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अब तुर्किए में तख्तापलट! ट्रंप के साथ घूम रहे एर्दोआन को भी सता रहा डर; 182 अफसरों की गिरफ्तारी से मचा बवाल

Erdogan-Trump NATO: तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ नीदरलैंड के हेग में आयोजित NATO समिट में दिखाई दिए, जहां वे हँसते, हाथ मिलाते नज़र आये। लेकिन देश के अंदर का माहौल उनकी मुस्कान के बिल्कुल उल्टा है।

Priya Singh Bisen
Published on: 25 Jun 2025 1:01 PM IST
Erdogan-Trump NATO
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Erdogan-Trump NATO: तुर्किए के राष्ट्रपति रेसेप तैय्यप एर्दोआन हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ नीदरलैंड के हेग में आयोजित NATO समिट में दिखाई दिए, जहां वे हँसते, हाथ मिलाते और फोटो खिंचवाते नज़र आये। लेकिन देश के अंदर का माहौल उनकी मुस्कान के बिल्कुल उल्टा है। तुर्की में एक बार फिर तख्तापलट की सम्भावना तेजी से बनने लगी है और इसी डर के कारण एर्दोआन सरकार ने बड़ी कार्रवाई करते हुए सेना और पुलिस के 182 अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया है।

क्यों मचाया गया छापेमारी का तूफान?

एक सरकारी समाचार एजेंसी के मुताबिक, इन अधिकारियों पर कथित तौर पर 'गुलेन मूवमेंट' से जुड़े होने का आरोप है। यह वही संगठन है जिसे तुर्की सरकार साल 2016 के असफल तख्तापलट की साजिश के लिए बड़ा जिम्मेदार ठहराती है। इस्तांबुल, इज़मिर के साथ-साथ लगभग 43 प्रांतों में एक साथ छापेमारी की गई। इस दौरान करीब 176 संदिग्धों के खिलाफ गिरफ्तारी वॉरंट जारी किए गए, जिनमें से अब तक 163 को हिरासत में लिया जा चुका है।

गिरफ्त में कौन-कौन?

जानकारी के मुताबिक, गिरफ्तार किए गए अधिकारियों में कर्नल, लेफ्टिनेंट कर्नल, मेजर और कैप्टन जैसे कवि उच्च रैंक वाले सैन्य अधिकारी शामिल हैं। एक अलग ऑपरेशन में लगभग 21 अन्य लोगों को भी पकड़ा गया, जिनमें 13 वर्तमान में सेवारत पुलिसकर्मी और 6 पूर्व अधिकारी शामिल हैं। जांच में सामने आया कि ये सभी अधिकारी सार्वजनिक टेलीफोन लाइनों के जरिय गुप्त नेटवर्क से जुड़े थे।

क्या है 'गुलेन आंदोलन'?

'गुलेन आंदोलन', जिसे कभी शिक्षा और सामाजिक कल्याण के लिए ‘हिज़मत’ (सेवा) नेटवर्क के रूप में उजागर किया गया था, अब तुर्की सरकार ने उसे एक आतंकी संगठन करार दिया है। आंदोलन के नेता फतेउल्लाह गुलेन अमेरिका में निर्वासन में रह रहे थे और उनकी साल 2024 में मौत हो चुकी है। हालांकि अमेरिका और यूरोपीय संघ आज भी इसे आतंकवादी संगठन के रूप में मान्यता नहीं देते।

क्या सत्ता की कुर्सी हिल रही है?

साल 2016 के बाद से अब तक 7 लाख से ज्यादा लोगों की जांच हो चुकी है, जबकि तकरीबन 13,000 से ज्यादा को जेल भेज दिया गया है। लगभग 24,000 से अङ्गिक सैन्यकर्मी सेना से बर्खास्त किए जा चुके हैं। आलोचकों का मानना है कि एर्दोआन इस आंदोलन का प्रयोग अपने विरोधियों को चुप कराने और सत्ता पर अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए कर रहे हैं। गुलेन की मौत के बाद भी, एर्दोआन की इस मुहिम में अबतक कोई लपएवाही नहीं आई है, बल्कि यह और भी आक्रामक होती जा रही है।

बता दे, देश के अंदर निरंतर सख्ती और विदेशों में कूटनीतिक मुस्कान, तुर्किए के राष्ट्रपति एर्दोआन का ये दोहरा चेहरा इस वक़्त दुनियाभर के नजर में बना हुआ है। अब सवाल यही उठता है कि क्या ये कार्रवाई सच में देश की सुरक्षा के लिए है, या फिर तख्तापलट का डर अब भी एर्दोआन का पीछा नहीं छोड़ रहा?

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