Mahoba News: नागपंचमी पर लल्लू खां मेमोरियल दंगल बना हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, पहलवानी और भाईचारे का दिखा अनोखा संगम

Mahoba News: नागपंचमी के पावन अवसर पर आयोजित लल्लू खां मेमोरियल कुश्ती प्रतियोगिता एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल बनकर सामने आई।

Imran Khan
Published on: 29 July 2025 12:57 PM IST
Mahoba News:  नागपंचमी पर लल्लू खां मेमोरियल दंगल बना हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल, पहलवानी और भाईचारे का दिखा अनोखा संगम
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Mahoba wrestling event

Mahoba News: भटीपुरा मोहल्ले में नागपंचमी के पावन अवसर पर आयोजित लल्लू खां मेमोरियल कुश्ती प्रतियोगिता एक बार फिर हिंदू-मुस्लिम एकता की अनूठी मिसाल बनकर सामने आई। महोबा केसरी असलम पहलवान की सरपरस्ती में पिछले 41 वर्षों से यह परंपरागत दंगल लगातार आयोजित किया जा रहा है, जिसमें हर वर्ष सौहार्द और खेल भावना की झलक देखने को मिलती है।

मिट्टी के अखाड़े में जब युवा पहलवानों ने जोर आजमाइश की, तो सैकड़ों दर्शकों का उत्साह देखने लायक था। प्रतियोगिता में हिंदू और मुस्लिम समाज से जुड़े 24 से अधिक नवयुवक पहलवानों ने भाग लिया और अपने हुनर का प्रदर्शन किया।

लखनऊ से आए पहलवान धीरेंद्र विक्रम ने बताया कि वह असलम पहलवान से कुश्ती की बारीकियां सीख रहे हैं। उन्होंने कहा, "यहां धर्म नहीं, मेहनत और खेल अहमियत रखते हैं।" यही वजह है कि यह दंगल महज एक खेल आयोजन न होकर, सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक बन गया है। यहां पहलवान न सिर्फ साथ अभ्यास करते हैं, बल्कि एक-दूसरे को प्रोत्साहित भी करते हैं।

अखाड़े की समस्याएं – जरूरी है प्रशासनिक ध्यान

हालांकि, इस ऐतिहासिक अखाड़े को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। बरसात के मौसम में अखाड़े में पानी भर जाता है और कच्चा रास्ता अभ्यास में बाधा उत्पन्न करता है। पहलवानों ने प्रशासन से अखाड़े की बाउंड्री, जल निकासी और पक्के रास्ते की मांग की है, जिससे अभ्यास में किसी तरह की रुकावट न आए।

रजनीतिक व सामाजिक सराहना

इस आयोजन में समाजवादी पार्टी के ज़िला अध्यक्ष शोभा लाल यादव और नगर अध्यक्ष रोशन अली मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। शोभा लाल यादव ने कहा, “असलम पहलवान ने महोबा का नाम रोशन किया है और अब नई पीढ़ी को प्रशिक्षित कर रहे हैं।” वहीं, रोशन अली ने इस आयोजन को भाईचारे और परंपरा का प्रतीक बताया।असलम पहलवान ने बताया कि इस अखाड़े से जुड़े कई पहलवान राज्य, राष्ट्रीय और यहां तक कि ओलंपिक स्तर तक पहुंच चुके हैं, लेकिन शासन से आज तक कोई सहयोग नहीं मिला। बावजूद इसके, यह अखाड़ा आज भी परंपरा, खेल और एकता का प्रतीक बना हुआ है।

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