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Chandauli: जंगल खतरे में: 'कागजी' होता काशी वन्य जीव प्रभाग, अतिक्रमण से सिकुड़ रही हरियाली
Chandauli News: काशी वन्य जीव प्रभाग में अतिक्रमण का कहर! जंगलों में हो रही खेती, पेड़ काटे जा रहे, वन विभाग की लापरवाही उजागर, पर्यावरण पर संकट
'कागजी' होता काशी वन्य जीव प्रभाग (photo: social media )
Chandauli News: चंदौली जिले का काशी वन्य जीव प्रभाग, जो कभी घने जंगलों के लिए जाना जाता था, आज गंभीर संकट का सामना कर रहा है। नौगढ़, जयमोहनी, मझगाई, चन्द्रप्रभा और चकिया रेंज के जंगलों में बेखौफ तरीके से पेड़ों की कटाई और ज़मीन पर अवैध खेती के लिए कब्जा (जोतन) जारी है। हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि जंगल का एक बड़ा हिस्सा अतिक्रमणकारियों के कब्जे में आ चुका है। यह स्थिति पर्यावरण प्रेमियों और वन्य जीवों के लिए एक बड़ी चिंता का विषय बन गई है, क्योंकि अगर यही हाल रहा तो जल्द ही ये जंगल सिर्फ सरकारी कागज़ों में ही सिमट कर रह जाएंगे। यह सिर्फ वन विभाग की जमीन का नुकसान नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) के लिए एक बड़ा खतरा है।
वन अधिकारियों की अनदेखी: अतिक्रमणकारियों का बढ़ा मनोबल
जंगलों की सुरक्षा के लिए तैनात वन रक्षक (वाचर) जब भी अवैध कटान या खेती कर रहे अतिक्रमणकारियों को पकड़कर रेंज कार्यालय लाते हैं, तो क्षेत्रीय वन अधिकारी और एसडीओ (Sub Divisional Officer) कथित तौर पर उन्हें बिना किसी सख्त कार्रवाई के छोड़ दे रहे हैं। इस ढीले रवैये के कारण अतिक्रमणकारियों का हौसला लगातार बढ़ रहा है। उन्हें अब कानून का कोई डर नहीं रहा, जिसका नतीजा यह है कि लगभग आधे से अधिक जंगल की ज़मीन पर अब अवैध कब्जा हो चुका है।
जंगल में खेती और सड़क के किनारे वन तुलसी
अतिक्रमण की हद पार हो चुकी है। जिन इलाकों में कभी घना जंगल होता था, अब वहां बड़े पैमाने पर खेती हो रही है। इस विसंगति को इस बात से समझा जा सकता है कि आज सड़क के किनारे भले ही 'वन तुलसी' के पौधे दिखाई दे रहे हों, लेकिन जंगल के भीतरी हिस्सों में खेती हो रही है। यह स्पष्ट संकेत है कि वन विभाग जमीनी हकीकत को छिपाने की कोशिश कर रहा है, जबकि जंगल अपनी पहचान खो रहे हैं।
भविष्य की चिंता
पर्यावरण और वन्य जीव प्रेमी इस स्थिति पर गहरी चिंता जता रहे हैं। उनका मानना है कि अगर तुरंत और कड़े कदम नहीं उठाए गए, तो चंदौली का यह वन्य जीव प्रभाग केवल एक नाम बनकर रह जाएगा। यह लापरवाही न केवल पर्यावरण संतुलन को बिगाड़ रही है, बल्कि वन्य जीवों के आवास और उनके जीवन को भी खतरे में डाल रही है। सरकार और वन विभाग के उच्चाधिकारियों को इस गंभीर समस्या पर तत्काल ध्यान देना चाहिए, ताकि हरे-भरे जंगलों को 'कागजी जंगल' बनने से बचाया जा सके।
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