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मऊ: ओपी राजभर ने कोर्ट में किया सरेंडर, जानिए क्या था गुनाह; चुनाव से पहले हिसाब चुकता
OP Rajbhar surrender: क्या यह आत्मसमर्पण एक सच्चे नागरिक का उदाहरण है या आगामी राजनीतिक समीकरणों की एक सूझबूझ भरी चाल?
OP Rajbhar Surrender: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बोल बम अंदाज में बयानबाजी के लिए मशहूर कैबिनेट मंत्री और सुभासपा अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर ने सोमवार को मऊ की एमपी-एमएलए कोर्ट में बड़े सलीके से सरेंडर कर दिया। कारण वही पुराना 2019 के लोकसभा चुनाव में आचार संहिता का उल्लंघन। यानी मामला कानून का है लेकिन टाइमिंग बिल्कुल राजनीति की किताब से उठाई गई लगती है। कई तारीखें, कई नोटिस और अंततः कोर्ट ने सोचा अब बहुत हुआ, वारंट निकालो। और वहीं से शुरू हुई राजभर की अदालत तक की संवैधानिक पदयात्रा।
अदालत में 'आम नागरिक' की तरह एंट्री
कोर्ट में पहुंचने से पहले राजभर ने कैमरों की तरफ मुखातिब होते हुए कहा कि कानून का पालन करना हर नागरिक का कर्तव्य है। मैं भी एक आम नागरिक हूं। अब यह अलग बात है कि आम नागरिक को जब वारंट जारी होता है तो वो कोर्ट तक पहुंचने के लिए वकील नहीं, सीधे पुलिस की गाड़ी का इंतजार करता है।
मामला क्या था?
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में हलधरपुर थाना क्षेत्र में आचार संहिता उल्लंघन का मामला दर्ज हुआ था। उड़न दस्ते के प्रभारी रुद्रभान पांडेय ने 18 मई को तहरीर दी थी कि मंत्री जी ने कुछ ऐसा कर डाला जो चुनाव आयोग की किताब में ना-ना के दायरे में आता है।
मामला एमपी-एमएलए कोर्ट में पहुंचा और तारीख पर तारीख चलती रही लेकिन मंत्री जी कोर्ट में नहीं पहुंचे। आखिरकार कोर्ट ने सोचा कि अब तो वारंट ही भेजो, शायद तभी लोकतंत्र की गाड़ी कोर्ट तक पहुंचे। सोमवार को वाकई गाड़ी पहुंच गई मंत्री साहब खुद अदालत में पेश हो गए।
कोर्ट में स्टेटस अपडेट: जमानत लंबित
फिलहाल ओपी राजभर कोर्ट में मौजूद हैं और जमानत की कार्रवाई पूरी होने का इंतजार कर रहे हैं। समर्थकों की भीड़ नहीं पर कैमरों की चहल-पहल जरूर रही। कुछ लोगों को उम्मीद थी कि मंत्री जी राजनीतिक साजिश का आरोप लगाएंगे, लेकिन इस बार उन्होंने सादगी से कानून का पालन करने की बात कहकर सबको चौंका दिया।
कानून सबके लिए बराबर, बशर्ते चुनाव नजदीक हों
सवाल अब यह है कि क्या यह आत्मसमर्पण एक सच्चे नागरिक का उदाहरण है या आगामी राजनीतिक समीकरणों की एक सूझबूझ भरी चाल? जो भी हो ओपी राजभर ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वो मंच पर हों या कोर्ट में सुर्खियां बनाना उन्हें बखूबी आता है। अब देखना यह है कि अदालत इस राजनीतिक आत्मसमर्पण को कितना कानूनी मानती है और आगे मंत्री जी को कब फुर्सत मिलती है अगली सुनवाई के लिए।
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