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HC का ताबड़तोड़ एक्शन 6 आदेशों को किया रद्द, SC-ST छात्रों के आरक्षण पर सुनाया बड़ा फैसला
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के चार मेडिकल कॉलेजों में SC-ST आरक्षण पर बड़ा फैसला सुनाया, 6 आदेश रद्द कर 2006 की व्यवस्था लागू करने का निर्देश दिया।
HC on SC-ST Reservation Case: उत्तर प्रदेश के चार सरकारी मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जालौन, कन्नौज, अंबेडकरनगर और सहारनपुर के मेडिकल कॉलेजों में नई काउंसलिंग के एकल पीठ के आदेश पर रोक लगा दी है। कोर्ट ने यूपी सरकार से एक हफ्ते में हलफनामा मांगा है, जिसमें यह सुनिश्चित किया जाए कि अगले शैक्षिक सत्र से इन कॉलेजों में 2006 की आरक्षण व्यवस्था के आधार पर ही प्रवेश दिए जाएंगे। यह फैसला उन हजारों छात्रों के लिए एक बड़ा झटका है, जिन्हें इन कॉलेजों में एडमिशन मिलने की उम्मीद थी, और यह यूपी में आरक्षण व्यवस्था को लेकर एक नई बहस छेड़ देगा।
HC का कड़ा रुख: '50% से ज्यादा आरक्षण नहीं'
गुरुवार को सुनाए गए अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा कि इन चार मेडिकल कॉलेजों में आरक्षण सीमा से अधिक दाखिला पाने वाले अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के छात्रों को अब दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर किया जाएगा। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगले सत्र से एससी-एसटी छात्रों को सिर्फ दो फीसदी ही आरक्षण मिलेगा, जो कि 2006 के आरक्षण अधिनियम के अनुरूप है।
यह फैसला यूपी सरकार की उस विशेष अपील के खिलाफ आया है, जिसमें एकल पीठ के आदेश को चुनौती दी गई थी। सरकार ने एकल पीठ के उस फैसले को रद्द करने की मांग की थी, जिसमें इन कॉलेजों में आरक्षण से संबंधित शासनादेशों को रद्द कर दिया गया था।
सरकार और याचिकाकर्ता आमने-सामने
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति मंजीव शुक्ला की खंडपीठ के समक्ष राज्य सरकार ने यह दलील दी थी कि सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी मामले के फैसले में यह स्पष्ट किया जा चुका है कि आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से बढ़ाई जा सकती है। हालांकि, न्यायालय इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुआ। वहीं, याचिकाकर्ता के वकील मोतीलाल यादव ने दलील दी कि इन मेडिकल कॉलेजों में राज्य सरकार के कोटे की कुल 85-85 सीटें हैं, जबकि सिर्फ 7-7 सीटें ही अनारक्षित श्रेणी के लिए रखी गई थीं। एकल पीठ ने 25 अगस्त को अपने फैसले में पाया था कि शासनादेशों के जरिए आरक्षित वर्ग के लिए 79 प्रतिशत से अधिक सीटें सुरक्षित की गई थीं, जो नियमों का उल्लंघन है। इसी आधार पर एकल पीठ ने सभी शासनादेशों को रद्द कर दिया था और नए सिरे से सीटें भरने का आदेश दिया था, जिसमें आरक्षण अधिनियम 2006 का सख्ती से पालन करने को कहा गया था।
क्या होगा छात्रों का भविष्य?
इस फैसले के बाद, उन एससी-एसटी छात्रों का भविष्य अधर में लटक गया है, जिन्हें इन कॉलेजों में 50% से अधिक आरक्षण के आधार पर प्रवेश मिला था। अब उन्हें दूसरे सरकारी मेडिकल कॉलेजों में ट्रांसफर किया जाएगा, जिससे न केवल छात्रों को परेशानी होगी, बल्कि एडमिशन प्रक्रिया में भी देरी होगी। यह मामला एक बार फिर से आरक्षण की सीमा और उसके कार्यान्वयन को लेकर एक नई बहस छेड़ देगा।
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