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प्रदेश का ऊर्जा मंत्रालय कोई और चला रहा ? एके शर्मा ने कहा मंत्री जेई तक का ट्रांसफर नहीं कर सकता
Electricity Privatization: ऊर्जा मंत्री की छवि धूमिल करने के लिए सुनियोजित साजिश रची जा रही है, उसमें कुछ कर्मचारी नेता भी शामिल हैं जो खुद को यूनियन प्रतिनिधि बताते हैं लेकिन असल में अराजक मानसिकता के लोग हैं।
Electricity Privatization
Electricity Privatization: उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा एक बार फिर प्रदेश की राजनीति और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा का विषय बन गए हैं। इस बार वजह उनका अपने ही विभाग में व्याप्त अराजकता और साज़िशों को लेकर किया गया खुलासा है। मंत्री कार्यालय द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर जारी एक विस्फोटक पोस्ट में कई चौंकाने वाले आरोप लगाए हैं, जिनमें कुछ विद्युत कर्मचारी नेताओं को 'सुपारीबाज' बताया गया है। ऊर्जा मंत्री की छवि धूमिल करने के लिए सुनियोजित साजिश रची जा रही है, उसमें कुछ कर्मचारी नेता भी शामिल हैं जो खुद को यूनियन प्रतिनिधि बताते हैं लेकिन असल में अराजक मानसिकता के लोग हैं।
नियुक्ति के तीन दिन बाद हड़ताल
मंत्री ऑफिस के अनुसार ये वही लोग हैं जो ऊर्जा विभाग की नकारात्मक छवि गढ़ने में लगे हैं और ईमानदारी से काम कर रहे अधिकारियों और कर्मचारियों की मेहनत पर पानी फेर रहे हैं। पोस्ट आगे लिखा गया है कि एके शर्मा के तीन वर्ष के कार्यकाल में चार बार हड़ताल हो चुकी है। उनमें पहली हड़ताल उनके मंत्री बनने के महज तीन दिन बाद ही हुई थी। यह हड़ताल का सिलसिला इतना गंभीर हो गया कि अंत में उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा था। अब सवाल यह भी उठता है कि अगर समस्याएं इतनी व्यापक हैं, तो फिर अन्य विभागों में इस तरह की बार-बार हड़तालें क्यों नहीं हो रहीं है?
ऊर्जा मंत्री आवास पर किया प्रदर्शन
ऊर्जा मंत्री कार्यालय ने लिखा कुछ दिन पहले इन्हीं तत्वों ने निजीकरण के विरोध के नाम पर मंत्री के सरकारी आवास पर छह घंटे तक अभद्रता की थी। न केवल मंत्री, बल्कि उनके परिवार के खिलाफ भी असभ्य भाषा का प्रयोग किया गया। इसके बावजूद मंत्री ने संयम दिखाया, प्रदर्शनकारियों को पानी भिजवाया और खुद उनसे मिलने के लिए प्रतीक्षा करते रहे। परंतु प्रदर्शनकारी मिलने तक नहीं आएं।इस पोस्ट में पूर्व के घटनाक्रमों को उठाते हुए तीखे सवाल पूछे गए हैं। वर्ष 2010 में जब आगरा का विद्युत वितरण कार्य टोरेंट पावर को निजी क्षेत्र में सौंपा गया था। तब भी यही यूनियन नेता मौजूद थे। लेकिन तब कोई विरोध नहीं हुआ। पोस्ट में तंज कसते हुए कहा गया "तब शायद इसलिए शांति थी क्योंकि ये नेता हवाई जहाज़ से विदेश पर्यटन पर भेज दिए गए थे।
निजीकरण का फैसला ऊर्जा मंत्री का नहीं
ऊर्जा मंत्री कार्यालय ने स्पष्ट किया है बिजली निजीकरण का निर्णय केवल मंत्री स्तर पर नहीं हो रहा है। यह कार्य एक उच्च स्तरीय टास्क फोर्स द्वारा संचालित हो रहा है, जिसकी अध्यक्षता प्रदेश के मुख्य सचिव कर रहे हैं। इसके साथ ही सरकार की अनुमति और शासनादेश के तहत ही प्रक्रिया आगे बढ़ रही है। पोस्ट में यह भी कहा गया कि जब एक जेई (जूनियर इंजीनियर) तक का तबादला मंत्री नहीं करते, तो फिर इतना बड़ा फैसला वे अकेले कैसे ले सकते हैं? इसके बाद कई तरह के प्रदेश मंत्रालयों को चलाने को लेकर सवाल खड़े हो गए है।
ईश्वर और जनता मंत्री के साथ
पोस्ट का समापन एक भावनात्मक टिप्पणी से किया गया है। लगता है कि एके शर्मा से जलने वाले लोग एकजुट हो गए हैं, लेकिन ईश्वर और जनता एके शर्मा के साथ हैं। उनकी मंशा केवल बेहतर बिजली व्यवस्था और जनसेवा की है। जाको राखे साइयाँ… ऊर्जा मंत्री एके शर्मा द्वारा किया गया खुलासा निश्चित रूप से प्रदेश की राजनीति और बिजली विभाग की कार्यशैली को लेकर नई बहस छेड़ दी है। अब देखना यह होगा कि क्या राज्य सरकार और प्रशासन इस मामले में कोई हस्तक्षेप करता है या यह बयान भी बीते विवादों की तरह सियासी तूफान बनकर शांत हो जाएगा।
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