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'सड़क किनारे तड़प रही गर्भवती विछिप्त महिला... सिस्टम ने छोड़ा साथ'! मिली ममता की 'छाव', लखनऊ पुलिस की मदद से बचीं दो जिंदगियां
Lucknow News: लखनऊ के दसहरी चौराहे पर एक विक्षिप्त गर्भवती महिला को सड़क किनारे प्रसव पीड़ा में तड़पते देख किसी ने नजरें फेर लीं, लेकिन भारतीय किसान मजदूर यूनियन (दसहरी संगठन) की जिला अध्यक्ष ममता राजपूत ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए उसे अस्पताल पहुंचाने की पहल की।
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Lucknow News: लखनऊ के दसहरी चौराहे पर एक विक्षिप्त गर्भवती महिला को सड़क किनारे प्रसव पीड़ा में तड़पते देख किसी ने नजरें फेर लीं, लेकिन भारतीय किसान मजदूर यूनियन (दसहरी संगठन) की जिला अध्यक्ष ममता राजपूत ने संवेदनशीलता का परिचय देते हुए उसे अस्पताल पहुंचाने की पहल की। जब सरकारी अस्पतालों ने विक्षिप्त कहकर उसे भर्ती करने से मना कर दिया, तब दुबग्गा पुलिस की तत्परता, 108 एंबुलेंस की मदद और ममता की मानवीयता से यह महिला मेडिकल कॉलेज पहुंची, जहां घंटों संघर्ष के बाद एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। यह घटना पुलिस की भूमिका, सामाजिक ज़िम्मेदारी और सिस्टम की उदासीनता को उजागर करती है। अब सवाल ये है कि इस नवजात और विक्षिप्त मां का भविष्य क्या होगा? कौन बनेगा इनकी ढाल?
ममता बनीं 'मसीहा', जब सरकारी तंत्र ने मुंह मोड़ा
ये पूरी घटना बीते रविवार की है। शाम करीब 4 बजे दसहरी संगठन की जिला अध्यक्ष ममता राजपूत प्रदेश कार्यालय लौट रहीं थीं, तभी उन्होंने एक विक्षिप्त महिला को सड़क किनारे कराहते देखा। महिला गर्भवती थी और प्रसव पीड़ा में चीख रही थी। ममता ने बिना एक पल गंवाए उसे पास के सरकारी अस्पताल पहुंचाया लेकिन डॉक्टरों ने यह कहकर भर्ती करने से मना कर दिया कि महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ है।
इससे विचलित होकर ममता महिला को संगठन के कार्यालय लाईं और वहां से 108 एंबुलेंस व दुबग्गा थाना प्रभारी अभिनव वर्मा को सूचना दी। इंसानियत की इस लड़ाई में उन्होंने हार नहीं मानी और यहीं से शुरू हुआ जिंदगियों को बचाने का असली संघर्ष।
दुबग्गा पुलिस बनी रक्षक, मेडिकल कॉलेज में हुआ सुरक्षित प्रसव
दुबग्गा थाना प्रभारी की सूचना पर चौकी प्रभारी संतोष सिंह मौके पर टीम सहित पहुंचे। महिला को पहले काकोरी सीएचसी ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने गंभीर स्थिति देख मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया। लेकिन वहां की गार्ड व मेडिकल स्टाफ ने बिना पुलिस की लिखित अनुमति के भर्ती से इनकार कर दिया। ममता और उनकी टीम ने एक बार फिर दुबग्गा पुलिस से संपर्क किया।
इस पर प्रभारी ने तुरंत फोर्स भेजकर कागजी कार्यवाही पूरी करवाई। रात करीब 9 बजे मेडिकल कॉलेज में छह डॉक्टरों की टीम ने महिला का सफल प्रसव कराया। महिला ने एक स्वस्थ कन्या को जन्म दिया। यह पुलिस की समयबद्ध मदद और डॉक्टरों की तत्परता का ही परिणाम था कि दो जिंदगियां बच सकीं।
सबसे बड़ा सवाल: अब कौन निभाएगा जिम्मेदारी?
जहां एक ओर ममता राजपूत और पुलिस की कार्रवाई इंसानियत का बेहतरीन उदाहरण बनी, वहीं अब एक नई चुनौती सामने है कि इस नवजात बच्ची और मानसिक रूप से अस्वस्थ मां का भविष्य क्या होगा? क्या यह बच्ची किसी अनाथालय में जाएगी? क्या सरकार या कोई सामाजिक संस्था आगे आएगी?
सबसे गंभीर बात यह कि आखिर वह दरिंदा कौन है, जिसने इस विक्षिप्त महिला को अपनी हवस का शिकार बनाया और लावारिस छोड़ दिया? इस मामले में पुलिस को डीएनए जांच, आसपास के सीसीटीवी फुटेज और अस्पताल रिकॉर्ड से आरोपित की पहचान करनी चाहिए। यह सिर्फ एक केस नहीं, बल्कि समाज के चेहरे पर लगा हुआ कलंक है, जिसे हटाने की जिम्मेदारी अब हम सबकी है।
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