भगवान राम से जुड़ा दशरथ घाट: प्राचीन मूर्तियों और पौराणिक रहस्यों से भरा स्थान

Chitrakoot News: बुंदेलखंड की अनसुनी धरोहर: चित्रकूट का दशरथ घाट और उससे जुड़ी पौराणिक मान्यताएं

Newstrack          -         Network
Published on: 10 Sept 2025 10:58 AM IST (Updated on: 10 Sept 2025 1:16 PM IST)
भगवान राम से जुड़ा दशरथ घाट: प्राचीन मूर्तियों और पौराणिक रहस्यों से भरा स्थान
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Chitrakoot News: वैसे तो बुंदेलखंड को अक्सर उसके पिछड़ेपन और खनिज संपदा की लूट के लिए जाना जाता है, लेकिन इसका एक और चेहरा है जो आज भी अंधेरे में है — इसका समृद्ध ऐतिहासिक और पौराणिक वैभव। बुंदेलखंड के लगभग हर कोने में संस्कृति, इतिहास और अध्यात्म से जुड़े रहस्य बिखरे पड़े हैं, जिन्हें केवल पहचानने और सहेजने की जरूरत है।

ऐसा ही एक अनमोल स्थल है चित्रकूट जिले में स्थित दशरथ घाट। यह स्थान ऋषियों की तपोभूमि चित्रकूट में है, जहां श्रीराम ने वनवास काल के दौरान अपने पिता महाराज दशरथ का तर्पण किया था। यह स्थल विंध्य पर्वत की श्रृंखलाओं से घिरा हुआ, प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण, शांत एवं एकांत स्थान है। दशरथ घाट अपने भीतर कई पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक रहस्यों को समेटे हुए है।


समय के साथ यह स्थल उपेक्षा का शिकार होता गया, लेकिन आज भी यहां की चट्टानों में उकेरी गई प्राचीन मूर्तियां अपनी अद्भुत कारीगरी और जीवंतता से इतिहास की गवाही देती हैं। इन मूर्तियों को देखकर यह स्पष्ट होता है कि किसी समृद्ध और कलाप्रेमी राजवंश द्वारा इन्हें बनवाया गया होगा। हालांकि यह राजवंश कौन था, यह आज भी शोध का विषय बना हुआ है।

विकासखंड मऊ की ग्राम पंचायत खंडेहा में स्थित हनुमानगंज के पास यह दशरथ घाट मौजूद है। मान्यता है कि वनवास के दौरान श्रीराम ने यहां एक दिन का प्रवास किया था और यहीं उन्हें पिता दशरथ के निधन का समाचार प्राप्त हुआ था। इसके बाद उन्होंने पास ही बहने वाले विंध्य पर्वत के झरने में पितृ तर्पण कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। तभी से यह स्थान 'दशरथ घाट' के नाम से जाना जाने लगा।


हाल ही में ग्रामीणों ने यहां एक पत्थर पर उकेरे गए पदचिह्न देखे हैं — जिनमें एक बड़ा और एक छोटा पैर शामिल है। अब यहां दूर-दराज से लोग दर्शन के लिए आने लगे हैं। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि ये पदचिह्न किस काल के हैं या किसने बनवाए।महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि यह स्थान लोखरी (लौरी) से भी काफी निकट है, जो एक प्रसिद्ध पुरातात्विक स्थल है। इससे यह अंदेशा और भी प्रबल होता है कि दशरथ घाट भी अत्यंत प्राचीन है और यहां की मूर्तियां व आकृतियां शोध का विषय हैं।

इतिहासकार शिवप्रेम याज्ञिक का कहना है कि चित्रकूट ऋषियों की साधना भूमि रही है और इस भूमि को वनवासी श्रीराम ने अपनी कर्मभूमि बनाया था। दशरथ घाट में उन्होंने पितृ तर्पण कर पितृ ऋण से मुक्ति प्राप्त की थी।इतिहासकारों का मत है कि यहां की सांस्कृतिक और पुरातात्विक विरासत को संरक्षित करने की आवश्यकता है। खासकर यहां की चट्टानों पर बनी मूर्तियों, शिवलिंगों और पदचिह्नों पर गहन शोध की अत्यधिक आवश्यकता है, जिससे इन रहस्यमयी पहलुओं का सही दस्तावेजीकरण और प्रचार-प्रसार हो सके।

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