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UP Politics: यूपी उपचुनाव नतीजे के संकेत: मुरझाया खिलता कमल, ठहरी साइकिल ने रफ्तार पकड़ी
UP Politics Special Report: उत्तर प्रदेश में राजनीति की एक अलग प्रवृत्ति है, यहाँ के लोग जितनी तेजी से किसी विचारधारा से जुड़ते हैं, उतनी ही जल्दी इनका मोहभंग भी हो जाता है।
UP Politics Special Report BJP VS Samajwadi Party
UP Politics Special Report: ऑस्ट्रेलिया में जंगली सूअर का शिकार करने के लिए ‘बूमरैंग’ नामक एक हथियार इस्तेमाल किया जाता है। इसकी खासियत यह होती है कि यदि निशाना चूका तो यह लौटकर खुद उसे ही घायल कर सकता है जिसने इसे चलाया हो। उत्तर प्रदेश के 2014 के उपचुनावों में भाजपा के साथ भी कुछ ऐसी ही स्थिति पैदा हो गई थी। हिंदुत्व का जो कार्ड पार्टी ने पूरे जोश में खेला, वह सफल नहीं रहा, और परिणामस्वरूप बूमरैंग की तरह वही रणनीति उलटी पड़ गई। सिर्फ तीन सवा तीन महीनों में ही ‘अच्छे दिन’, ‘फीलगुड’, और ‘मोदी मैजिक’ जैसे तमाम जुमले फीके पड़ गए।
उत्तर प्रदेश, जो 2014 के आम चुनाव में भाजपा का अजेय दुर्ग बन गया था, वही उपचुनावों में उसकी रणनीति की कब्रगाह साबित हुआ। मुलायम सिंह यादव ने अपने अनुभव, संगठन और जातीय समीकरणों की सधी चालों से भाजपा को चित कर दिया। यहां तक कि नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस की रोहनिया सीट भी भाजपा नहीं बचा सकी। यह तब और शर्मनाक बन गया जब स्वयं मोदी यहां मिनी पीएमओ की घोषणा, क्योटो तर्ज पर स्मार्ट सिटी परियोजनाएं और विकास के ट्वीट्स की बौछार कर रहे थे।
इसके विपरीत मैनपुरी में मुलायम सिंह ने बिना किसी उल्लेखनीय विकास कार्य के अपने पोते को एक लाख ज्यादा वोटों से जितवा दिया, और यह साबित कर दिया कि यूपी की चुनावी बिसात पर उनकी चालों का कोई सानी नहीं।
यूपी की राजनीति: जुड़ाव और मोहभंग की तीव्रता
उत्तर प्रदेश की राजनीति की एक विशिष्ट प्रवृत्ति रही है — यहां के लोग जितनी तेजी से किसी विचारधारा से जुड़ते हैं, उतनी ही जल्दी मोहभंग भी कर लेते हैं। कांग्रेस, वीपी सिंह, चंद्रशेखर की तेजी से आई और गई लोकप्रियता इसकी गवाही है। 2014 के लोकसभा चुनावों में भाजपा को मिले भारी समर्थन को यदि वह स्थायी मान रही थी, तो यह भ्रम भी उपचुनावों में दूर हो गया।
राजनीति में इशारों का महत्व होता है। 2014 के उपचुनावों के नतीजे भी इशारा कर रहे थे कि हवा का रुख बदल सकता है — अगर समय रहते न समझा गया, तो 2017 में भी खतरा मंडरा सकता था।
सपा की वापसी और भाजपा की पुरानी बीमारी
समाजवादी पार्टी ने 13 में से 8 सीटें भाजपा से छीन लीं। खास बात यह कि सिराथू जैसी सीट, जो 5 बार समाजवादी पार्टी के पास नहीं गई थी, वह भी जीत ली। यह परिणाम सिर्फ भाजपा के लिए चेतावनी नहीं था, बल्कि सपा के लिए संजीवनी थी।
भाजपा में गुटबाजी और व्यक्तिगत अहंकार की पुरानी बीमारी ने फिर सिर उठाया। कई उम्मीदवारों ने खुलकर अपने ही पार्टी सांसदों पर हरवाने के आरोप लगाए। मुरादाबाद, निघासन, और अन्य क्षेत्रों में यह अंदरूनी कलह खुलकर सामने आई।
लोकसभा चुनावों की लहर में यह कलह छिप गई थी, लेकिन उपचुनावों में जब नेताओं ने रस्मी रूप से जुड़ाव रखा और जनसंवाद से दूरी बनाई, तब इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
योगी आदित्यनाथ: पोस्टर बॉय की रणनीति पर पुनर्विचार
गोरक्षपीठाधीश्वर सांसद योगी आदित्यनाथ को भाजपा ने उत्तर प्रदेश में ‘मोदी के प्रतिरूप’ के रूप में प्रस्तुत किया। उन्हें पोस्टर बॉय बनाया गया, और लव जिहाद जैसे विवादास्पद विषयों को हवा देकर हिंदू ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई।
लेकिन नतीजों ने साफ कर दिया कि कट्टरता की इस रणनीति ने अपेक्षित परिणाम नहीं दिए। योगी ने तर्क दिया कि जहां-जहां वे गए, वहां पार्टी जीती, लेकिन जब वे पार्टी के सबसे बड़े चेहरे बनाकर उपचुनावों में उतारे गए थे, तो परिणामों की सामूहिक ज़िम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता।
2025 के सन्दर्भ में देखें तो यह प्रयोग भाजपा के दीर्घकालिक रणनीतिक ढांचे का अहम हिस्सा बना — लेकिन इसकी शुरुआत ही आलोचना से हुई।
सामाजिक ध्रुवीकरण बनाम विकास की राजनीति
भाजपा की रणनीति स्पष्ट थी — कट्टर हिंदू चेहरा, जातीय समीकरण, और ध्रुवीकरण। लेकिन उत्तर प्रदेश की जनता ने इस बार संदेश दिया कि उन्हें विकास चाहिए, न कि विभाजन।
मोदी ने 2014 के लोकसभा चुनावों में भ्रष्टाचार, सुशासन और विकास की बात की थी — न कि हिंदुत्व का अतिरेक। लेकिन उनके उत्तर प्रदेश के नेता ‘छवि’ को ही एजेंडा बना बैठे। परिणामतः जनता को सियासी शोर में वह भरोसा नहीं मिला, जो लोकसभा में मिला था।
प्रदेशीय नेतृत्व का संकट और वैकल्पिक चेहरा
13 सीटों पर हुए ये उपचुनाव पूर्व से पश्चिम और बुंदेलखंड तक फैले थे। यह व्यापक भौगोलिक परिक्षेत्र भाजपा के लिए एक और बड़ा सवाल खड़ा करता है — क्या भाजपा के पास यूपी में कोई ऐसा नेता है, जिसे राज्यव्यापी स्वीकृति प्राप्त हो?
योगी आदित्यनाथ को इस दिशा में एक प्रयोग के तौर पर प्रस्तुत किया गया, लेकिन परिणामों ने उनकी सीमाओं को उजागर किया।
बसपा का न उतरना: परिणामों में दलित वोटों की अस्थिरता
बहुजन समाज पार्टी ने इन उपचुनावों में अपने उम्मीदवार नहीं उतारे थे। भाजपा को उम्मीद थी कि दलित वोट उनके खाते में आ जाएगा, लेकिन परिणाम इसके उलट निकले। दलित वोटरों ने कांग्रेस, सपा और अन्य विकल्पों की ओर रुख किया।
यह भाजपा के लिए एक और झटका था, क्योंकि ‘काडर वोट’ का यह विचलन भविष्य में स्थायी हो सकता था।
थ्री बी थ्योरी: ब्राह्मण, बनिया और बहुजन
उत्तर प्रदेश की राजनीति में भाजपा लंबे समय से ‘ब्राह्मण-बनिया’ आधार पर टिकी थी। 2014 में इसमें बहुजन जुड़ा, लेकिन उपचुनावों में ब्राह्मण और बनिया समुदाय घरों से नहीं निकले और बहुजन वोटर बसपा के न लड़ने पर भाजपा को विकल्प नहीं मान सका। परिणामतः थ्री बी समीकरण विफल हुआ।
संगठनात्मक चूक और स्टार प्रचारकों की अनुपस्थिति
उपचुनावों में 11 सांसदों के दबाव के बावजूद उनके लोगों को टिकट नहीं मिले। इसके चलते अंदरूनी असंतोष बढ़ा। उमा भारती (चरखारी), कलराज मिश्र और राजनाथ सिंह (लखनऊ), मनोज सिन्हा, संजीव बालियान जैसे नेता अपने क्षेत्रों से दूर रहे या सिर्फ रस्म अदायगी करते नजर आए।जब स्टार प्रचारक ही मौन हों, तो संगठन कैसे लड़े?
मुलायम सिंह की सियासी वापसी और अखिलेश का भविष्य
इस उपचुनाव ने यह साफ कर दिया कि मुलायम सिंह यादव अभी भी सियासी अखाड़े के सबसे चतुर पहलवान हैं। लोकसभा में सिमटी पार्टी विधानसभा में मजबूत हुई और अखिलेश यादव की सरकार को स्थायित्व मिला।
अखिलेश ने सही ही कहा — “लोगों ने कट्टरता की जगह विकास को वोट दिया।” आज़म खान ने इस संकेत को आगे बढ़ाते हुए एकीकृत विपक्ष की बात कही, जो 2025 में भी विपक्षी एकता के हर प्रारूप में बार-बार सामने आता है।
निष्कर्ष: साइकिल की वापसी और कमल की थकान
उत्तर प्रदेश की 13 सीटों के उपचुनाव के नतीजे सिर्फ सीटों का हिसाब नहीं थे — वे एक सियासी परिवर्तन का संकेत थे। भाजपा की गाड़ी पर ब्रेक लगा, और सपा की साइकिल को रफ्तार मिली।
यदि इस वक्त भाजपा नेतृत्व ने आत्मचिंतन नहीं किया, तो 2017 विधानसभा चुनाव में विपक्षी खेमा पहले से अधिक संगठित, उत्साहित और संभावनाशील रूप में चुनौती पेश करेगा।
यह सिर्फ उपचुनाव नहीं था — यह चेतावनी थी।
(यह लेख मूलतः 18 सितंबर 2014 को डेली न्यूज ऐक्टिविस्ट में प्रकाशित हुआ था। यह उसका पूर्ण, अद्यतन, संपादित संस्करण, July-2025 है।)
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