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गुरू बनाना जरूरी है? प्रेमानंद जी महाराज के विचार सुन भक्तों की खुल गयी आंखे
Premanand Ji Maharaj: गुरू पूर्णिमा के दिन एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से पूछ लिया कि गुरू बनाना जरूरी है? इस पर प्रेमानंद जी महाराज ने बेहद सहज भाव में जवाब देते हुए भक्त के मन की सभी शंकाओं का निराकरण किया।
Premanand Ji Maharaj
Premanand Ji Maharaj: संत प्रेमानंद जी महाराज अपने आश्रम में पहुंचने वाले सभी भक्तों के सवालों का बेहद सरल और सटीक जवाब देते हैं। गुरू पूर्णिमा के दिन ऐसे ही एक भक्त ने प्रेमानंद महाराज से पूछ लिया कि गुरू बनाना जरूरी है? इस पर प्रेमानंद जी महाराज ने बेहद सहज भाव में जवाब देते हुए भक्त के मन की सभी शंकाओं का निराकरण किया।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि हम जब भी किसी नई जगह घूमने जाते हैं, तो गाइड की आवश्यकता होती है। उसी तरह इस माया भरे संसार में भी भगवद् प्राप्ति के लिए गुरु की जरूरत होती है। बगैर गुरु के भवसागर से पार होना मुमकिन नहीं है। बिना गुरु कृपा के परमार्थ का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता। इस मार्ग पर बगैर संतों और गुरु के एक कदम भी चलना संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर आप संत की बात मानकर उस पर चलना शुरू कर दें, तो कल्याण निश्चित है। नाम जप करें और सत्संग सुनें, तो मार्ग प्रशस्त हो जाएगा।
प्रभावित होकर न बनाए गुरू
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि किसी से भी प्रभावित होकर गुरु नहीं बनाना चाहिए। गुण, रूप, विद्वत्ता देखकर या प्रवचन सुनने पर भी गुरु नहीं बनाना चाहिए। सर्वप्रथम भगवान को गुरु रूप में स्वीकार करें। भगवान से यह प्रार्थना करें कि हे कृष्ण, मैं आपको गुरुदेव के रूप में स्वीकार करता हूँ। यदि मुझे ज़रूरत पड़े तो आप ही मुझे मेरे गुरु के रूप में मिलें। प्रभु आपको स्वयं ही ऐसी जगह मिला देंगे जहाँ कभी संशय नहीं होगा।
गुरु बदलने से अपराध लगता है?
प्रेमानंद जी महाराज ने कहा कि गुरू बदलने से कोई अपराध नहीं लगेगा क्योंकि भगवद् प्राप्ति के लिए हम आगे बढ़ रहे हैं। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है कि अब तो आप फँस गए और गुरु बदलने से आपको अपराध लगे जाएगा।
बगैर गुरु पूजा-पाठ कर सकते हैं?
प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि जब हम बगैर गुरु के भजन-साधना करते हैं, तो अंतर्मन में यह भावना उत्पन्न होती है कि कोई राह दिखाने वाला होना चाहिए। प्रश्न यह भी मन में आता है कि हम यहाँ से आगे कैसे बढ़ें। तब हरि गुरु रूप में आते हैं और मार्गदर्शन करते हैं। भगवान के नाम जप, पाठ या सेवा व्यर्थ नहीं जाती। बिना गुरु के भजन करने का फल गुरु की प्राप्ति होती है।
गुरु के साथ कैसा हो रिश्ता?
प्रेमानंद जी महाराज ने बताया कि जब भी गुरु डाँटें या प्रतिकूल व्यवहार करें, तो यह समझ लेना चाहिए कि उनकी कृपा दृष्टि है। जब सम्मान मिले, तो यह सोचें कि कोई अपराध तो नहीं हो गया? गुरु का प्रेम कठोरता में ही प्रकट होता है, जिसे शिष्य समझ ही नहीं पाते हैं। गुरू की डांट हमेशा शिष्य के कल्याण के लिए होता है। इसीलिए सच्चे शिष्य कभी विचलित नहीं होते।
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