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Shravasti News: श्रावस्ती में या हुसैन…” की सदाओं से गूंजा कर्बला , जंजीरों से मातम, जनाबे शकीना के ज़िक्र पर भर आईं अकीदतमंदों की आंखें
Shravasti News: देर रात तक या हसन हुसैन की सदाओं के बीच ताजिये कर्बला में दफ्न किए गए। सुरक्षा की दृष्टि से फोर्स की तैनाती की गई थी। जबकि संवेदनशील स्थानों पर अधिकारी गश्त करते रहे।
जंजीरों से मातम, जनाबे शकीना के ज़िक्र पर भर आईं अकीदतमंदों की आंखें (photo: social media )
Shravasti News: रविवार को नगर सहित ग्रामीण इलाकों में दसवीं मुहर्रम पर ताजिये के जुलूस निकाले गए। इससे पूर्व हुई मजलिसों में उलेमा ने कर्बला की शहादत का जिक्र किया। इसके बाद जुलूस निकलना शुरू हुआ। देर रात तक या हसन हुसैन की सदाओं के बीच ताजिये कर्बला में दफ्न किए गए। सुरक्षा की दृष्टि से फोर्स की तैनाती की गई थी। जबकि संवेदनशील स्थानों पर अधिकारी गश्त करते रहे। भिनगा व इकौना नगर समेत ग्रामीण क्षेत्रों में जुलूस निकाला गया। तारीक हसन ने कर्बला की शहादत बयान करते हुए कहा कि मुहर्रम एक तारीख़ी महीना है। हर मुसलमान हज़रत इमाम हुसैन के सजदे का कर्जदार है।
मुहर्रम के दौरान, ताजिया को शांतिपूर्वक कर्बला में दफन किया गया। बता दें कि यह एक धार्मिक अनुष्ठान है जो हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए किया जाता है। ताजिया, जो हजरत इमाम हुसैन की कब्र का प्रतीकात्मक रूप भी है, को पूरे सम्मान के साथ कर्बला में दफनाये जाने की परंपरा रही है। यह दिन इमाम हुसैन और उनके साथियों की कर्बला के मैदान में हुई शहादत को याद करने का भी दिन मना जाता है।
ताजिया को जुलूस के रूप में कर्बला ले जाया जाता है
इसी कड़ी में श्रावस्ती में, ताजिया को जुलूस के रूप में कर्बला ले जाया जाता है, जहां उसे दफनाने से पहले, उसमें रखे गए धार्मिक प्रतीकों को सम्मानपूर्वक निकाला गया है। इसके बाद, ताजिया को कर्बला में दफनाया गया है, और श्रद्धालु फातिहा पढ़ते हुए दुआएं मांगी।इस दौरान, पूरे वातावरण में "या हुसैन" और "या अली" के नारे गूंजते रहे हैं, और लोग गमगीन माहौल में इस धार्मिक अनुष्ठान में शामिल होते रहे हैं। श्रावस्ती में, ताजिया जुलूस के दौरान शांति और सद्भाव बनाए रखने के लिए डीएम अजय कुमार द्विवेदी और एसपी घनश्याम चौरासिया के निर्देश पर भारी संख्या में हर जगह पुलिस बल भी तैनात रहे है।यह अनुष्ठान, इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के साथ-साथ, प्रेम, न्याय और सत्य के लिए संघर्ष का संदेश का प्रतीक है ।
इस दौरान छोटे बच्चों से लेकर बुज़ुर्गों तक हर कोई इस मातम में शरीक रहा।काले लिबास और काली पट्टियों में मातमी अज़ादार सीने पीटते, अलम थामे, आंसुओं के साथ कर्बला की याद ताज़ा करते नज़र आए। कुछ अज़ादारों ने जंजीरों से मातम कर अपनी अकीदत पेश की, जिनकी पीठों से बहता खून उनकी मोहब्बत और दर्द की गवाही दे रहा था।इस ग़मगीन माहौल में जब मौलानाओं ने मजलिस को खिताब किया, तो जुलूस एक सिसकी में बदल गया। मौलानाओं ने अपने बयान में जनाबे शकीना का ज़िक्र करते हुए कहा—”कर्बला के मैदान में सबसे बड़ी तकलीफ़ सिर्फ ताजियत नहीं थी, बल्कि वह दर्द था जो एक मासूम बेटी ने सहा। जनाबे शकीना (स.अ.) – वो चार साल की मासूम, जो अपने बाबा हुसैन की गोद ढूंढती रहीं, लेकिन ताज़िया की रात उन्हें लूटे हुए खेमों और जलती ज़मीन के सिवा कुछ नहीं मिला।
महिलाएं और बुजुर्ग भावुक हो उठे
आज जब मैंने एक मासूम बच्ची को अलम उठाए देखा, तो लगा जैसे जनाबे शकीना फिर ज़िंदा हो गई हों…”यह सुनते ही कई अज़ादार रो पड़े। महिलाएं और बुजुर्ग भावुक हो उठे। मजलिस में सन्नाटा और सिसकियों की आवाज़ें गूंजने लगीं।जुलूस कर्बला स्थल पर पहुंचा जहां फ़ातिहा और अंतिम दुआ की गई। इस मौके पर अमन, इंसाफ और भाईचारे की विशेष दुआ मांगी गई।
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