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Lakhimpur Kheri News: ..कैसे भूलेंगे वो मैदान रसूले अरबी! बज़्म फ़रोगे अदब ने मोहर्रम में इमाम हुसैन की शान में किया मुशायरे का आयोजन

Lakhimpur Kheri News: लखीमपुर खीरी में मोहर्रम के मौके पर बज़्म फ़रोगे अदब ने मुशायरे का आयोजन किया, जिसमें शायरों ने इमाम हुसैन की शान में कलाम पेश किए।

Sharad Awasthi
Published on: 14 July 2025 8:34 PM IST
How will the field be forgotten by the Prophet Arabic! Bazm Faroge Adab organizes Mushayre in honor of Imam Hussain at Moharram
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कैसे भूलेंगे वो मैदान रसूले अरबी! बज़्म फ़रोगे अदब ने मोहर्रम में इमाम हुसैन की शान में किया मुशायरे का आयोजन (Photo- Newstrack)

Lakhimpur Kheri News: लखीमपुर खीरी। मोहर्रम के पाक महीने में जश्न-ए-हुसैन की रूहानी महफ़िल सजाते हुए बज़्म फ़रोगे अदब की जानिब से एक शानदार मुशायरे का आयोजन किया गया। यह आयोजन खीरी कस्बे के मोहल्ला शेखसराय स्थित मदरसा सुल्ताने हिंद में हुआ, जिसमें देश के कई प्रसिद्ध शायरों ने नात, मंक़बत और करबला की शान में अशआर पेश किए।

इमाम हुसैन की याद में सजी अदबी महफ़िल

मुशायरे की सदारत बज़्म फ़रोगे अदब के सदर आमिर रज़ा पम्मी ने की, जबकि संचालन की ज़िम्मेदारी मशहूर शायर इलियास चिश्ती ने निभाई।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में आमिर रज़ा पम्मी ने कहा:

"आज इमाम हुसैन के नाम से सजी यह महफिल हमारी बज़्म के लिए एक ऐतिहासिक लम्हा है, जो अदब की दुनिया में एक मील का पत्थर साबित होगी।"

उन्होंने खुद भी एक प्रभावशाली मंक़बत पेश की:

"अफ़ज़ल है कुल जहां में घराना हुसैन का, नबियों का ताजदार है नाना हुसैन का।"

शायरों ने पेश किए करबला की याद ताज़ा करते अशआर

डॉ. एहराज अरमान ने अपने दिल को छू लेने वाले कलाम में कहा:

"सर कटाया है जहां दीन के शहजादों ने, कैसे भूलेंगे वह मैदान रसूले अरबी।"

शहबाज़ हैरत चिश्ती ने इबादत और करबला की मिसाल देते हुए कहा:

"हर इक नमाज़ी होता नहीं राहे रास्त पर, देखे हैं करबला में मुसल्ले अलग अलग।"

इलियास चिश्ती ने पढ़ा:

"जानते हो कितने भीतर हैं हुसैन, जिस्म में दिल, दिल के अंदर हैं हुसैन।"

युवा शायरों की भी प्रभावशाली प्रस्तुतियाँ

उमर हनीफ ने कसीदा-ए-हुसैन पेश करते हुए कहा:

"सब्रो रज़ा से महके हुए लफ़्ज़ दे खुदा, लिखना है मुझको एक कसीदा हुसैन का।"

नफीस वारसी ने फ़ुरात से हुसैनी जुड़ाव को इन अल्फ़ाज़ में पेश किया:

"उन्हीं की वज्ह से रौनक़ है इसके साहिल पर, फ़ुरात क्यों न पुकारे हुसैन ज़िन्दा बाद।"

अय्यूब अंसारी ने अपने कलाम में कहा:

"रौनक़ उन्हीं के चहरे पे होगी बरोज़े ह़श्र, अय्यूब जिनको प्यार है मेरे ह़ुसैन से।"

हक़ और बातिल की जंग का पैग़ाम

मंसूर महवार ने हज़रत ज़ैनब के खुत्बे को याद किया:

"ख़ुतब ए जैनब ने साबित कर दिया, हक पे बातिल का चला सिक्का नहीं।"

मोहम्मद आसिफ नूर ने अपनी मंक़बत में कहा:

"सलीस मीठी ज़बां को हुसैन कहते हैं, सदाक़तों के बयां को हुसैन कहते हैं।"

हसन अंसारी ने यज़ीद और हुसैन की तुलना करते हुए कहा:

"यजीद मुर्दा है मुर्दों में पाया जाता है, हुसैन जिंदा हमारे हुसैन जिंदा बाद।"

लोगों की भारी मौजूदगी

इस रूहानी अदबी महफ़िल में भारी संख्या में श्रोताओं की मौजूदगी रही। मुशायरे का हर शेर, हर कलाम, करबला की सच्चाई, सब्र, वफ़ा और हक़ के लिए दिए गए बलिदान की याद दिलाता रहा। बज़्म फ़रोगे अदब की यह कोशिश न सिर्फ इमाम हुसैन की याद में अदबी इज़हार थी, बल्कि आने वाली नस्लों तक उनके पैग़ाम को पहुंचाने का सराहनीय प्रयास भी रहा।

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