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सियासत का सबसे बड़ा पर्दाफाश! 119 पार्टियों को चुनाव आयोग का झटका, 94 हुईं 'गायब'
Lucknow News: चुनाव आयोग की बड़ी कार्रवाई! 119 राजनीतिक दलों को नोटिस, 94 हुए गायब, फर्जी पार्टियों पर सख्ती, अब नहीं चलेगा कागज़ी राजनीति का खेल।
Lucknow News: देश की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आ गया है। हर चुनाव में हम सैकड़ों दलों के नाम सुनते हैंकुछ बड़े कुछ छोटे कुछ नामालूम से। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में ऐसे भी राजनीतिक दल हैं जो न तो चुनाव लड़ते हैं न कोई गतिविधि करते हैं और न ही सामने आते हैं? अब चुनाव आयोग ने इन 'छुपे रुस्तमों' की कुंडली खोल दी है।
चुनाव आयोग की बड़ी कार्रवाई
लखनऊ से आई इस बड़ी खबर ने राजनीतिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। चुनाव आयोग ने पूरे 119 राजनीतिक दलों को नोटिस भेजा है। वजह? इन दलों ने पिछले 6 सालों में एक भी चुनाव नहीं लड़ा और न ही कोई गतिविधि दर्ज कराई। आयोग को शक है कि ये दल सिर्फ कागजों पर जिंदा हैंजैसे भूतिया संस्थाएं। चुनाव आयोग ने साफ तौर पर कहा है कि जो दल सक्रिय नहीं हैं और न ही चुनावी प्रक्रिया में भाग लेते हैं उनके अस्तित्व पर सवाल उठना लाज़िमी है। ऐसे में इन दलों को सफाई देने का मौका दिया गया लेकिन जो हुआ वह और भी चौंकाने वाला था।
सिर्फ 25 दल पहुंचे बाकी 94 ने तो झाँक कर भी नहीं देखा
आयोग ने बुलाया था 119 दलों को लेकिन उसमें से सिर्फ 25 के प्रतिनिधि ही पहुंचे। बाकी 94 ने तो मानो नोटिस को हवा में उड़ा दिया। न कोई दस्तावेज न कोई जवाब और न कोई सफाई। अब सवाल यह है कि क्या ये 94 राजनीतिक दल वाकई मौजूद हैं या सिर्फ किसी काले खेल का हिस्सा हैं?
क्या है निष्क्रिय राजनीतिक दलों का रहस्य?
ये वो दल हैं जो रजिस्ट्रेशन तो करवा लेते हैं लेकिन ना कभी चुनाव लड़ते हैं ना जनसभाएं करते हैं और ना ही कोई संगठनात्मक गतिविधि। ऐसे दलों की उपयोगिता पर कई बार सवाल उठते रहे हैं। चुनाव आयोग को संदेह है कि इनमें से कई दल टैक्स चोरी फर्जी चंदा दिखाने या काले धन को सफेद करने जैसे गलत कामों में भी इस्तेमाल हो सकते हैं। सिर्फ लखनऊ ही नहीं बल्कि पूरे देश में फैले ऐसे दलों की संख्या सैकड़ों में है। कई बार इन दलों का इस्तेमाल सिर्फ चुनावी चंदे को दिखाने आय को छुपाने या नाम मात्र की राजनीतिक पहचान बनाए रखने के लिए किया जाता है।
अब होगी बड़ी छंटनी
सूत्रों की मानें तो चुनाव आयोग अब इन 94 दलों के रजिस्ट्रेशन रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर सकता है। यदि दस्तावेज पेश नहीं किए गए और न ही इन दलों की सक्रियता सिद्ध हुई तो जल्द ही इन पर ताले लग सकते हैं। चुनाव आयोग का यह कदम न केवल राजनीतिक पारदर्शिता की दिशा में बड़ा प्रयास है बल्कि आने वाले समय में चुनावी ईमानदारी की एक मजबूत बुनियाद भी बन सकता है।
जनता को चाहिए पारदर्शिता न कि कागज़ी दल
अब जब देश में चुनावी माहौल गर्म हो रहा है और जनता विकास और ईमानदारी की राजनीति की उम्मीद कर रही है ऐसे में यह साफ हो जाना ज़रूरी है कि कौन सा दल असली है और कौन सिर्फ रजिस्ट्रेशन करवाकर ‘राजनीति’ की आड़ में कुछ और ही खेल खेल रहा है। चुनाव आयोग का यह कदम उन लाखों नागरिकों के लिए उम्मीद की किरण है जो चाहते हैं कि देश में सिर्फ वही दल सक्रिय रहें जो वाकई जनता के लिए काम करना चाहते हैं।
अब नहीं चलेगा 'कागज़ी राज'
राजनीति में अब सिर्फ नाम का खेल नहीं चलेगा। आयोग की सख्ती से उन सभी दलों की नींव हिल गई है जो सिर्फ दिखावे के लिए खुद को 'राजनीतिक पार्टी' कहते थे। देश अब बदलाव के दौर में है और ये छंटनी उसी दिशा में उठाया गया एक जरूरी और साहसी कदम है।
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