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Meerut News: टिकैत के सिर पर सवाल? भाकियू का पारा चढ़ा, मेरठ से उठी सख़्त कार्रवाई की मांग
Meerut News: सोमवार को वे कार्यकर्ताओं के साथ अपर पुलिस महानिदेशक (ADG) मेरठ ज़ोन भानु भास्कर से मिले और इस प्रकरण में तत्काल और कठोर कानूनी कार्रवाई की माँग की।
अनुराग चौधरी कार्यकर्ताओं के साथ अपर पुलिस महानिदेशक (ADG) मेरठ ज़ोन भानु भास्कर से मिले (photo: social media )
Meerut News: सोशल मीडिया पर किसान नेता चौधरी राकेश टिकैत के खिलाफ ‘सर कलम’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल — और वह भी किसी संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष द्वारा — मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) ने इसे सिर्फ एक बयान नहीं, बल्कि पूरे किसान आंदोलन का अपमान करार दिया है।
इस मामले में भाकियू मेरठ इकाई के जिलाध्यक्ष अनुराग चौधरी ने मोर्चा संभाल लिया है। सोमवार को वे कार्यकर्ताओं के साथ अपर पुलिस महानिदेशक (ADG) मेरठ ज़ोन भानु भास्कर से मिले और इस प्रकरण में तत्काल और कठोर कानूनी कार्रवाई की माँग की।
भड़काऊ वीडियो, गुस्से में किसान
गौरतलब है कि भाकियू अटल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित चौधरी द्वारा हाल ही में एक वीडियो सोशल मीडिया पर डाली गई है, जिसमें टिकैत के 'सर कलम' करने जैसी भाषा का प्रयोग किया गया। यह वीडियो जंगल की आग की तरह फैली और किसान समुदाय में गहरा रोष फैल गया।
इससे पहले जानी थाना में मुकदमा दर्ज कराया जा चुका है, लेकिन भाकियू कार्यकर्ता केवल FIR से संतुष्ट नहीं हैं। वे चाहते हैं कि कार्रवाई दिखे भी, महसूस भी हो।
ADG का सख़्त रुख, किसानों को दिया भरोसा
ADG भानु भास्कर ने प्रतिनिधिमंडल से स्पष्ट शब्दों में कहा —
"मामला संवेदनशील है। कार्रवाई में न कोताही होगी, न देरी। हम कानून के मुताबिक तेज़ी से कदम उठाएंगे।"
यह भरोसा फिलहाल किसानों को राहत जरूर दे गया, लेकिन भाकियू ने चेतावनी भी दे दी है।
भाकियू की चेतावनी – धरना अब दूर नहीं
जिलाध्यक्ष अनुराग चौधरी ने साफ शब्दों में कहा —
"अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई तो मेरठ की धरती पर अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू होगा। हम किसान हैं, झुकते नहीं — अगर सम्मान पर चोट होगी, तो मैदान में उतरने से नहीं हिचकेंगे।"
कौन-कौन रहा प्रतिनिधिमंडल में शामिल:
अनुराग चौधरी (जिलाध्यक्ष)
नितिन पुनिया
सनी प्रधान
बलराज सिंह
विनय पंघाल
अर्जुन बाफर
बहरहाल, किसान नेताओं के शब्दों में जो आग है, वह सिर्फ शब्दों की नहीं — यह किसान सम्मान और असहमति की मर्यादा से जुड़ा मामला है। देखना यह होगा कि प्रशासन की ‘कार्रवाई’ कितनी तेज़ और ठोस साबित होती है।
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