KGMU News: अब सेंथेटिक ग्राफ्ट भरेगा घाव

Lucknow News: खिलाडियों को अब इस सुविधा से ज़्यादा मदद मिलेगी

Shubham Pratap Singh
Published on: 30 Aug 2025 8:56 PM IST
Lucknow News
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KGMU ( File Photo)

Lucknow News: अब लिगामेंट फ्रैक्चर होने पर सेंथेटिक ग्राफ्ट से मरीजों के गहरे जख्म (घाव) भरे जाएंगे। इसके लिए मरीजों के शरीर के दूसरे हिस्से से टिश्यू व लिंगामेंट निकालकर ऑपरेशन करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ऐसा कहना है उत्तर प्रदेश आयुर्विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.अजय सिंह का।

अटल बिहारी वाजपेई सांइटिफिक कन्वेंशन सेंटर में केजीएमयू हड्डी रोग विभाग की तरफ से 8वां आर्थोस्कोपी कॉन्क्लेव हुआ। कुलपति डॉ. अजय सिंह ने बताया कि कैंसर, बर्न व हादसे की वजह से शरीर में गहरे जख्म हो जाते हैं। फ्रैक्चर के आस-पास की मांसपेसियां भी क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। जिन्हें ऑपरेशन कर सुधारा नहीं जा सकता है। अभी तक मरीज के पैर व शरीर के दूसरे अंगों से लिगामेंट व मांसपेसियां लेकर घाव में प्रत्यारोपित किया जा रहा है। इससे मरीजों को काफी दिक्कत होती है। शरीर में दो जख्म हो जाते हैं।

सेंथेटिक ग्राफ्ट शरीर आसानी से कर लेता है ग्रहण

केजीएमयू हड्डी रोग विभागाध्यक्ष कॉन्क्लेव के आयोजक अध्यक्ष डॉ. आशीष कुमार ने बताया कि अब सेंथेटिक ग्राफ्ट से घाव को आसानी से भर सकेगा। खास बात यह है कि इसे शरीर आसानी से ग्रहण कर लेता है। संक्रमण की आशंका कम रहती है। घाव वाले हिस्से में आसानी से टिश्यू व लिंगामेंट बनने लगते हैं। मरीज का घाव जल्द ठीक होने की उम्मीद बढ़ जाती है। छह से आठ हफ्ते में रिकवरी तेज जाती है। इस दौरान डॉक्टर की सलाह पर कसरत भी करने की सलाह दी जाती है। ताकि खून की दौड़ान में किसी भी प्रकार की बाधा न आए। उन्होंने बताया कि सेंथेटिक ग्राफ्ट 18 साल से कम उम्र के बच्चों और बुजुर्गों में अधिक प्रभावी है। क्योंकि इस उम्र में शरीर में फैट कम हो जाता है। मांस भी कम होता है।

जल्द ठीक होगी चोट

डॉ. आशीष कुमार ने बताया कि आर्थोस्कोपी से खिलाड़ियों की चोटों का सटीक इलाज मुमकिन है। खेलकूद के दौरान खिलाड़ियों को चोट लग जाती है। इसमें खिलाड़ी का जल्द इलाज कर ठीक करना चुनौती पूर्ण होता है। आर्थोस्कोपी से जोड़ के भीतर की समस्याओं का सटीक निदान किया जा सकता है। क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत करने में मदद मिलती है। जिससे भविष्य में होने वाली समस्याओं का खतरा भी कम हो जाता है। उन्होंने बताया कि आर्थोस्कोपी में मरीज को कम दर्द होता है। तेजी से रिकवरी होती है। कम संक्रमण का जोखिम, न्यूनतम निशान और जोड़ के कार्य को संरक्षित करता है। जिससे एथलीट जल्दी और सुरक्षित रूप से खेल में वापसी कर सकते हैं।

नई तकनीक

डॉ. कुमार शांन्तनु ने बताया कि कॉन्क्लेव में लाइव कैडेवरिक सर्जरी सत्र हुआ। जिसमें विशेषज्ञ सर्जन ने सात आर्थ्रोस्कोपिक ऑपरेशन प्रदर्शित किए। 100 प्रतिभागियों ने कैडवरिक कार्यशाला में हिस्सा लिए। नई तकनीक सीखी। डॉ. शांतनु ने बताया कि रोटेटर कफ चोटें जो कंधे में दर्द और विकलांगता का आम कारण हैं। अब बायोडिग्रेडेबल पैच की मदद से इलाज किया जा रहा है। ये पैच टेंडन की प्राकृतिक भरपाई में सहायक होते हैं। धीरे-धीरे शरीर में घुल जाते हैं। बार-बार फटने की आशंका को कम करते हैं। स्थायी इम्प्लांट्स से होने वाली जटिलताओं से भी बचाता है।

नहीं पड़ेगी पूरा लिंगामेंट बदलने की जरूरत

डॉ. शाहवली उल्ला व डॉ. मयंक महेंद्र ने बताया कि घुटने की चोटों में एंटीरियर क्रूसिएट लिगामेंट (एसीएल) ऑगमेंटेशन को एक आधुनिक तकनीक है। इसमें पूरे लिगामेंट को बदलने की जरूरत नहीं होती है। बल्कि मौजूदा लिगामेंट को मजबूत किया जाता है। यह न केवल प्राकृतिक कोशिकाओं को सुरक्षित रखता है बल्कि खिलाड़ियों को जल्दी मैदान में लौटने का अवसर भी देता है। कार्यक्रम का शुभारंभ कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद ने किया। इस मौके पर एनॉटमी विभाग के अध्यक्ष डॉ. नवनीत चौहान, प्रवक्ता डॉ. केके सिंह, ब्लड एंड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष डॉ. तूलिका चन्द्रा, प्लास्टिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. विजय कुमार, डॉ. ब्रजेश मिश्र, पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग के अध्यक्ष डॉ. जेडी रावत, डॉ. कुमार शांतनु समेत अन्य डॉक्टर मौजूद रहे।

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