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Hapur News: गौमाता के गोबर से बन रहीं लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां पर्यावरण, आस्था और रोजगार का चमत्कार
Hapur News: हापुड़ के गांव दतैड़ी में गौमाता के गोबर से बन रही लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ पर्यावरण और रोजगार को बढ़ावा दे रही हैं।
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Hapur News: इस बार की दिवाली किसी आम त्योहार की तरह नहीं है यह एक संदेश बन कर उभरी है। जहां शहरों में पटाखों की धमक और रासायनिक रंगों का शोर है, वहीं हापुड़ के गांव दतैड़ी से उठ रही एक सधी-सी लहर ने लोगों के होश उड़ा दिए हैं। गौमत्ता के गोबर से बन रही रंग-रहित और पूरी तरह प्राकृतिक लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ, दीये और शुभ-लाभ चिन्ह न सिर्फ घरों की शोभा बढ़ा रही हैं, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ग्रामीण युवाओं के रोजगार का नया रास्ता भी खोल रही हैं।
श्री बालाजी गौ सेवा धाम गौशाला द्वारा तैयार इन वस्तुओं की कीमतें सामान्य लोगों की पहुँच में रखी गई हैं लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियाँ 70रूपये,80 रूपये, शुभ-लाभ चिन्ह 50 रूपये, जबकि दीपकों की कीमत उनके आकार और डिज़ाइन के अनुसार तय की जाती है। गौशाला से हो रहे लोकल विक्रय और सोशल मीडिया पर बढ़ते प्रमोशन के कारण इन वस्तुओं की मांग आस-पास के कस्बों तक फैल चुकी है।
कैसे बनती हैं ये मूर्तियाँ पारंपरिक तकनीक, आधुनिक सोच
अनुराग गोयल ने अपने साथियों के साथ मिलकर गौशाला में एक खास गोबर प्रोसेसिंग प्लांट लगाया है। यहाँ पहले गोबर को साफ-सुथरा करके सुखाया जाता है, फिर पारंपरिक मिश्रण और स्थानीय तकनीक से उसे फोर्म किया जाता है। उत्पादों को रंग देने के लिए किसी प्रकार के रासायनिक रंगों या प्लास्टिक का उपयोग बिलकुल नहीं किया जाता पूरी प्रक्रिया प्राकृतिक रहती है। नतीजा: सौंदर्य, टिकाऊपन और पूरी तरह जैविक वस्तुएँ जो नियमों के अनुसार जलने पर भी हानिकारक धुएँ का कारण नहीं बनतीं।
गौशाला की इस पहल को सोशल मीडिया पर जमकर सराहना मिल रही है। कई लोग इन उत्पादों को “गोबर से सोना” तक कह रहे हैं। स्थानीय ग्राहकों के अलावा अब व्यापारी और दुकानदार भी इन वस्तुओं को अपने स्टॉल पर रखना चाहते हैं। अनुराग बताते हैं कि रोज़ाना फोन पर ऑर्डर आ रहे हैं और त्योहार के नज़दीक आते ही डिमांड में और इज़ाफा होने की उम्मीद है।
रोजगार और सामुदायिक लाभ
इस पहल का सबसे बड़ा सामाजिक असर यह है कि ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के अवसर बन रहे हैं। गोबर के संसाधन को जो पहले कचरे की तरह नज़रअंदाज़ किया जाता था, अब उससे कारगर रोजगार और आय सृजित हो रही है। अनुराग की योजना है कि आने वाले मौसम में पैकिंग, ब्रांडिंग और डिज़ाइनिंग पर विशेष ध्यान देकर बड़े पैमाने पर मार्केटिंग की जाए।जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी और युवाओं को स्वरोजगार मिलने की संभावना बढ़ेगी।इन जैविक मूर्तियों और दीयों का एक बड़ा फायदा यह है कि ये जलने पर भारी धुएँ या रासायनिक गैसें छोड़ती नहीं हैं। इस तरह ये न केवल घरों को रोशन करती हैं, बल्कि शहरों के वायु गुणों को भी संरक्षित रखती हैं। गौशाला का यह मॉडल यह दिखाता है कि पारंपरिक संसाधनों का स्मार्ट उपयोग कर के हम बड़े पैमाने पर पर्यावरण संरक्षण कर सकते हैं।
आगे की राह,पैकेजिंग से लेकर बड़े बाजार तक
अनुराग और उनकी टीम ने छोटे स्तर पर सफलता पाई है, पर उनका लक्ष्य बड़ा है आकर्षक पैकिंग, ब्रांडिंग, और ऑनलाइन सेलिंग के जरिए पूरे प्रदेश और फिर देश भर में इन उत्पादों को पहुंचाना। साथ ही वे चाहते हैं कि यह मॉडल दूसरे गांवों में भी अपनाया जाए ताकि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के और भी अवसर बनें।.
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