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Jhansi News: जागरूक बने और अपने बच्चे को डिप्थीरिया की बीमारी से बचाए
Jhansi News: डॉक्टर ओम शंकर चौरसिया एचओडी, पीडियाट्रिक मलबा मेडिकल कॉलेज, के अनुसार इस बीमारी की शुरुआत गले में सक्रमण के साथ होती है।
जागरूक बने और अपने बच्चे को डिप्थीरिया की बीमारी से बचाए (photo: social media )
Jhansi News: भारत वर्ष में कई बच्चे डिप्थीरिया या गला घोटू की बीमारी की चपेट में आ जाते हैं। यह बीमारी गले को संक्रमित करने के बाद आहार नाल तक फेल जाती है समय से इलाज न मिलने पर इसमें जान का खतरा साबित हो सकता है ।
डॉक्टर ओम शंकर चौरसिया एचओडी, पीडियाट्रिक मलबा मेडिकल कॉलेज, के अनुसार इस बीमारी की शुरुआत गले में सक्रमण के साथ होती है। शुरुआती लक्षण में गले में दर्द , खिच खिच, खाना निगलने में परेशानी, सिर दर्द, बुखार होता है एवं सक्रमण बड़ने पर तीन से चार के अंदर गले में सूजन, आवाज मे भारीपन, सांस लेने में तकलीफ बढ़ती चली जाती है । ऐसे लक्षण दिखने पर तत्काल अपने नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र अथवा मेडिकल कॉलेज में संपर्क करें।
दो बच्चों की मृत्यु
मेडिकल कॉलेज की रिपोर्ट के अनुसार झांसी जिले में अभी तक चार संक्रमित बच्चों का उपचार किया जा चुका है जिसमे से दो बच्चों की मृत्यु हो चुकीं है । ध्यान रखें गला घोटू की बीमारी का बचाव केवल टीकाकरण है। यह बीमारी उन बच्चों मे जल्दी फैलती है जिनको टीके नहीं लगे हैं और अंत में यह बीमारी जानलेवा साबित हो सकती है। इस बीमारी से चपेट में आने वाले बच्चों को एंटी डिप्थीरिया टॉक्सिन दी जाती है जो की मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर सुधाकर पांडेय एवं जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉक्टर रवि शंकर के द्वारा उपलब्ध कराया जाता है एवं डब्ल्यूएचओ की टीम के माध्यम से तुरंत ही इसे ग्रसित बच्चों के उपचार हेतु मेडिकल कॉलेज में भेजा जाता है, तत्पश्चात मेडिकल डॉक्टर्स की टीम द्वारा डिप्थीरिया एंटीटॉक्सिन देकर बच्चे का इलाज किया जाता है।
जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉक्टर रवि शंकर के अनुसार इस बीमारी का एक मात्र बचाव है टीकाकरण। अतः अपने बच्चे का टीकाकरण जन्म के बाद 6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह, 16 महीना, 5 साल, 10 साल और 16 साल पर अवश्य करवाए । गर्भवती स्त्री टिटनस डिप्थीरिया,(टीडी)के दो टीके अवश्य लगवाए। स्वास्थ्य विभाग के जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉक्टर रवि शंकर एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन की सर्विलेंस मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर जूही गोयल एवं टीम द्वारा इस बीमारी की बड़ी ही गहन तरीके से निगरानी की जाती है एवं कोई भी संक्रमित बच्चा मिलने पर तत्काल इसका उपचार कराया जाता है एवं 10 हजार आबादी पर सर्वे कराकर समुदाय में सस्पेक्टेड बच्चों की खोज की जाती है । ग्रसित परिवार को दबाई उपलब्ध कराई जाती है और जो बच्चे टीका से छूट जाते है उनका टीकाकरण अतिरिक्त सत्र लगाकर करवाया जाता है।
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