का यह अवलोकन स्पष्ट करता है कि इन जल स्रोतों की उपलब्धता ने ही वनराज को इस क्षेत्र की ओर आकर्षित किया है।

बाघ की वापसी: वन्य जीव सुरक्षा की नई चुनौती

वन में दीर्घकाल के पश्चात् बाघ के विचरण करने की सूचना ने, स्वाभाविक रूप से, आस-पास के ग्रामीण और वनवासी समुदायों में एक प्रकार का भय और संशय उत्पन्न कर दिया है। वन विभाग के लिए यह एक संकेत है कि अब इस क्षेत्र को उच्च कोटि की वन्य जीव प्रबंधन एवं मानव - वन्य जीव संघर्ष न्यूनीकरण की रणनीति के साथ देखने की आवश्यकता है।

पर्यटकों की सुरक्षा एवं बीमा कवर की मांग

काशी वन्य जीव प्रभाग में प्रतिवर्ष बड़ी संख्या में पर्यटक, राजदरी- देवदरी जैसे मनोरम स्थलों का भ्रमण करने आते हैं। आगंतुकों का यह मत है कि जब वन विभाग द्वारा प्रवेश शुल्क (Entry Fee) लिया जाता है, तो इसके एवज में उनकी सुरक्षा की व्यापक एवं सुनिश्चित व्यवस्था भी होनी चाहिए। पर्यटकों ने हिंसक वन्य जीवों से किसी अप्रिय घटना की स्थिति में बीमा कवर (Insurance Cover) प्रदान करने और समस्त पर्यटक स्थलों पर पर्याप्त सुरक्षाकर्मियों की तैनाती की मांग की है। वन विभाग को इस संदर्भ में त्वरित एवं संवेदनशीलता के साथ आवश्यक कदम उठाने होंगे ताकि पर्यटन और वन्य जीव संरक्षण दोनों के मध्य एक सुरक्षित सामंजस्य स्थापित हो सके।

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