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Kanpur News: जिसे पिता ने ठुकराया, उसे प्रशासन ने अपनाया - नन्हीं कशिश को मिला मां का घर
Kanpur News: आठ साल की नन्हीं कशिश की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो पढ़ने और सुनने वालों की आंखें नम कर देगी। मां को वह पहले ही खो चुकी थी, और उसके पिता ने भी उसे अपनाने से इनकार कर दिया था।
कानपुर समाचार
Kanpur News: कहते हैं कि जब कोई अपना साथ छोड़ दे, तो कभी-कभी कोई अजनबी ही मसीहा बन जाता है। आठ साल की नन्हीं कशिश की कहानी कुछ ऐसी ही है, जो पढ़ने और सुनने वालों की आंखें नम कर देगी। मां को वह पहले ही खो चुकी थी, और उसके पिता ने भी उसे अपनाने से इनकार कर दिया था। लेकिन, उम्मीद की एक नई किरण जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह की मानवीय पहल से जगी, जिसने इस मासूम के जीवन को एक नई दिशा दे दी।
बीते सप्ताह, वृद्ध चंद्रभान पांडेय अपनी नातिन कशिश को लेकर जनता दर्शन में जिलाधिकारी के पास पहुंचे। उनकी आंखों में चिंता और आवाज़ में थरथराहट थी। उन्होंने जिलाधिकारी को बताया कि उनकी बेटी की मौत के बाद कशिश अनाथ हो गई है, और उसके पिता ने दूसरी शादी कर उसे अपनाने से इनकार कर दिया है। चंद्रभान ने बताया कि वर्ष 2019 में उनकी बेटी को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत एक फ्लैट मिला था, और वे चाहते थे कि अब वह आशियाना कशिश के नाम हो जाए, ताकि उसका भविष्य सुरक्षित हो सके।
हालांकि, कानूनी अड़चनों के कारण वे हर बार निराश होकर लौट जाते थे। जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने उनकी पीड़ा को समझा और बिना देरी किए तुरंत कार्रवाई के निर्देश दिए। जिला प्रोबेशन अधिकारी ने इस मामले को बाल कल्याण समिति तक पहुंचाया, और किशोर न्याय अधिनियम के तहत चंद्रभान को कशिश का विधिक संरक्षक घोषित किया गया। इसके बाद, कानपुर विकास प्राधिकरण ने फ्लैट के नामांतरण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। एक माह के भीतर कशिश को कानूनी रूप से उसकी मां का घर मिल जाएगा—वह घर जिसमें उसकी यादें और ममता की खुशबू बसी है।
इतना ही नहीं, जिलाधिकारी ने कशिश को मुख्यमंत्री बाल सेवा योजना से जोड़ने के भी आदेश दिए हैं, जिससे उसे 18 वर्ष की आयु तक ₹2500 प्रति माह की आर्थिक सहायता मिलेगी। साथ ही, उसकी पढ़ाई की व्यवस्था भी सुनिश्चित कर दी गई है। जिलाधिकारी जितेंद्र प्रताप सिंह ने कहा, "हर निराश्रित बच्चे को जीने का हक है। प्रशासन की जिम्मेदारी है कि कोई बच्चा असहाय न रहे।" नन्हीं कशिश की आंखों में आज उम्मीद की चमक है। शायद उसे मां की गोद नहीं मिली, पर उसका अपना घर अब उसके पास है—हमेशा के लिए।
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