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असीम मुनीर ने फील्ड मार्शल बनने के लिए करवाया पहलगाम हमला? जानिए क्या है पर्दे के पीछे की पूरी कहानी
Pakistan General Asim Munir: क्या वाकई असीम मुनीर ने अपनी पदोन्नति के लिए पहलगाम हमला करवाया? या ये महज़ एक साजिशन गढ़ी गई कहानी है? चलिए जानते हैं इस पूरे रहस्य के पीछे की परत-दर-परत सच्चाई।
Pakistan General Asim Munir
Pakistan General Asim Munir: जब 2025 की गर्मियों में कश्मीर की वादियों में पहलगाम एक बार फिर गोलियों की गूंज से दहल उठा, तो हर तरफ सिर्फ एक ही सवाल गूंज रहा था — आखिर इस हमले के पीछे कौन है? भारत ने अपनी एजेंसियों को चौकन्ना किया, मीडिया ने सुराग ढूंढना शुरू किया और जनता का गुस्सा चरम पर था। लेकिन जैसे-जैसे परतें खुलती गईं, शक की सुई एक ऐसे नाम की ओर घूमने लगी, जिसकी गूंज सिर्फ पाकिस्तान की सरहदों में नहीं, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी होती है जनरल असीम मुनीर। और फिर जब कुछ ही हफ्तों बाद पाकिस्तान सरकार ने उन्हें 'फील्ड मार्शल' की अभूतपूर्व उपाधि दे दी, तो संदेह और गहराता चला गया। क्या वाकई असीम मुनीर ने अपनी पदोन्नति के लिए पहलगाम हमला करवाया? या ये महज़ एक साजिशन गढ़ी गई कहानी है? चलिए जानते हैं इस पूरे रहस्य के पीछे की परत-दर-परत सच्चाई।"
असीम मुनीर: परछाइयों से उभरा एक सख्त चेहरा
जनरल असीम मुनीर, पाकिस्तान आर्मी के पहले कुरान हाफिज़ आर्मी चीफ, जिनका नाम हाल के वर्षों में पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली चेहरों में शुमार किया जाता है। आईएसआई और मिलिट्री इंटेलिजेंस के प्रमुख के रूप में उन्होंने खुफिया हलकों में अपनी सख्त और अनुशासित छवि बनाई। 2022 में सेना प्रमुख बने और 2025 में उन्हें "फील्ड मार्शल" बना दिया गया पाकिस्तान की फौजी व्यवस्था में यह पद बेहद दुर्लभ और प्रभावशाली माना जाता है। लेकिन इस ऐतिहासिक पदोन्नति से पहले जो घटना हुई, उसने हर किसी को सोचने पर मजबूर कर दिया।
पहलगाम हमला: एक रहस्यमयी आतंकी वारदात
7 मई 2025 को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक भयावह आतंकी हमला हुआ, जिसमें कई निर्दोष तीर्थयात्री और सुरक्षाकर्मी मारे गए। हमला बेहद सुनियोजित और हाई-प्रोफाइल था। भारत ने इस हमले के लिए पाकिस्तान-प्रायोजित आतंकियों को जिम्मेदार ठहराया। भारतीय एजेंसियों के अनुसार, इस हमले में "लश्कर-ए-तैयबा" जैसे आतंकी संगठन का हाथ था जो वर्षों से ISI की छत्रछाया में काम करता रहा है। लेकिन इस बार शक की सुई किसी आतंकी सरगना पर नहीं, बल्कि सीधे पाकिस्तान के सेना प्रमुख की ओर घूमी और वो भी इसलिए क्योंकि कुछ ही हफ्तों के भीतर असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बना दिया गया।
क्या है फील्ड मार्शल बनने की अहमियत?
पाकिस्तान में फील्ड मार्शल की उपाधि बहुत ही कम लोगों को मिली है इससे पहले सिर्फ जनरल अयूब ख़ान इस ओहदे तक पहुंचे थे, और उन्होंने ही बाद में तख्तापलट कर देश की बागडोर अपने हाथ में ली थी। फील्ड मार्शल बनना सिर्फ एक सैन्य प्रमोशन नहीं, यह सत्ता, नियंत्रण और सियासत की सबसे ऊंची सीढ़ी है। इसे पाने वाला व्यक्ति सेना का नहीं, बल्कि पूरे देश के नीतिगत फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में सवाल उठता है क्या यह हमला उस 'छवि निर्माण' की एक कड़ी थी, जिससे असीम मुनीर को यह ओहदा सौंपा जा सके?
साजिश या संयोग? जांच क्या कहती है?
भारत की खुफिया एजेंसियों ने इस हमले में पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों के इस्तेमाल के ठोस सुराग दिए हैं। कुछ intercepted कॉल्स, सोशल मीडिया चैट्स और सीमा पार से मिले इनपुट्स ने इस हमले को "स्टेट-स्पॉन्सर्ड टेररिज्म" की श्रेणी में डाल दिया। वहीं पाकिस्तान ने हमेशा की तरह इस हमले से अपना पल्ला झाड़ते हुए इसे "भारतीय एजेंसियों की नाकामी" करार दिया। लेकिन इस बार अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने भी पाकिस्तान की भूमिका पर सवाल उठाए, खासकर तब, जब हमले के तुरंत बाद असीम मुनीर को फील्ड मार्शल का ओहदा सौंपा गया।
असीम मुनीर की भूमिका पर संदेह क्यों?
1. टाइमिंग पर सवाल: हमले के कुछ ही दिनों बाद पदोन्नति की घोषणा ने कई सवाल खड़े किए।
2. ISI का अतीत: असीम मुनीर ISI के पूर्व चीफ रह चुके हैं। लश्कर, जैश जैसे आतंकी संगठनों से ISI के पुराने संबंध किसी से छिपे नहीं हैं।
3. इमरान खान से दुश्मनी: पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान के समर्थकों का मानना है कि असीम मुनीर ने सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए एक "आंतरिक-और-बाहरी खतरे" का माहौल बनाया ताकि उन्हें सेना और सरकार दोनों का अघोषित नेतृत्व सौंपा जा सके।
4. पारंपरिक रणनीति: पाकिस्तान की फौज अतीत में भी भारत से तनाव को अपने आंतरिक हितों के लिए इस्तेमाल करती रही है। कारगिल इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जब तत्कालीन सेना प्रमुख परवेज़ मुशर्रफ ने प्रधानमंत्री को अंधेरे में रखकर युद्ध छेड़ दिया था।
लेकिन क्या है बचाव पक्ष की दलील?
असीम मुनीर के समर्थक और सरकार इस पूरे विवाद को एक "प्रोपेगंडा" करार देते हैं। उनका कहना है कि हमला पाकिस्तान के हित में नहीं था, क्योंकि इससे अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ा। असीम मुनीर सेना में अनुशासन और आतंक के खिलाफ कड़ी नीति के लिए जाने जाते हैं। भारत खुद इस घटना को अंतरराष्ट्रीय मंच पर भुनाने की कोशिश कर रहा है ताकि पाकिस्तान को FATF जैसी संस्थाओं के निशाने पर रखा जा सके।
जनता और विश्लेषकों की राय
पाकिस्तान के अंदर कई लोग इसे सेना और सरकार के बीच शक्ति संतुलन का हिस्सा मानते हैं। असीम मुनीर को फील्ड मार्शल बनाकर शहबाज़ सरकार ने सेना की नाराजगी को कम करने की कोशिश की है, वहीं कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह पदोन्नति 'डील' का हिस्सा है जिसमें मुनीर सेना को "राजनीति से बाहर" रखने का वादा करते हैं — कम से कम दिखावे के लिए।
रहस्य कायम है
अब तक कोई भी ठोस सबूत सामने नहीं आया है जिससे यह साबित किया जा सके कि असीम मुनीर ने ही पहलगाम हमला करवाया। लेकिन संदेह की परछाइयां अब भी बनी हुई हैं। पाकिस्तान की राजनीति और फौज की जटिलताओं को देखते हुए इतना तय है कि जो दिखता है, वही सच नहीं होता। क्या असीम मुनीर सच में एक 'राजनीतिक रणनीतिकार' हैं जिन्होंने अपने ओहदे के लिए मासूमों की जान ली? या फिर ये आरोप महज़ उनकी छवि खराब करने की कोशिश हैं? इस सवाल का जवाब शायद आने वाला वक़्त देगा लेकिन फिलहाल, शक की सुई अब भी घूम रही है।
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