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Lucknow News: CSIR-CDRI में विशेष व्याख्यान: डॉ. सूर्यकांत ने वायु-प्रदूषण के खतरों पर कही बड़ी बात
डॉ. सूर्यकांत ने अपने संबोधन में वायु प्रदूषण के खतरों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मानव जीवन के लिए ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं
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Lucknow Today News: सीएसआईआर–सीडीआरआई लखनऊ के सभागार में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए बड़ी चुनौती विषय पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान आयोजित किया गया। इस अवसर पर प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ. सूर्यकांत, श्वास रोग विभाग के प्रोफेसर और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के विभागाध्यक्ष उपस्थित थे। बता दें कि डॉ सूर्यकांत नेशनल कोर कमेटी सदस्य भी हैं और डॉक्टर्स फॉर क्लीन एयर एंड क्लाइमेट एक्शन के सदस्य हैं।
इस खास मौके पर डॉ. सूर्यकांत ने अपने संबोधन में वायु प्रदूषण के खतरों पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि मानव जीवन के लिए ऑक्सीजन और हीमोग्लोबिन अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, लेकिन प्रदूषित वायु में सांस लेने से यह प्रदूषित ऑक्सीजन रक्त वाहिकाओं के माध्यम से शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुँचकर कई गंभीर बीमारियों का कारण बनती है।
उन्होंने वायु प्रदूषण से होने वाली विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं पर चर्चा की, जैसे कि निमोनिया, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), और फेफड़ों के कैंसर। साथ ही, उन्होंने पैसिव स्मोकिंग (परोक्ष धूम्रपान) के खतरों पर भी जोर दिया, जिसमें कहा, "सिगरेट का केवल 30 प्रतिशत धुआं पीने वाला व्यक्ति अंदर लेता है, बाकी 70 प्रतिशत धुआं वातावरण को प्रदूषित कर आसपास के लोगों को नुकसान पहुंचाता है।
बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए प्रदूषण के खतरे
डॉ. सूर्यकांत ने बच्चों और गर्भवती महिलाओं को प्रदूषण के प्रति सबसे संवेदनशील बताया। उन्होंने बताया कि वायु प्रदूषण बच्चों में कुपोषण, मोटापा और विकास अवरोध (स्टंटिंग) जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं के लिए प्रदूषण और भी अधिक खतरनाक हो सकता है, जिससे गर्भ में शिशु का विकास रुकना (IUGR) और जन्मजात बीमारियाँ हो सकती हैं। डॉ. सूर्यकांत ने वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का भी उल्लेख किया, जिनमें वाहन उत्सर्जन, खुले में कचरा जलाना, औद्योगिक धुआं, निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल, और घरों में लकड़ी या कोयला जलाना शामिल हैं।
व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर उठाए जाने वाले कदम
इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद वैज्ञानिकों, तकनीकी और गैर-तकनीकी कर्मचारियों से वायु प्रदूषण को कम करने के लिए व्यक्तिगत और संस्थागत स्तर पर कुछ उपायों पर चर्चा की। इनमें साइकिल चलाने और पैदल आने की पहल, कागज के कम उपयोग, वाहन पूलिंग (कार शेयरिंग), दिवाली और अन्य त्योहारों पर पटाखों का उपयोग न करना, और बिजली की बचत करने की आदतें अपनाना शामिल हैं।
हिन्दी भाषा और विज्ञान का महत्व
इस अवसर पर आयोजित हिंदी कार्यशाला में डॉ. सूर्यकांत ने वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों का भी उल्लेख किया, जिनमें वाहन उत्सर्जन, खुले में कचरा जलाना, औद्योगिक धुआं, निर्माण कार्यों से निकलने वाली धूल, और घरों में लकड़ी या कोयला जलाना शामिल हैं। उन्होंने हिंदी भाषा के महत्व पर भी जोर दिया, उन्होंने कहा कि बच्चों को अपनी मातृभाषा में शिक्षा देने से उनकी समझ और अभिव्यक्ति की क्षमता बढ़ती है और सांस्कृतिक पहचान मजबूत होती है। इसके साथ ही उन्होंने वैज्ञानिकों से समाज के लिए उपयोगी विषयों पर हिंदी में लेखन करने का आह्वान किया।
सीडीआरआई में पर्यावरण जागरूकता का संदेश
कार्यक्रम के समापन पर सभी उपस्थित व्यक्तियों ने वायु प्रदूषण कम करने और विशेष अवसरों पर वृक्षारोपण करने की सामूहिक प्रतिज्ञा ली। इस प्रतिज्ञा से संस्थान की पर्यावरण संरक्षण और जनस्वास्थ्य के प्रति प्रतिबद्धता और भी सुदृढ़ हुई। वहीं कार्यक्रम के अंत में डॉ. रश्मि राठौर ने डॉ. सूर्यकांत का आभार व्यक्त किया और कहा कि उनके द्वारा दिए गए सुझाव हमें वायु प्रदूषण को कम करने और सतत अनुसंधान की दिशा में कार्य करने के लिए प्रेरित करेंगे।
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