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KGMU का कमाल! महज 5MM चीरा लगाकर कर दिया घुटने का रिप्लेसमेंट, 24 घंटे में महिला मरीज को दी नई जिंदगी

Lucknow News: KGMU के डॉक्टरों ने घुटने के दर्द से जूझ रही महिला का महज 5mm चीरे में सफल पार्शियल नी रिप्लेसमेंट कर मेडिकल चमत्कार कर दिखाया। ऑपरेशन के 24 घंटे के अंदर ही मरीज को अस्पताल से छुट्टी मिल गई। यह तकनीक मरीज को प्राकृतिक चाल और इंडियन स्टाइल में बैठने की सुविधा देती है।

Hemendra Tripathi
Published on: 23 July 2025 7:20 PM IST (Updated on: 23 July 2025 7:20 PM IST)
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KGMU Lucknow does partial knee replacement with 5mm cut patient walks out in 24 hours

Lucknow News: लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के डॉक्टरों ने एक अनोखा और प्रभावशाली कारनामा कर दिखाया है। यहां के लिंब सेंटर में पहली बार पार्शियल नी रिप्लेसमेंट (Partial Knee Replacement) की अत्याधुनिक तकनीक से महिला मरीज का सफल ऑपरेशन किया गया, जिसमें सिर्फ 5 मिलीमीटर का चीरा लगाया गया और ऑपरेशन के 24 घंटे के भीतर ही मरीज को पूरी तरह फिट घोषित कर दिया गया। खास बात ये है कि इस प्रक्रिया के बाद मरीज न केवल सामान्य जीवन जी सकती है, बल्कि वह आराम से बैठने, स्पोर्ट्स एक्टिविटीज और इंडियन वॉशरूम का भी उपयोग कर सकती है। यह यूपी के सरकारी मेडिकल संस्थानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानी जा रही है।

KGMU में पहली बार पार्शियल नी रिप्लेसमेंट की सफलता

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ स्थित KGMU (किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी) एक बार फिर चिकित्सा क्षेत्र में क्रांतिकारी उपलब्धि के लिए सुर्खियों में है। यहां के लिंब सेंटर में घुटनों के तेज और असहनीय दर्द से जूझ रही महिला का पार्शियल नी रिप्लेसमेंट सफलतापूर्वक किया गया है। यह प्रदेश के किसी सरकारी अस्पताल में पहली बार हुआ है।

महज 5MM का चीरा, 24 घंटे में मिली छुट्टी

इस प्रक्रिया की सबसे खास बात यह रही कि मरीज के घुटने में केवल 5 मिलीमीटर का चीरा लगाया गया और ऑपरेशन के महज 24 घंटे के भीतर उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। पारंपरिक नी रिप्लेसमेंट के मुकाबले यह तकनीक बेहद कम इनवेसिव है, जिससे रिकवरी भी बेहद तेज होती है।

मरीज की लाइफस्टाइल में नहीं आता कोई बड़ा बदलाव

ऑपरेशन करने वाले KGMU के प्रोफेसर डॉ. शैलेंद्र सिंह का कहना है कि यह तकनीक मरीजों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। पार्शियल नी रिप्लेसमेंट के बाद मरीज पलथी मारकर बैठ सकता है, अकड़ू बैठ सकता है, भारतीय स्टाइल टॉयलेट का उपयोग कर सकता है और यहां तक कि स्पोर्ट्स जैसी गतिविधियों में भी हिस्सा ले सकता है। उनका कहना है कि इस तकनीक से मरीज को घुटने में नेचुरल फीलिंग बनी रहती है और वह सामान्य जीवन जीने में सक्षम होता है।

पारंपरिक रिप्लेसमेंट से कैसे अलग है यह प्रक्रिया?

पारंपरिक नी रिप्लेसमेंट में पूरे घुटने के जोड़ों को बदला जाता है, जबकि पार्शियल नी रिप्लेसमेंट में केवल घिस चुके हिस्से को ही बदला जाता है। इससे सर्जरी का समय, ब्लड लॉस और रिकवरी टाइम बहुत कम हो जाता है। मरीज को चलने, बैठने और रोजमर्रा की गतिविधियों में परेशानी नहीं होती।

सरकारी अस्पतालों में हाईटेक तकनीक की बड़ी उपलब्धि

अब तक यह तकनीक आमतौर पर निजी और महंगे अस्पतालों में ही उपलब्ध थी, लेकिन अब सरकारी अस्पताल KGMU में इस तरह की हाईटेक सर्जरी का सफल प्रयोग हुआ है। यह उपलब्धि खास तौर पर ऐसे मरीजों के लिए राहत भरी खबर है, जो आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। डॉ. शैलेंद्र सिंह का कहना है कि आने वाले समय में यह तकनीक और अधिक सामान्य होगी और अन्य सरकारी संस्थानों में भी इसका विस्तार किया जाएगा।

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