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चीन के खिलाफ भारत को मिला बड़ा 'हथियार'! श्रीलंका भी दिखाएगा ताकत; आकाश, पाताल और समंदर सब जगह होगी 'तबाही'
India China: हिंद महासागर क्षेत्र में न केवल अपनी सुरक्षा और व्यापारिक हितों को संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है, बल्कि चीन की रणनीतिक बढ़त को चुनौती...
Russia Ukraine: भारत की अग्रणी सार्वजनिक रक्षा शिपयार्ड कंपनी मझगांव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड (MDL) ने श्रीलंका के सबसे बड़े और प्रमुख शिपयार्ड कोलंबो डॉकयार्ड पीएलसी (CDPLC) में नियंत्रण हिस्सेदारी खरीदने की घोषणा की है। करीब 52.96 मिलियन डॉलर (लगभग 452 करोड़ रुपये) के इस सौदे के साथ भारत ने हिंद महासागर में अपनी रणनीतिक मौजूदगी को मजबूत करने की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया है। यह भारत की किसी सरकारी रक्षा शिपयार्ड द्वारा किया गया पहला अंतरराष्ट्रीय अधिग्रहण होगा।
यह डील ऐसे समय में हुई है जब चीन की सैन्य और आर्थिक गतिविधियां श्रीलंका सहित पूरे हिंद महासागर क्षेत्र में भारत के लिए रणनीतिक चुनौती बनती जा रही हैं। इस अधिग्रहण के ज़रिए भारत, न केवल क्षेत्रीय समुद्री शक्ति के रूप में उभर रहा है, बल्कि श्रीलंका के साथ अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को भी मज़बूत कर रहा है।
कैसे हुआ अधिग्रहण?
MDL ने कोलंबो डॉकयार्ड में 51% से अधिक हिस्सेदारी खरीदने के लिए समझौता किया है। यह अधिग्रहण दो चरणों में पूरा होगा एक हिस्सा प्राथमिक पूंजी निवेश और दूसरा जापान की ओनोमिची डॉकयार्ड कंपनी लिमिटेड से शेयर खरीद के ज़रिए। ओनोमिची इस समय CDPLC की बहुलांश शेयरधारक है। सौदे को संबंधित नियामक मंजूरियों के बाद 4-6 महीनों के भीतर पूरा किए जाने की संभावना है। सौदे के पूरा होते ही, कोलंबो डॉकयार्ड, MDL की पूर्ण सहायक कंपनी बन जाएगी।
MDL को कैसे होगा फायदा?
MDL के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक कैप्टन जगमोहन ने बताया कि यह अधिग्रहण भारत के शिपयार्ड को एक क्षेत्रीय समुद्री शक्ति और वैश्विक स्तर की शिपबिल्डिंग कंपनी में बदलने का 'गेटवे' बनेगा। कोलंबो बंदरगाह पर CDPLC की मौजूदगी, इसकी अनुभवी टीम और क्षेत्रीय क्षमताएं MDL को दक्षिण एशिया में एक मजबूत समुद्री खिलाड़ी के रूप में स्थापित करेंगी।
कोलंबो डॉकयार्ड का वैश्विक अनुभव
CDPLC के पास 50 वर्षों से अधिक का अनुभव है और यह कंपनी कई देशों जैसे जापान, फ्रांस, नॉर्वे, यूएई, भारत और अफ्रीका के लिए जटिल जहाज और नौसैनिक पोत बना चुकी है। फिलहाल CDPLC करीब 300 मिलियन डॉलर की परियोजनाओं पर कार्य कर रही है, जिसमें केबल लेइंग जहाज, यूटिलिटी शिप और फ्लीट सपोर्ट वेसल शामिल हैं।
MDL अधिकारियों का मानना है कि भारत की तकनीकी विशेषज्ञता, मजबूत सप्लाई चेन और सहयोगी देशों तक पहुंच CDPLC को वित्तीय स्थिरता और दीर्घकालिक विकास की दिशा में ले जाएगी।
भारत में भी मजबूत उपस्थिति
MDL भारत में भी लगातार अपनी रक्षा निर्माण क्षमताएं बढ़ा रहा है। यह कंपनी जर्मन कंपनी थाइसनक्रुप मरीन सिस्टम्स के साथ मिलकर भारतीय नौसेना के लिए छह स्टेल्थ डीजल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के निर्माण की बड़ी परियोजना के लिए प्रमुख दावेदार है। इस प्रोजेक्ट की लागत अब 70,000 करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। साथ ही, MDL को अतिरिक्त तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण का प्रस्ताव भी मिला है, जिसकी अनुमानित लागत 38,000 करोड़ रुपये है।
रणनीतिक लोकेशन: कोलंबो पोर्ट
कोलंबो डॉकयार्ड का स्थान, हिंद महासागर के ट्रांसशिपमेंट हब में है, जो इसे रणनीतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाता है। यहां से भारत को पूरे क्षेत्र में सामरिक गतिविधियों के संचालन का एक मजबूत आधार मिलेगा। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह कदम भारत की समुद्री रणनीति को मजबूती देगा और श्रीलंका में चीन की बढ़ती पकड़ का संतुलन स्थापित करेगा। चीन ने श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 साल की लीज़ पर लेकर पहले ही क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाई हुई है, जो भारत के लिए चिंता का विषय रहा है।
भारत का नया समुद्री अध्याय
इस अधिग्रहण के साथ भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र में न केवल अपनी सुरक्षा और व्यापारिक हितों को संरक्षित करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है, बल्कि चीन की रणनीतिक बढ़त को चुनौती देने के लिए एक कूटनीतिक और व्यावसायिक पहल भी की है। यह डील भारत की समुद्री कूटनीति और रक्षा निर्माण शक्ति को नए आयाम दे सकती है।
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